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डा. जगदीश गांधी ने 12वीं बोर्ड परीक्षायें कराने के लिए पीएम को लिखा पत्र

लखनऊ। सिटी मोन्टेसरी स्कूल के संस्थापक व प्रख्यात शिक्षाविद् डा. जगदीश गाँधी ने पीएम नरेन्द्र मोदी से अपील की है कि भावी पीढ़ी के भविष्य को ध्यान रखते हुए एवं उनके दो वर्षीय कठिन परिश्रम के वास्तविक परिणाम के दृष्टिगत कक्षा-12 की बोर्ड परीक्षाएं अगस्त माह में अवश्य कराई जाएं। आज एक ऑनलाइन प्रेस कान्फ्रेन्स में पत्रकारों से बातचीत करते हुए डा. गाँधी ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर उन्होंने कक्षा-12 की निरस्त की गई बोर्ड परीक्षाओं पर पुनर्विचार करने की अपील की है। उन्होंने कहा कि कक्षा-12 की बोर्ड परीक्षाओं के लिए अगस्त का महीना सर्वाधिक उपयुक्त है और यह न केवल छात्रों के हित में है बल्कि राष्ट्र हित में भी है।

पत्र के माध्यम से डा. गाँधी ने कहा है कि सीबीएसई को 12वीं बोर्ड परीक्षा आयोजित करने का निर्णय लेना चाहिए, जिससे कड़ी मेहनत करने वाले मेधावी छात्रों के साथ अन्याय को रोका जा सके। यदि देश भर के लाखों मेधावी छात्रों को अपनी बौद्धिक प्रतिभा व शैक्षणिक प्रतिभा को प्रदर्शित करने का अवसर नहीं मिलेगा तो उनके कैरियर व भविष्य की संभावनाओं पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।

डा. गाँधी ने अपने कहा है कि 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा को रद्द करने से निर्णय से उत्पन्न परिस्थितियों में सभी छात्रों का एक वैध एवं पारदर्शी मूल्यांकन संभव नहीं है। ऐसे में देश भर के मेधावी छात्र उच्च शिक्षा के लिए देश-विदेश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में अपने प्रवेश को लेकर चिंतित है। उनका कहना है कि यदि स्कूलों द्वारा दिये गये अंकों के आधार पर परीक्षाफल घोषित किया जाता है, तो ऐसे में उन मेधावी छात्रों के साथ अन्याय होगा, जिन्होंने 2 साल तक लगातार बोर्ड परीक्षा की तैयारी की है। इसके साथ ही एक डर यह भी है कि एवं वैध एवं पारदर्शी मूल्यांकन प्रणाली के अभाव में स्कूल जहां मनमानी रूप से बच्चों को नंबर दे सकते हैं, तो वहीं मेधावी छात्रों का कमजोर छात्रों के साथ मूल्यांकन करना भी मेधावी छात्रों के साथ अन्याय होगा।

पत्रकारों से बातचीत करते हुए डाॅ. गाँधी ने कहा कि कक्षा 12 की बोर्ड परीक्षा के अंक विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए कट-आफ प्रतिशत को परिभाषित करते हुए प्रवेश प्रक्रिया को सरल, पारदर्शी और निष्पक्ष बनाता है। इसलिए अगर छात्रों की बोर्ड परीक्षा नहीं करवायी जाती तो विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए उनका कट ऑफ प्रतिशत कैसे निर्धारित होगा? और कट ऑफ प्रतिशत निर्धारित न होने की दशा में छात्रों की एक बहुत बड़ी संख्या स्नातक प्रवेश परीक्षा में शामिल होगी और उस दशा में किसी भी विश्वविद्यालय के लिए इतनी बड़ी संख्या में छात्रों की प्रवेश परीक्षा आयोजित करना बहुत टेढ़ी खीर साबित हो सकती है। विगत वर्ष दिल्ली विश्वविद्यालय एवं उससे सम्बद्ध महाविद्यालयों में 5 लाख 63 हजार छात्रों ने एडमीशन हेतु आवेदन किया था, जिसमें से मात्र 57,312 छात्रों को एडमीशन मिला। यदि विश्वविद्यालयों द्वारा देश भर के लाखों-करोड़ों बच्चों की प्रवेश परीक्षा करायी जाती है तो बोर्ड परीक्षा कराने में भी कोई दुविधा नहीं होनी चाहिए।

डाॅ. गाँधी ने याद दिलाया कि सीबीएसई की 12वीं की परीक्षा को रद्द करते समय बोर्ड द्वारा इस बात का विकल्प खुला रखा गया था कि आने वाले समय में कोरोना महामारी के नियंत्रित होने पर बोर्ड परीक्षाओं को आयोजित करवाया जा सकता है। नेशनल टेस्टिंग एजेन्सी (एनटीए) अगले सप्ताह तक तक नीट एवं जेईई से जुड़ी परीक्षा का कार्यक्रम जारी करने जा रही है। ऐसे में, कक्षा-12 की बोर्ड परीक्षा को निरस्त करना छात्रों के लिए अन्याय होगा।

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