‘बिस्मिल’ का क्रांति और कलम से समान रिश्ता था, उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी। अपनी शहादत से 02 दिन पूर्व तक बिस्मिल गोरखपुर के जेल अधिकारियों की नजर बचाकर जिस आत्मकथा को लिपिबद्ध करते रहे, उसमें कमाल पाशा का बहुत सम्मान के साथ जिक्र है। कमाल पाशा के प्रति बेहद आस्थावान, बिस्मिल अपने साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष को शायद वैसे ही किसी मुकाम तक ले जाना चाहते थे।
1936 में केन्या से भारी संख्या में तुर्की, भाग कर आए कुर्द विस्थापितों को बसाने के लिए जिस जिले को बनाया गया था, उसका नाम बाद में तुर्की के राष्ट्रपति कमाल पाशा ने शहीद ‘रामप्रसाद बिस्मिल’ के नाम पर रखा।
इस जिले का मुख्यालय ‘बिस्मिल शहर’ है। यह पहाड़ियों के बीच बसी बेहद आकर्षक, एक खूबसूरत बस्ती है। जो अपने आकर्षक पाकों के लिए प्रतिष्ठित है। यहां के अधिकांश निवासी कुर्द ही है। बिस्मिल शहर की जनसंख्या 60,150 है।
पूरी कहानी कुछ यूं है-तुर्की में एक राज्य है दियार बाकिर जिसका अर्थ होता है, बागियों का दियार। हिंदी में इसे विद्रोहियों का इलाका या भूखंड कहा जा सकता है।
तुर्की के दक्षिणी पूर्वी क्षेत्र के इस दियार बाकिर प्रांत के पूर्व में बिस्मिल के नाम पर एक जिला है। यह वही भारतीय क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल हैं। जिन्हें 09 अगस्त 1925 के प्रसिद्धि काकोरी कांड में अपने तीन अन्य क्रांतिकारी साथियों के साथ आज के दिन यानी 19 दिसंबर 1927 को ब्रिटिश हुकूमत ने फांसी पर चढ़ा दिया था।
दियार बाकिर में बिस्मिल जिला और बिस्मिल शहर की स्थापना 1936 में कमाल पाशा ने की थी। ‘बिस्मिल’ का नाम हिंदुस्तान में क्रांति का प्रतीक बन चुका था। और कमाल पाशा उनसे बहुत प्रभावित थे। शायद कमाल पाशा का क्रांतिकारी अभियान ही वह बिंदु था, जिसने बिस्मिल को कमाल पाशा की ओर आकर्षित किया। बिस्मिल और अतातुर्क कमाल पाशा का रिश्ता 02 देशों की क्रांतिकारी चेतना का अनूठा संगम है।
कमाल पाशा को हमारे देश के काकोरी कांड के एक क्रांतिकारी सैनिक और नेतृत्व कर्ता ने बेहद प्रभावित किया और वह उस प्रभामंडल की छाया तले तुर्की की धरती पर बिस्मिल शहर का निर्माण संभव कर पाए। यह एक तरह से ‘बिस्मिल’ की क्रांतिकारी चेतना का विस्तार भी है।