कोरोना मरीजों के घर के बाहर पोस्टर लगाने की कोई ज़रूरत नहीं है, लेकिन अगर लगाना ज़रूरी हो तो इसके लिए पहले संबंधित अधिकारी (केंद्र सरकार) का आदेश होना चाहिए। ऐसा करने से मरीजों के साथ भेदभाव हो रहा है। यह कहना है सुप्रीम कोर्ट का। एक याचिका पर सुनवाई करते हुए आज सुप्रीम कोर्ट ने यह बात कही है। हालांकि इससे पहले की सुनवाई में कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि इस तरह पोस्टर लगाने से मरीज अछूत समझे जा रहे हैं। ऐसे मरीजों से अछूतों जैसा व्यवहार किया जा रहा है।
पहली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर गौर करते हुए यह भी कहा था कि उन लोगों की निजता का हनन है जहां पोस्टर लगाए गए हैं। साथ ही पोस्टर लगाए जाने से मरीजों और उनके घर वालों को पड़ोसियों से दिक्कत हो रही है। वहीं सरकार की तरफ से पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने साफ किया कि केंद्र सरकार ने ऐसा कोई निर्देश नहीं दिया है।
पोस्टर लगाए जाने का फैसला राज्य सरकारों का है। उनका मकसद ये है कि मरीज के पड़ोसी या कोई और वहां उस घर में या आसपास जाने से बचें। इस तरह कोरोना से बचा जा सकता है, लेकिन इस पर भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ज़मीनी हकीकत कुछ और है, पोस्टर लगाए जाने से लोग मरीजों को अछूत समझने लगे हैं।