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अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर किसी को भी धार्मिक उन्माद भड़काने की छूट नहीं 

   स्वदेश कुमार

धर्म आस्था और विश्वास की कसौटी पर चलता है। कोई विज्ञान या विद्वान अपने तर्को से इसे ‘काट’ नहीं सकता है। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती हैं कि धर्म भारतीय संस्कृति और भारतीय दर्शन की प्रमुख संकल्पना है। इसी लिए तो ‘धर्म’ शब्द का पश्चिमी देशों की भाषाओं में किसी समतुल्य शब्द का पाना बहुत कठिन है। साधारण शब्दों में धर्म के बहुत से अर्थ हैं जिनमें से कुछ ये हैं- कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण, सद्-गुण आदि। धर्म का शाब्दिक अर्थ होता है,’धारण करने योग्य’ सबसे उचित धारणा, अर्थात जिसे सबको धारण करना चाहिये। हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, जैन या बौद्ध आदि धर्म न होकर सम्प्रदाय या समुदाय मात्र हैं। ‘सम्प्रदाय’ एक परम्परा के मानने वालों का समूह है। ऐसा माना जाता है कि धर्म मानव को मानव बनाता है।

अपने देश का संविधान सभी धर्मो के लोगों को अपने-अपने धर्म का पालन करने की पूरी आजादी देता है तो दूसरे के धर्म का सम्मान करने की बात भी संविधान में ही कही गई है। अपने देश की यही विशेषता तो उसे दुनिया के अन्य देशों से अलग पहचान दिलाती है, लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि धर्म को लेकर लड़ाई-झगड़े ही नहीं युद्ध भी होते रहे हैं, क्योंकि जहां एक तरफ अधिकांश लोग अपने-अपने धर्मो का पालन करते रहते हैं तो कुछ लोग इससे इत्तर दूसरे सम्प्रदाय के धर्म के खिलाफ जहर उगलने से बाज नहीं आते हैं। भारत ही नहीं दुनिया भर में फैला आतंकवाद भी इसी की देन है।

समस्या यह है कि जब किसी दूसरे सम्प्रदाय का व्यक्ति दूसरे के धर्म पर छींटाकशी करता है तो उसके पक्ष में तमाम लोग यह कहते हुए खड़े हो जाते हैं कि यह अभिव्यक्ति की आजादी है,जो हमें संविधान से मिली है। धार्मिक विवाद को राजनैतिक रंग दे दिया जाता है,परंतु समस्या तब ज्यादा गंभीर हो जाती है जब किसी धर्म का अपमान करने वाला स्वयं उस धर्म से जुड़ा होता है। उसी धर्म में जन्म लेता है। ऐसी ही समस्या से आजकल मुस्लिम समाज को दो-चार होना पड़ रहा है और इसकी जड़ में है शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी, जिन्होंने कुरान की 26 आयतों को बदलकर एक नई कुरान तैयार की है। वसीम रिजवी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने द्वारा लिखी गई कुरान की एक कॉपी भी भेजी है, साथ ही प्रधानमंत्री से अपील की है कि वह हिंदुस्तान के सभी मदरसों में यही कुरान पढ़ने की इजाजत दें। रिजवी ने पीएम को पत्र तब लिखा जबकि कुछ समय पूर्व ही सुप्रीम कोर्ट ने रिजवी की इसी से संबंधित याचिका को खारिज करते हुए उनके ऊपर जुर्माना भी ठोक दिया था।

शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ऐसा क्यों कर रहे हैं। यह बात किसी से छिपी नहीं हैं। रिजवी का विवादों से लम्बा नाता रहा है। कुछ लोग रिजवी को भूमाफिया भी कहने से परहेज नहं करते हैं। रिजवी की एक खासियत यह भी है कि वह जिस दल की भी सरकार बनती हैं,उससे नजदीकियां बढ़ाने में देरी नहीं लगाते हैं। जो काम कल तक वह बसपा-सपा के आकाओं को खुश करने के लिए किया करते थे,वही काम आज वह बीजेपी को खुश करने के लिए कर रहे हैं। इसको लेकर मुस्लिम समुदायों में हलचल मची हुई है। तमाम मुस्लिम धर्म गुरू और मौलाना यह मानने को तैयार ही नहीं हैं कि यह उनकी (रिजवी) अभिव्यक्ति की आजादी है।शिया धर्म गुरू दो टूक कहते हैं कि कुरान में आयात तो क्या एक शब्द भी बदला नहीं जा सकता। यह हमारे खुदा की कुरान है।

बहरहाल, बात रिजवी के विवादित बयानों की कि जाए तो रिजवी का विवादों से पुराना नाता है। कुरानों की 26 आयतें हटाने की बात करने वाले रिजवी ऐसे ही कई विवादित बयान दे चुके हैं। उनके विवादित बयानों की लिस्ट काफी लम्बी है। रिजवी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि दिल्ली की भोली-भाली जनता आतंकी जाल के फंस गई। अरविंद केजरीवाल पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा था कि दिल्ली की मुगलई फतह इस्लामिक कट्टरपंथियों की साजिश की कामयाबी है। सीएए और एनआरसी का जब ओवैसी की पार्टी विरोध कर रही थी, तब रिजवी ने विवादित बयान देते हुए कहा था कि ओवैसी बंधुओं के बाप-दादाओं ने अपनी लैला के लिए ताजमहल बनवाया था।

