आसपास का वातावरण किस तरह का है इस बात का हमारे जीवन में व्यापक असर पड़ता है। अच्छी संगति में अच्छा सीखने को मिलता है बुरी संगत में बुरा ही सीखने को मिलता है। इन बातों का जिक्र सबसे बड़े ग्रंथ रामचरितमानस में भी है।
रामचरितमानस मे तुलसीदास जी ने इस बात का जिक्र किया है। तुलसीदास जी लिखते हैं-
गगन चढ़इ रज पवन प्रंसगा । कीचहिं मिलइ नीच जल संगा।।
साधु असाधु सदन सुक सारीं । सुमिरहिं राम देहिं गनि गारीं।।
जिस तरह से हवा के साथ मिलकर धूल आंधी का असर आकाश तक होता है और मिट्टी में जल मिलकर कीचड़ बन जाता है, उसी तरह का असर इंसान के जीवन में संगत का होता है। जैसे साधु के घर पर तोता-मैना परमात्मा का नाम जपते हैं और असाधु के घर में तोता-मैना गिन-गिन कर गालियाँ देते हैं।
हिन्दू पौराणिक कथाओं में एक कथा का वर्णन भी है जिसमे दो तोतो का जिक्र है। कुछ समय बाद उनमे से एक तोता साधु सन्यासियों के साथ रहता है और दूसरा तोता डाकुओं के साथ रहने लगता है। साधु सन्यासियो के साथ रहने वाला तोता दिन रात भगवान का नाम रटता रहता है। वही डाकुओ के साथ रहने वाला तोता अशब्दों का प्रयोग करने लगता है।
वातावरण का बड़ा ही व्यापक असर हमारे जीवन मे पड़ता है। अच्छी संगति का होना बेहद आवश्यक है।