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रूहानियत और इंसानियत’ का प्रतीक है 76वां वार्षिक निरंकारी संत समागम

विश्वभर के सभी प्रभु भक्तों के लिए वार्षिक निरंकारी संत समागम भक्ति, प्रेम एवं मिलवर्तन का एक ऐसा अनूठा संगम है, जिसमें सभी प्रभु भक्त सम्मिलित होकर आलौकिक आनंद की अनुभूति प्राप्त करते हैं। इसी दिव्यता की अविरल श्रृंखला को निरंतर जारी रखते हुए सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के पावन सान्निध्य में 76वां वार्षिक निरंकारी संत समागम 28 अक्टूबर 2023 (शनिवार) से 30 अक्टूबर, 2023 सोमवार (तीन दिन) तक संत निरंकारी आध्यात्मिक स्थल समालखा, हरियाणा में आयोजित होने जा रहा है, जिसमें भारत सहित अन्य देशों से लाखों की संख्या में प्रभु भक्त सम्मिलित होकर सत्गुरु माता जी के पावन आशीष प्रवचनों को श्रवण करेंगे। प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी 76वें वार्षिक निरंकारी संत समागम में विभिन्न संस्कृतियों एवं सभ्यताओं का अनूठा संगम देखने को मिलेगा।

रूहानियत और इंसानियत’ का प्रतीक है 76वां वार्षिक निरंकारी संत समागम

प्रत्येक निरंकारी भक्त को वार्षिक निरंकारी संत समागम की प्रतीक्षा सदैव ही रहती है। प्रत्येक वर्ष ही भक्तजनों को इन दिव्य संत समागमों में सम्मिलित होने की उत्सुकता बनी रहती है ताकि वह इन सेवाओं में अपना तुच्छ योगदान देकर भरपूर आनंद प्राप्त कर सकें। इस समागम में पूरे भारत सहित विश्व के कई देशों के निरंकारी अनुयायी भाग लेते हैं। संत निरंकारी आध्यात्मिक स्थल, समालखा, हरियाणा में सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज की दिव्य उपस्थिति में आयोजित होगा।

  • निरंकारी संत समागम में स्थानीय प्रशासन की चाक-चौबंद तैयारी
  • प्रशासन आयोजकों का नियमानुसार करेगा सहयोग
  • आगंतुकों के लिए कानून व्यवस्था व स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं की जाएगी उपलब्ध

हरियाणा में निरंकारी आध्यात्मिक स्थल भोड़वाल माजरी में 76वां निरंकारी वार्षिक संत समागम 28 से 30 अक्तूबर तक होगा। समागम में देश- विदेश से अनुयायी पहुंचेंगे। प्रशासन ने तीन दिवसीय समागम में कानून-व्यवस्था को लेकर अभी से तैयारी शुरू कर दी है। समागम में भीड़ को लेकर प्रशासन जहां लोकल बसें चलाएगा, वहीं रेलवे भोड़वाल माजरी रेलवे स्टेशन पर कई मेल व एक्सप्रेस ट्रेनों का ठहराव करेगा। इसके अलावा पानीपत व सोनीपत रेलवे स्टेशन से भी अनुयायियों को समागम स्थल तक ले जाया जाएगा।

उपायुक्त वीरेंद्र दहिया ने इसे लेकर हरियाणा में बुधवार (23अगस्त) को जिला सचिवालय में संत निरंकारी मंडल के सदस्यों के साथ बैठक की। इसमें प्रशासनिक व विभिन्न विभागों के अधिकारी भी शामिल रहे। उपायुक्त ने कहा है कि समागम में लाखों लोगों का आगमन होता है। इसके लिए बिजली, पानी, शौचालय, ट्रांसपोर्ट व अन्य ठहराव से संबंधित सुविधाओं की आवश्यकता जरूरी है। ऐसे में प्रशासन नियमानुसार समागम को सफलतापूर्वक संपन्न कराने के लिए संत निरंकारी मंडल का सहयोग करेगा। उपायुक्त ने बताया कि समागम स्थल पर बसों की व्यवस्था की जाएगी। अस्थायी बस स्टॉप और अस्थायी बिजली कनेक्शन दिए जाएंगे।

रूहानियत और इंसानियत’ का प्रतीक है 76वां वार्षिक निरंकारी संत समागम

शहर में अतिरिक्त लोकल बसें पानीपत से समागम स्थल तक चलाई जाएंगी। अस्थायी बस स्टॉप बनाए जाएंगे। रोडवेज जीएम को नियमानुसार बसों की व्यवस्था करने के निर्देश भी दिए गये हैं। दमकल विभाग नियमानुसार गाड़ी उपलब्ध कराएगा और बिजली निगम अस्थायी कनेक्शन देगा। स्वास्थ्य विभाग को एंबुलेंस, पैरामेडिकल स्टाफ व अस्थायी डिस्पेंसरी उपलब्ध कराएगा। पुलिस समागम स्थल के निकट पुलिस पोस्ट स्थापित करेगी और कानून एवं व्यवस्था का पालन करने के व्यापक प्रबंध करेगी। इस मौके पर एसडीएम समालखा अमित कुमार, सीटीएम राजेश सोनी, सीएमओ डॉ जयंत आहूजा, डीएसपी (ट्रैफिक) सुरेश सैनी, संत निरंकारी मंडल सचिव जोगिंद्र सुखिजा, संजय सैनी व राजेंद्र भुल्लर मौजूद रहे।