लखनऊ में आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत के जनसंख्या नियंत्रण कानून की वकालत करने की खबर आने के बाद ही रिजवी ने भी जनसंख्या नियंत्रण कानून का समर्थन करते हुए देश में टू चाइल्ड पॉलिसी जल्द से जल्द लागू करने की भी मांग कर डाली थी। रिजवी ने यहां तक कह दिया था कि कुछ लोगों का मानना है कि बच्चे पैदा होना निजामे कुदरत है और उसको रोकना नहीं चाहिए। मगर हम ये समझते हैं कि जानवरों की तरह ज्यादा बच्चे पैदा करना समाज और हिंदुस्तान की बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए भी बुरा है।

शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी के हजरत-ए-आयशा पर फिल्म बनाए जाने से मुस्लिम तबके के लोग काफी नाराज हो गए थे। वसीम रिजवी पर मुसलमानों के मजहबी जज्बात भड़काने और गंगा जमुनी तहजीब को मजरूह करने का इल्जाम लगाया गया था,रिजवी की खिलाफ देशभर में जगह-जगह प्रदर्शन भी हुए थे। शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी ने 2019 मेें एक बार फिर सनसनी खेज बयान देते हुए कहा था कि अगर साल 2019 में नरेंद्र मोदी दोबारा देश के प्रधानमंत्री नहीं बने, तो मैं अयोध्या में राम मंदिर के गेट के पास जाकर आत्महत्या कर लूंगा। रिजवी ने जारी किए गए अपने बयान में कहा कि राष्ट्र हर मजहब से ऊपर होता है।

रिवजी के कुरान को लेकर दिए गए विवाद के बाद तमाम मुस्लिम धर्म गुरूओं ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि कुरान इस्लाम की सर्वोच्च किताब है, जो अल्लाह के संदेशों का संकलन है। मसलकों, फिरकों और दूसरी तरह के मतभेदों के बावजूद तमाम मुसलमानों का यह अकीदा है कि कुरान एक आसमानी और अल्लाह के द्वारा भेजी गई अंतिम किताब है। इसे अल्लाह ने अपने फरिश्ते (देवदूत) जिब्राइल के जरिए पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मुहम्मद साहब तक पहुंचाया।  मुसलमानों का अकीदा है कि कुरान में न तो अतिरिक्त एक शब्द जोड़ा जा सकता है और न ही हटाया जा सकता है। यही वजह है कि पिछले दिनों जब वसीम रिजवी ने कुरान की कुछ आयतों को हटाने की बात की तो शिया-सुन्नी, देवबंद-बरेलवी सहित तमाम मुस्लिम उसके खिलाफ एकजुट नजर आए। प्रतिक्रिया व्यक्त करने वाले धर्म गुरूओं में मौलाना कल्बे जव्वाद, मौलाना यासूब अब्बास, रजा रिजवी, मौलाना सैफ अब्बास नकवी, समाज सेवी इम्तियाज अंसारी आदि प्रमुख हैं।

उधर, इससे पहले ही मार्च के महीने में सुप्रीम कोर्ट में नई कुरान की 26 आयातोें को लेकर रिट दायर करने के बाद एक बड़े इस्लामी सम्मेलन में, जिसमें शिया और सुन्नी समुदाय के उलेमा शामिल हुए थे, ने एक साथ घोषणा कर कहा था कि रिजवी को  इस्लाम से खारिज किया जाता है और मुल्क के किसी क्रबिस्तान में दफन नहीं होने दिया जाएगा। इतना ही नहीे उनकी इस हरकत पर उनके परिवार ने भी उनसे सभी नाते तोड़ लिए थे। रिजवी के स्वयं कहा था कि परिवार ने मेरा साथ छोड़ दिया, पत्नी, बच्चों, भाई सबने साथ छोड़ दिया हैं उनके भाई ने वीडियो जारी कर कहा था कि वसीम से परिवार का संबंध नहीं है। वे नहीं आते, वे इस्लाम विरोधी हो गए हैं और वे जो कह रहे हैं, उसका परिवार से कोई संबंध नही है।

लब्बोलुआब यह है कि वसीम रिजवी ने जो कुछ किया है उसकी यदि कोई सजा है तो उन्हें वह सजा संविधान के दायरें में मिलनी ही चाहिए। मुस्लिम धर्मगुरूओं की नाराजगी गलत नहीं है। बस फर्क इतना है कि यह तब इतना मुखर नहीं होेते हैं जब किसी दूसरे धर्म की आस्था पर ऐसे लोग चोट पहुंचाते हैं।

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