इन्सान थे कभी मगर अब ख़ाक हो गये,
ले ऐ जमीन हम तेरी ख़ुराक हो गये।
रखेंगे हमको चाहने वाले संभाल के,
हम नन्हे रोज़ेदार की मिस्वाक हो गये।
यह शेर शायर मुनव्वर राना ने मरहूम डा.कल्बे सादिक़ के ताज़ियती जलसा प्रोगराम में बतौर सदर की हैसियत से पढ़ा तो लोगों के हांथ दुआ में खड़े हो गये। मुनव्वर राना ने कहा कि डॉ. कल्बे सादिक साहब की ये ख्वाईश थी कि, काश हम हिन्दुस्तान के मुसलमानों को ऐसी कौम दें जो इस मुल्क में अपनी सुर्खरूई से पहचान बनायें।
अल इमाम वेलफेयर एसोसिएशन (इण्डिया) की तरफ से प्रेस क्लब में आज स्व. डॉ. कल्बे सादिक़ की याद में ताज़ियती ज़लसा का अयोजन किया गया। जिसमें शहर भर की कई अज़ीम शख्सियतों ने हिस्सा लिया। उक्त अवसर पर डॉ. कल्बे सादिक को याद करते हुए जफ़रयाब ज़िलानी ने कहा कि, डॉ. कल्बे सादिक़ वक्त के बड़े पावंद थे। वह किसी भी जलसे मेें हमेशा वक्त पर पहुंचते थे और यदि कोई जलसा समय पर शुरू नही होता था तो आधे घण्टे बाद ही वह वहां से चले जाते थे।
एसोसिएशन के सदर और इस जलसे के आयोजक इमरान हसन सिद्दीकी ने डॉ. कल्बे सादिक को याद करते हुए कहा कि, उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी इल्म को सीखने और इल्म की अहमियत को घर-घर तक पहुंचाने में लगा दी। डॉ. सादिक साहब का इस दुनिया से जाना इल्म जगत की बड़ी क्षति है। उक्त मौके पर इमरान हसन ने मौलाना राबे हसन नदवी का मैसेज भी पढ़ा, जिसमें उन्होंने डॉ. कल्बे सादिक की मौत को अपनी निजी क्षति बताया।
जलसे में शिरकत करने आये डॉ.कल्बे सादिक के बेटे डॉ. सिब्तेन नूरी ने अपने मरहूम वालिद की यादों को उनके चाहने वालों के बीच साझा किया। जलसे में बोलते हुए रिटायर्ड आईएएस अनीस अंसारी ने कहा कि डॉ. कल्बे सादिक़ तमाम खूबियों से लैस इंसान थे। वह मुस्लिम समाज में रिफार्मर की हैसियत से याद किये जायेंगे। पूर्व डीजीपी रह चुके रिज़वान अहमद ने कहा कि, डॉ. सादिक स्वयं में एक इंस्टिट्यूट थे। मेराज हैदर ने डॉ. काल्बे सादिक के जीवन से जुड़े कई अनछुए पहलुओं पर रोशनी डाली। कार्यक्रम का संचालन हसन काज़मी ने किया। इस दौरान शहर की तमाम शख्सियतें मौजूद रहीं।