संत निरंकारी मिशन का प्रमुख उद्देश्य परमात्मा से साक्षात्कार

सन्त निरंकारी मिशन का एकमात्र उद्देश्य निरंकार परमात्मा के साक्षात्कार करवाकर मानव जीवन का कल्याण करना है। यह मिशन ब्रह्मज्ञान की दिव्य रोशनी द्वारा समस्त संसार को प्रकाशित करके, मानव मन में व्याप्त सभी कुरीतियों एवं नकारात्मक भावों को समाप्त कर रहा है। मिशन का मानना है कि हम सब एक ही परमात्मा की संतान हैं और अपने जीवनकाल में इसकी जानकारी प्राप्त करके हर पल अपने जीवन को आनंदित किया जा सकता है। आध्यात्मिक जागृति के उत्थान के साथ साथ मिशन अन्य सामाजिक गतिविधियों में भी सम्मिलित रहा है।

निरंकारी मिशन का स्वर्णिम अध्याय है 76वां वार्षिक निरंकारी संत समागम

इस वर्ष का संत समागम स्वयं में विशेष है। इस वर्ष सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज की पावन छत्रछाया में भक्तों को दिव्य संत समागम में प्रत्यक्ष रूप से सम्मिलित होने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है।

रूहानियत और इंसानियत’ का प्रतीक है 76वां वार्षिक निरंकारी संत समागम

नि:संदेह मिशन के इतिहास में यह समागम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जायेगा, क्योंकि यह 76वां वार्षिक निरंकारी संत समागम है जिसका आयोजन भव्य एंव विशाल रूप में किया जा रहा है। बताते चलें कि समागम परिसर एवं उसके आसपास के क्षेत्रों में तैयारी की सेवाएं आरम्भ हो चुकी है। जिसमें चण्डीगढ़ पंचकुला, मोहाली एंव दिल्ली एनसीआर के अतिरिक्त, अन्य राज्यों से भी संतजन पहुँचकर इन सभी सेवाओं में अपना योगदान दे रहे हैं। फिर चाहे वह मैदानों की स्वच्छता हो, ट्रैक्टर की, राजमिस्त्री की, लंगर की सेवा हो अथवा किसी भी प्रकार की कोई अन्य सेवा ही क्यों न हो, सभी संत इन सेवाओं में सम्मिलित होकर हृदय से सत्गुरु का आभार प्रकट कर रहे हैं।

इस अवसर पर बच्चे, युवा एवं वृद्ध सभी में एक नई ऊर्जा एवं उत्साह का संचार देखा जा सकता है। आज का युवा वर्ग इस भागदौड़ भरी जिंदगी में व्यस्त है, ऐसे समय में निरंकारी मिशन ब्रह्मज्ञान की दिव्य रोशनी द्वारा युवाओं को आध्यात्म से जोड़ कर चारित्रिक पवित्रता के विकास की प्रेरणा दे रहा है। जिसका जीवंत उदाहरण यह दिव्य संत समागम है, जिसमें सभी आयु और वर्ग के भक्त निस्वार्थ रूप से अपनी सेवाओं को निभाते हुए अपने जीवन को सफल बनाने का प्रयास कर रहे हैं।

‘रूहानियत और इंसानियत संग संग’ विषय पर आधारित था 75वां वार्षिक निरंकारी संत समागम

पिछले साल 75वां वार्षिक निरंकारी संत समागम ‘रूहानियत और इंसानियत संग संग’ विषय पर आधारित था, जिसमें विश्वभर से वक्ता, गीतकार तथा कविजन ने अपने प्रेरक एंव भक्तिमय भावों को व्यक्त किया था। यह कहा जा सकता है कि ‘रूहानियत के एहसास एंव आधार में ही इंसानियत का भाव निहित है। वास्तविक रूप में जब हम समर्पित रूप में निराकार परमात्मा के साथ जुड़ते है तब हमारे अंदर स्वतः ही इंसानियत रूपी दिव्य गुण दृश्यमान होने लगते हैं और हृदय में फिर सभी के लिए केवल परोपकार एंव प्रेम की ही भावना उत्पन्न होती है। सत्गुरू माता जी का भी यही दिव्य संदेश है कि मानव जीवन में रूहानियत एवं इंसानियत का संग-संग होना अत्यंत आवश्यक है।

