उत्तराखंड में राष्ट्रीय खेल हॉकी अंतिम सांसें गिन रहा है। ऐसा नहीं है कि प्रदेश में हॉकी एसोसिएशन नहीं है लेकिन केवल राष्ट्रीय स्तर पर टीम भेजकर वह इतिश्री कर लेती है।
हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का जन्मदिन आज राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। हॉकी के पुरोधा को भले ही इस विशेष दिवस पर याद किया जाए, लेकिन जिस खेल के लिए उन्हें जाना जाता है, आज उसी खेल के लिए प्रदेश में उनके जैसे ही खेवनहार का इंतजार कर रहा है।
उत्तराखंड प्रदेश में राष्ट्रीय खेल हॉकी अंतिम सांसें गिन रहा है। स्थिति यह है कि प्रदेश में हॉकी की सुध लेने वाला कोई नहीं है। ऐसा नहीं है कि प्रदेश में हॉकी एसोसिएशन नहीं है, लेकिन केवल राष्ट्रीय स्तर पर टीम भेजकर वह इतिश्री कर लेती है।
देहरादून की बात करें तो पहले यहां डिस्ट्रिक्ट हॉकी लीग होने के साथ कई टूर्नामेंट आयोजित होते थे, लेकिन धीरे-धीरे यह खत्म हो गए। पहले सरकारी स्कूल हॉकी प्रतियोगिता में बढ़-चढ़कर प्रतिभाग करते रहे, लेकिन वर्तमान में इनका आंकड़ा दो या तीन तक रह गया है। यह जरूर है कि मसूरी व देहरादून के कुछ पब्लिक स्कूलों ने हॉकी को जिंदा रखा है।
वंदना कटारिया के अलावा नहीं दिखता कोई नाम
हॉकी में महिला खिलाड़ी वंदना कटारिया ही एक ऐसा नाम है, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश का नाम रोशन कर रही है। भारतीय टीम की यह खिलाड़ी लगातार अंतरराष्ट्रीय फलक पर चमक बिखेर रही है। दुर्भाग्य देखिए कि राज्य गठन के 18 साल बीतने जा रहे हैं, लेकिन वंदना के अलावा एकमात्र शिवानी बिष्ट ही ऐसी खिलाड़ी रही, जो अंतरराष्ट्रीय फलक पर पहुंची। पुरुष वर्ग में तो कोई भी खिलाड़ी नहीं है, जिसने अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचने में सफलता पाई हो।
बढ़ावा देने के हो रहे प्रयास
वरिष्ठ हॉकी खिलाड़ी व कोच विनोद भदुला के अनुसार, हॉकी संघ न तो जिला और न ही राज्य स्तर पर खेल को बढ़ावा देने के प्रयास कर रहे हैं। देहरादून में तो कई वर्षों से जिला संघ है ही नहीं। स्कूलों में भी हॉकी का स्तर गिरा है। खेल विभाग जरूरी प्रशिक्षण कैंपों के जरिये हॉकी को जिंदा रखे हुए है।
न सुविधा न व्यवस्था
हॉकी कोच दीपक बिष्ट के मुताबिक उत्तराखंड में हॉकी के लिए न तो पर्याप्त अवस्थापना सुविधा है और न ही व्यवस्था। यहां तक महिला खिलाड़ियों के लिए भी अलग से कोई व्यवस्था नहीं है। अगर हॉकी को बढ़ावा देना है तो सुविधाएं बढ़ानी होंगी।