इन्सान थे कभी मगर अब ख़ाक हो गये, ले ऐ जमीन हम तेरी ख़ुराक हो गये। रखेंगे हमको चाहने वाले संभाल के, हम नन्हे रोज़ेदार की मिस्वाक हो गये। यह शेर शायर मुनव्वर राना ने मरहूम डा.कल्बे सादिक़ के ताज़ियती जलसा प्रोगराम में बतौर सदर की हैसियत से पढ़ा तो ...
Read More »