“वसुधैव कुटुम्बकम और ब्रह्म की प्राप्ति भ्रम की समाप्ति” पर आधारित संत निरंकारी मिशन का संक्षिप्त इतिहास

अविभाज्य हिन्दुस्तान के पेशावर शहर (वर्तमान पाकिस्तान) में बाबा काहन सिंह से श्रीमदभगवद्गीता सहित अन्य धर्मग्रन्थों के मूल विचारों पर आधारित ब्रह्म ज्ञान प्राप्त करके बाबा बूटा सिंह ने संत निरंकारी अभियान (मिशन) की शुरुआत की। 1943 में बाबा बूटासिंह के ब्रह्मलीन होने के बाद 20 वर्ष बाबा अवतार सिंह 17 वर्ष बाबा गुरबचन सिंह तथा 36 वर्ष बाबा हरदेव सिंह ने निरंकारी मिशन की मुहिम को विश्वभर में फैलाया।

निरंकारी मिशन के चौथे गुरु निरंकारी बाबा हरदेव सिंह महाराज

निरंकारी मिशन के चौथे गुरु निरंकारी बाबा हरदेव सिंह महाराज का कनाडा में सड़क हादसे में निधन हो गया था। बाबा जी ने 27 अप्रैल 1980 में अपने पिता के देहांत के बाद गद्दी पर बैठे थे। बाबाजी की तीन बेटियां हैं। उन्होंने अपनी छोटी बेटी की शादी पंचकूला निवासी अवनीत सेतिया से की थी। हादसे के वक्त दूसरे दामाद सन्नी कार ड्रॉइव कर रहे थे, जो गंभीर रूप से घायल हो गये थे। जानिए बाबा जी से जुड़ी पूरी कहानी…

खुद भी रक्तदान करते थे बाबा हरदेव सिंहजी…

वर्ष 1980 से अब तक बाबा हरदेव सिंह जी ने देश व विदेशों में मिशन का प्रचार किया व समाज सेवा के जुड़े कई कार्य किए। वे बहुत मिलनसार और सरल स्वभाव के शख्शियत थे। कभी भी इनका कोई विवाद सामने नहीं आया। बाबा खुद भी ब्लड डोनेशन करते थे और उनकी पत्नी भी। यहीं वजह है कि एक रिकॉर्ड है कि एक दिन में 70 हजार लोगों ने निरंकारी कैंपों में रक्तदान किया है। बाबा जी साफ-सफाई के काम में भी कभी पीछे नहीं रहे। वे खुद भी गंदगी साफ किया करते थे।

रूहानियत और इंसानियत’ का प्रतीक है 76वां वार्षिक निरंकारी संत समागम

पिछली तीन पीढ़ियों से इनका परिवार निरंकारी मिशन से जुड़ा हुआ है। पहले फ़ॉलोअर की संख्या लाखों में थी। फिर पिता बाबा गुरूबचन सिंह के ब्रह्मलीन होने के बाद जब बाबा हरदेव सिंह ने गद्दी संभाली तो इनके सामाजिक कार्यों के कारण अनुयायियों की यह संख्या करोड़ों में पहुंच गई। बाबा जी की इन्हीं खूबियों की वजह से सभी राजनीतिक पार्टियां इनकी प्रशंसक थी। वे किसी पार्टी विशेष के तौर पर नहीं जाने जाते थे।

1971 में निरंकारी सेवा दल ज्वाइन किया था

23 फरवरी 1954 को बाबा हरदेव जी का जन्म दिल्ली में हुआ था। उनकी शुरुआती पढ़ाई पटियाला में वाईपीएस से हुई। बाद में दिल्ली के संत निरंकारी कॉलोनी में रोसरी स्कूल और ग्रेजुएशन दिल्ली यूनिवर्सिटी से की।

बाबा हरदेव सिंह के ब्रह्मलीन होने के बाद 18 मई, 2016 से सत्गुरु माता सविन्दर हरदेव के नेतृत्व में निरंकारी मिशन के ब्रह्मज्ञान द्वारा सत्य, प्रेम, शांति तथा एकत्व के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने का उद्घोष हुआ। सतगुरु माताजी का सानिध्य मिलते ही भारत में निरंकारी मिशन की लगभग 3 हजार शाखाओं के सभी संत निरंकारी सत्संग भवन में नियमित सत्संग निरंतर चल रहे हैं, जहां लोगों की आध्यात्मिक जिज्ञासा का समाधान ब्रह्मज्ञान द्वारा किया जा रहा है। वर्तमान में बाबा हरदेव सिंह जी और माता सविन्दर हरदेव जी की सुपुत्री माता सुदीक्षा सविंदर हरदेव मिशन की प्रमुख बनी हैं और मिशन का संचालन कर रही हैं।

बच्चों को संस्कार: निरंकारी मिशन बच्चों को संस्कारवान बनाने की दिशा में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। वहीं नियमित महिला सत्संग में भी घर-परिवार और समाज को सुखमय बनाने की सीख दी जा रही हैं।

हर भक्त है प्रचारक: सत्गुरू से ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने के बाद हर भक्त निरंकारी मिशन का स्वत: ही प्रचार करने लगता है, ऐसा करने के पीछे कोई आर्थिक या सामाजिक लाभ कमाना नहीं, बल्कि आत्मसंतुष्टि पाना है। भक्त मानते हैं कि ब्रह्मज्ञान के बाद जिन भ्रमों से उन्हें मुक्ति मिली, अज्ञानता दूर हुई तथा आत्मिक आनंद प्राप्त हुआ, यह लाभ मेरे स्वजनों को भी मिले, इसी नेक व परोपकारी सोच के तहत हर निरंकारी भक्त एक प्रचारक के रूप में जन-जन को आध्यात्म के लिए प्रेरित करता है।

निरंकारी प्रकाशन की पुस्तकें भी हैं प्रेरक

निरंकारी प्रकाशन की पुस्तकें भी जिज्ञासुओं की शंकाओं के समाधान में अहम भूमिका निभा रही हैं। अवतार वाणी, हरदेव वाणी, दिव्य गाथा, शहंशाह, गुरबचन, गुरुदेव हरदेव, विचार प्रवाह, कुलवंत, अंधकार से प्रकाश की ओर सहित तमाम पुस्तकें हर उम्र के पाठकों को प्रभावित कर रही हैं, वहीं “पाक्षिक एक नजर” और मासिक “संत निरंकारी” तथा बाल पत्रिका “हंसती दुनिया” तो अब नियमित रूप से सबकी पसंद बन गये हैं। संत निरंकारी मिशन का मूल उद्देश्य है वसुधैव कुटुम्बकम अर्थात मानवता ही मनुष्य मात्र का वास्तविक धर्म है। संत निरंकारी मिशन में बताया जाता है कि विश्व के सभी प्रमुख धर्म ग्रंथ का उपदेश है कि जब तक ब्रह्म की प्राप्ति नहीं होती तब तक सांसारिक भ्रमों की समाप्ति भी नहीं हो सकती। पूर्ण ब्रह्म की प्राप्ति पूर्ण सद्गुरू के द्वारा ही सम्भव है। इसलिए मानव जन्म को सफल बनाने के लिए शीघ्रातिशीघ्र पूर्ण सद्गुरू की खोज कर लेनी चाहिए।

बहुत ही कम उम्र में सदगुरु माता सुदीक्क्षा जी के करोणों अनुयायी

संत निरंकारी मिशन की आध्यात्मिक प्रमुख रहीं माता सविंदर हरदेव जी के ब्रह्मलीन (निधन) होने के बाद अब मिशन की कमान उनकी छोटी बेटी सुदीक्षा के हाथों में है। वर्तमान में दुनिया भर में मिशन के एक करोड़ से ज़्यादा भक्त हैं। दुनिया भर के 27 देशों में निरंकारी मिशन है और इसका मुख्यालय दिल्ली में स्थित है। बताया जा रहा है कि विदेशों में मिशन के 100 से ज्यादा केंद्र हैं। भारत में भी करीब हर राज्य में लाखों की संख्या में उनके अनुयायी हैं। जुलाई 2018 महीने में ही निरंकारी मिशन के पूर्व सतगुरु स्वर्गीय बाबा हरदेव सिंह की छोटी बेटी सुदीक्षा को नया सद्गुरु घोषित किया गया था। दिल्ली स्थित बुराड़ी के समागम मैदान में माता सविंदर हरदेव सिंह ने तिलक लगा कर इस बात की औपचारिक घोषणा की थी।

आइए जानते हैं कि कौन हैं निरंकारी मिशन की प्रमुख माता सुदीक्षा

सुदीक्षा का जन्म 13 अप्रैल, 1985 को दिल्ली में हुआ और 2006 में एमिटी यूनिवर्सिटी से “मनो चिकित्सा” में स्नातक करने के बाद 2010 में मिशन के लिए विदेश का काम देखने लगीं। सुदीक्षा की शादी दो जून 2015 को दिल्ली में पंचकूला निवासी अवनीत से हुई थी, लेकिन 33 वर्षीय सुदीक्षा के पति अवनीश सेतिया की भी कनाडा में बाबा हरदेव सिंह के साथ सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। बाबा हरदेव सिंह का कोई पुत्र नहीं है, उनकी तीन पुत्रियां है, जिनमें सुदीक्षा सबसे छोटी हैं।

निरंकारी मिशन के ये हैं 6 सद्गुरुओं के नाम

* सदगुरु बाबा बूटा सिंह, जो इनके परिवार से नहीं थे।
* माता सुदीक्षा के परदादा सदगुरु बाबा अवतार सिंह।
* इनके दादा सदगुरू बाबा गुरबचन सिंह।
* इनके पिता सदगुरू बाबा हरदेव सिंह।
* इनकी माता सदगुरु माता सविंदर हरदेव।
* सदगुरु बाबा हरदेव सिंह की छोटी बेटी सुदीक्षा।

यहां पर बता दें कि संत निरंकारी मिशन की आध्यात्मिक प्रमुख रहीं माता सविंदर हरदेव जी (61) 06 अगस्त 2018 शाम 5:05 बजे ब्रह्मलीन हो गई थींं। वह लंबे समय से बीमार चल रहीं थीं। उन्होंने छोटी बेटी सुदीक्षाजी को संत निरंकारी मिशन के प्रमुख के पद पर आसीन किया था। निरंकारी बाबा हरदेव सिंह महाराज के ब्रह्मलीन होने के बाद वह मिशन की आध्यात्मिक प्रमुख रहीं। यहां पर बता दें कि माता सविन्दर हरदेव जी काफी समय से बीमार थी और इसके चलते 17 जुलाई 2018 को माता सविंदर ने मिशन के छठवें सद्गुरु के रुप में अपनी छोटी बेटी सुदीक्षा जी को जिम्मेदारी सौंप दी थी। संत निरंकारी मिशन के मीडिया प्रभारी के अनुसार मिशन की सद्गुरु के रुप में माता सुदीक्षा सविंदर हरदेव जी निरंकारी मिशन की सदगुरु रहेंगी।

1929 में निरंकारी मिशन की हुई स्थापना

संत निरंकारी मिशन की 1929 में स्थापना हुई थी। इस मिशन की 27 देशों में 100 शाखाएं चल रही हैं। भारत में भी तकरीबन हर राज्यों में लाखों की संख्या में उनके अनुयायी हैं।
बाबा हरदेव सिंह को विश्व में मानवता की शांति के लिए कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं। उन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ भी सम्मानित कर चुका है। निरंकारी मंडल की ओर से बुराड़ी स्थित मैदान में हर साल नवंबर में वार्षिक समागम का आयोजन किया जाता रहा है। इसमें भारत समेत दुनिया भर के लाखों भक्त भाग लेते हैं।

जानें कौन थे बाबा हरदेव सिंह निरंकारी

संत निरंकारी मिशन के प्रमुख बाबा हरदेव सिंह का जन्म 23 फरवरी, 1954 को हुआ था। उन्होंने दिल्ली के संत निरंकारी कॉलोनी स्थित रोजेरी पब्लिक स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की थी। उसके बाद 1963 में उन्होंने पटियाला के बोर्डिंग स्कूल “यादविंद्र पब्लिक स्कूल” में दाखिला लिया। दिल्ली यूनिवर्सिटी से उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्होंने 1971 में एक सदस्य के रूप में निरंकारी सेवा दल ज्वॉईन कर लिया। 1975 में एक वार्षिक निरंकारी संत समागम के दौरान दिल्ली में उनकी शादी फार्रूखाबाद की संत सविंदर कौर से हुई। अपने पिता के निधन के बाद 1980 में हरदेव सिंह संत निरंकारी मिशन के मुखिया बने। उन्हें सतगुरू की उपाधि दी गई।

वार्षिक निरंकारी संत समागम का ऐतिहासिक परिचय

संत निरंकारी मिशन के इतिहास में यदि झांकें तो मिलेगा कि मिशन के उत्साही युवा संत और बाबा अवतार सिंह जी महाराज के पुत्र सज्जन सिंह जी, जिन्होंने मिशन के संदेश को व्यापक रूप से प्रचारित करने में अविस्मरणीय और गुप्त भूमिका निभाई थी। स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि वह निरंकारी प्रकाशन के संस्थापक हैं, क्योंकि उन्होंने वर्ष 1948 में “संत निरंकारी” मासिक पत्रिका को जारी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 1948 में सज्जन सिंह जी बीमार पड़ गए और उसी वर्ष उन्होंने अंतिम सांस ली। युवा सज्जन सिंह की असमय देहावसान (ब्रह्मलीन) ने सभी को झकझोर कर रख दिया था और बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए निरंकारी मिशन के मुख्यालय दिल्ली पहुंचने लगे थे। हालांकि निरंकारी मिशन की शिक्षाओं में तन मन और धन में निर्लिप्तता की बात की गई है और बताया गया है कि आत्मा अजर अमर है, शरीर के मरने का शोक नहीं करना चाहिए।

रूहानियत और इंसानियत’ का प्रतीक है 76वां वार्षिक निरंकारी संत समागम

हमें ईश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण करना चाहिए। हमें शरीर, मन और सांसारिक वस्तुओं को सर्वशक्तिमान निराकार से उपहार के रूप में स्वीकार करना चाहिए। उन्हें एक सेवादार (ट्रस्टी) के रूप में उपयोग करना चाहिए। हमें उस समय भी किसी भी तरह से शोक नहीं करना चाहिए जब इन तीनों (तन मन और धन) में से किसी एक को ईश्वर की मर्जी से वापस ले लिया जाता है। बाबा अवतार सिंह ने उस समय दिल्ली पहुँचे सभी संतजनों को सामूहिक रूप से बैठकर ईश्वर को याद करने, जो कुछ बचा है उसके लिए आभार व्यक्त करने, मानवता की सेवा करने की शक्ति के लिए प्रार्थना करने और सांसारिक कमियों के लिए क्षमा या ईश्वरीय दया की प्रार्थना करने की सलाह दी।

उस समय आने वाले संत दिल्ली के ईदगाह रोड पर एकत्र हुए और एक समूह के रूप में बैठ कर प्रार्थना करने लगे। निरंकारी संत समूह को संबोधित करने के लिए मिशनरी (निरंकारी संत) एक के बाद एक उठ खड़े हुए।  उनके सम्बोधन से यह पता चला कि दिवंगत सज्जन सिंह के द्वारा व्यक्त किए गए समय-समय पर मिशन के दर्शन, उनके अनुभव और उन्हें संप्रेषित करने की शैली पर उनके विचारों को साझा करना वास्तव में उपयोगी होगा। यह मिशन का पहला एक दिवसीय समागम था, जिसने मिशनरियों को प्रेरित किया, और उन्होंने तय किया कि अक्टूबर या नवंबर के महीने में हर साल कम से कम एक बार दिल्ली में निरंकारी भक्त एकत्रित होकर प्रभु चर्चा (संत समागम) करेंगे।

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तब से, निरंकारी मिशन हर साल नियमित रूप से अपने संत समागम आयोजित करता आ रहा है। वार्षिक समागमों में भाग लेने वालों की संख्या साल-दर-साल उत्तरोत्तर बढ़ती ही जा रही है। प्रत्येक वार्षिक समागम की अवधि (पहले, 9 वें और स्वर्ण जयंती समागम को छोड़कर जो क्रमशः एक दिन, सात दिन और पांच दिन की अवधि की रही है) 3 दिन की रही है। इसे एक रस्म (परम्परा) बनने से रोकने के लिए, वार्षिक समागमों के लिए कोई तारीख स्थायी रूप से निर्धारित नहीं की गई है। अब तक, ये आमतौर पर सितंबर के अंत से नवंबर की शुरुआत तक की अवधि के दौरान आयोजित किए जाते रहे हैं।

1962 तक पहले पंद्रह समागम बाबा अवतार सिंह जी महाराज के नेतृत्व में आयोजित किए गए थे। 16 से 21वें समागम तक बाबा गुरबचन सिंह जी महाराज, बाबा अवतार सिंह और राजमाता कुलवंत कौर जी की उपस्थिति में समागम हुआ। 22 से 32वें संत समागम तक की अध्यक्षता बाबा गुरबचन सिंह जी महाराज और पूज्य राजमाता जी ने की।33वें समागम के बाद से ये बाबा हरदेव सिंह महाराज, पूज्य राजमाता और पूज्य माता सविन्दर हरदेव के आध्यात्मिक मार्गदर्शन में आयोजित किए जाते रहे हैं।

स्थान-वार: 1948 में पहला समागम ईदगाह रोड, सदर नई दिल्ली में आयोजित किया गया था। दूसरा समागम पंचकुइन रोड, नई दिल्ली में आयोजित किया गया था। तीसरे से पांचवें समागम संत निरंकारी कॉलोनी के पास रेडियो कॉलोनी में आयोजित किए गए। 8 वें से 17 वें समागमों के लिए संत निरंकारी कॉलोनी का आयोजन स्थल बना रहा। निरंकारी भक्तों की बढ़ती संख्या के साथ और अधिक विशाल स्थल की आवश्यकता थी। इसलिए 18 से 30 वें समागम दिल्ली के राम लीला मैदान में हुए।

31वाँ समागम 1978 में इंडिया गेट (वर्तमान में राजपथ) मैदान, नई दिल्ली में आयोजित किया गया था। अगले आठ वर्षों के लिए समागम स्थल को राजघाट, शांति वन और विजय घाट के सामने लाल किले के पीछे खुले मैदान में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां 32 वें से 39 वें समागम आयोजित किए गए थे। अगले 3 समागम आउटर रिंग रोड पर संतोख सरोवर (निरंकारी कॉलोनी) के पास आयोजित किए गए। 43 वें समागम से संतोख सरोवर (बुराड़ी रोड) के सामने के विशाल मैदान का उपयोग इस उद्देश्य के लिए किया जा रहा था। वर्तमान में तीन दिवसीय 75वां वार्षिक निरंकारी संत समागम 16 से 20 नवम्बर 2022 को संत निरंकारी आध्यात्मिक स्थल समालखा, हरियाणा में आयोजित होने जा रहा है।

समागम की निर्बाध श्रृंखला

1963 में आयोजित 16 वां समागम बाबा गुरबचन सिंह जी की अध्यक्षता वाला पहला समागम था। सितंबर 1969 में बाबा अवतार सिंह जी के भौतिक प्रस्थान (ब्रह्मलीन) ने 22वें समागम पर शोक की छाया नहीं पड़ने दी। वर्ष 1972 में सिल्वर जुबली समागम देखा गया जब निरंकारी बाबा और राजमाता को करेंसी नोटों से तौला गया था। इससे मिशन को समाज कल्याण के क्षेत्र में अपनी गतिविधियों को बढ़ाने में मदद मिली। अप्रैल 1978 के अमृतसर-एपिसोड और उत्तरी क्षेत्र में आभासी निरंकारी धर्मयुद्ध के बावजूद, उस वर्ष भी वार्षिक समागमों की श्रृंखला में कोई तोड़ नहीं था।

रूहानियत और इंसानियत’ का प्रतीक है 76वां वार्षिक निरंकारी संत समागमवर्ष 1980 में भी जब बाबा गुरबचन सिंह ने सत्य की माँग के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी, तब 33 वें समागम में सदगुरु बाबा हरदेव सिंह महाराज की आध्यात्मिक आज्ञा के तहत “वार्षिक समागम” सामान्य रूप से आयोजित किया गया था। बाबा हरदेव सिंह जी की अध्यक्षता में यह पहला समागम था जिसमें उन्होंने भक्तों को निरंकार में अपने विश्वास पर टिके रहने और मिशन के संदेश को हर दरवाजे तक ले जाने के लिए प्रेरित किया था। बाबा हरदेव सिंह ने उस समय कहा था कि रक्त नालियों में नहीं बल्कि नाड़ियों में बहना चाहिए। तभी से निरंकारी मिशन लगातार रक्तदान शिविर आयोजित कर रहा है। निरंकारी मिशन के रक्तदान शिविर ने पूरे भारत में एक रिकार्ड कायम किया है। उस समय बाबा हरदेव सिंह जी ने कहा था कि बाबा गुरबचन सिंह को यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

प्रारंभ में, वार्षिक समागम एक रंगीन जुलूस के साथ शुरू होता था, जिसमें निरंकारी बाबा एक अच्छी तरह से सजाए गए खुले वाहन में बैठे थे, सेवा दल बैंड से पहले और उसके बाद आने वाले संत अपनी पारंपरिक वेशभूषा में भगवान और सच्चे गुरु की स्तुति गाते थे और उच्च-निर्दिष्ट लंबे मार्ग पर चलते हुए मिशन का संदेश देते थे। यह एक ऐसा दृश्य हुआ करता था जिसका आनंद सभी लेते थे। जुलूस का विचार मिशन को जनता से परिचित कराना था। हालांकि, 1977 में बिगड़ती कानून-व्यवस्था की स्थिति को देखते हुए जुलूस नहीं निकाला जा सका। एक बार जब श्रृंखला टूट गई, तो इन जुलूसों को व्यावहारिक रूप से समागम कार्यक्रम से हटा दिया गया।

काव्य संगोष्ठी

वार्षिक समागमों की एक महत्वपूर्ण विशेषता आम तौर पर समापन दिवस की शाम को आयोजित एक काव्य संगोष्ठी रही है। सात अवसरों को छोड़कर, जब सामान्य कविताएँ थीं, काव्य परिचर्चा के लिए हमेशा एक विशिष्ट विषय रहा है, जो मिशन के अनुयायियों के लिए स्थिति और अपेक्षित भूमिका के लिए प्रासंगिक है। यह पहली बार 1952 में समागम के साथ शुरू हुआ था। विषय था ‘ईश्वर के प्रकाश को देखने पर हर जगह रोशन हो जाता है।’ अन्य उल्लेखनीय विषयों से अवगत कराया गया। ईश्वर का ज्ञान अज्ञान और अंधविश्वास के अंधेरे को दूर करता है।

प्रेम स्थायी शांति और समृद्धि की नींव है, संत जानता है कि अत्याचार के खिलाफ भी प्रेम की भावना को कैसे बनाए रखा जाए, मानव सेवा का बहुत महत्व है, मिशन पूरे विश्व की एकता और मुक्ति के लिए है, उपदेश से अभ्यास बेहतर है, मनुष्य और मनुष्य के बीच गहन प्रेम अनिवार्य रूप से मानव जाति की शांति और प्रगति को प्राप्त करने के लिए आवश्यक है। परमेश्वर से प्रेम करने के लिए मनुष्य से प्रेम करो, नम्रता जीवन की पहचान है, भक्ति एकतरफा बनी रहती है जब तक कि यह अन्य मनुष्यों के लिए प्रेम और सम्मान पर आधारित न हो, मानव जीवन का प्राथमिक उद्देश्य है कि व्यक्ति सच्चा मनुष्य बने, आदि आदि। सभी काव्य विषयों के वक्तव्य और रूपरेखा मनुष्य को वास्तविक मानव में बदलने के एक विलक्षण उद्देश्य में चलते हैं। हिंदी, पंजाबी, उर्दू और अन्य भाषाओं में अपने प्रयासों से कवि कल्पना की नई ऊंचाइयों को छूते हैं और भक्तों को मानसिक संतुष्टि प्रदान करते हैं।

अन्य गतिविधियां

सेवा दल रैली आमतौर पर समागम के दूसरे दिन के पूर्वाह्न में आयोजित की जाती है। इस रैली में सेवा दल के स्वयंसेवक बाबा जी की उपस्थिति में शारीरिक व्यायाम और कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ एक शानदार दृश्य प्रस्तुत करते हैं और मानवता की सेवा की अपनी प्रतिज्ञा को नवीनीकृत करते हैं। आम सभा की बैठक भी वार्षिक समागम की एक नियमित विशेषता है। यह बैठक आम तौर पर समागम के तीसरे दिन के पूर्वाह्न में होती है।इस बैठक में सभी प्रचारक, मुखिया, प्रमुख, अंचल प्रभारी, सेवा दल के पदाधिकारी और मिशन के ऐसे अन्य सदस्य जिन्हें सतगुरु द्वारा नामित किया जा सकता है, भाग लेते हैं। यह बैठक सतगुरु की उपस्थिति में आयोजित की जाती है और पिछले वर्ष के प्रदर्शन का संक्षिप्त विवरण देते हुए संबंधित सचिव द्वारा पढ़ी गई वार्षिक रिपोर्ट के साथ शुरू होती है। फिर इसे सतगुरु द्वारा संबोधित किया जाता है।प्रतिभागियों को आगे के नए कार्यों का निर्देश दिया जाता है।

आज दिल्ली में वार्षिक निरंकारी संत समागम को आसानी से “मिशन इन एक्शन” के रूप में वर्णित किया जा सकता है। आध्यात्मिक जागृति पर आधारित मानव एकता, समानता और बंधुत्व का इसका संदेश यहां एक बेहतरीन अभिव्यक्ति पाता है। समाज के सभी वर्गों और स्तरों के लोग अपनी सामाजिक, आर्थिक या आधिकारिक स्थिति को भूलकर एक स्थान पर इकट्ठा होते हैं। विशाल सभा विविधता में एकता और आपसी प्रेम, सम्मान और समझ का एक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। नम्रता समागम में भाग लेने वाले प्रत्येक भक्त के आचरण को इस हद तक चिह्नित करती है कि कोई भी उम्र, लिंग या स्थिति के बावजूद एक दूसरे के पैर छूते हैं।
समागम के दौरान सभी को मुफ्त भोजन (लंगर) परोसा जाता है।

लोग कालीनों पर इतने प्यार से बैठते हैं कि कोई वरिष्ठ अधिकारी, व्यवसायी, कारखाने के मालिक और अन्य अभिजात वर्ग को दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले आम लोगों के बगल में बैठकर भोजन करते हुए कोई परहेज नहीं करते हैं। यहां तक ​​कि जो लोग खाना बनाते या परोसते हैं वे भी कंधे से कंधा मिलाकर काम करते हैं, चाहे उनकी सामाजिक स्थिति, शैक्षणिक योग्यता, आर्थिक पृष्ठभूमि आदि कुछ भी हो। निरंकारी लंगर निश्चित रूप से समानता और बंधुत्व का एक अद्भुत उदाहरण है और साथ ही दूसरों की निःस्वार्थ सेवा भी है।

समागम के दौरान, निरंकारी प्रदर्शिनी दिलचस्प मॉडल, पेंटिंग, फोटो आदि से युक्त एक प्रदर्शनी भी भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र है। यह न केवल मिशन के इतिहास और विचारधारा को दर्शाता है बल्कि विभिन्न गतिविधियों, विशेष रूप से इसके संदेश के प्रसार से संबंधित गतिविधियों को भी दर्शाता है। परम पावन सदगुरु के आध्यात्मिक दौरों और प्रवचनों को भी प्रदर्शनी में पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिलता है। लंबी कतारें भक्तों की ओर से अनुशासन की भावना को प्रदर्शित करती हैं।

पूरे समागम का स्थान आधुनिक समय में आवश्यक सभी सुविधाओं के साथ प्रदान की गई एक बस्ती की तरह दिखता है। यह देश के कोने-कोने से और विदेशों से भी अपने प्रतिभागियों के माध्यम से मिनी-ग्लोब की तस्वीर का प्रतिनिधित्व करता है। अतीत में वार्षिक निरंकारी संत समागमों में भाग लेने वालों में भारत के राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, केंद्रीय मंत्री, राज्य के राज्यपाल और मुख्यमंत्री आदि शामिल हैं।

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