लखनऊ। यूपी में चर्चा आम है कि पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर और इनकी अधिवक्ता पत्नी नूतन ठाकुर शासन-सत्ता में ऊंचा मुकाम पाने के लिए लम्बे समय से विपक्षी दलों के इशारों पर सत्ताधारी राजनैतिक दलों के खिलाफ मुहिम चलाने का काम कुछ और लोगों को साथ लेकर अपने सेट राजनैतिक एजेंडे के तहत कर रहे हैं।
ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि दूसरों को आदर्शों का पाठ पढ़ाने वाले अमिताभ ठाकुर खुद उन आदर्शों का पालन करने से कोसों दूर क्यों है? सबाल यह भी है कि खुद को समाजसेवी और और आरटीआई एक्टिविस्ट कहने वाले अमिताभ आखिर क्यों और कैसे सामाजिक जीवन में दोहरे मापदंड अपनाते रहते हैं और यह दोहरे मापदंड देश की तेजतर्रार और निष्पक्ष मीडिया जिनमें PTI और IANS जैसी न्यूज़ एजेंसियां भी शामिल हैं, को दिखाई नहीं देते हैं और यह मूर्धन्य मीडिया कतिपय कारणों से अमिताभ को महिमामंडित करते हुए एकतरफा खबरें छापती रहती है ? अमिताभ का दूसरा पक्ष दिखाना भी क्या इसी मीडिया की नैतिक जिम्मेदारी नहीं है?
साल 2019 में तत्कालीन आईपीएस पुलिस महानिरीक्षक अमिताभ ठाकुर ने नागरिक सुरक्षा निदेशालय के संयुक्त निदेशक और प्रथम अपीलीय अधिकारी के रूप में पत्र प्रेषित कर निदेशालय की बैठकों की सूचना देने से साफ मना कर दिया था. ऐसे में बड़ा सबाल यह है कि साल 2019 में नागरिक सुरक्षा निदेशालय की बैठकों की सूचना देने से मना करने वाले तत्कालीन आईपीएस अमिताभ ठाकुर क्या साल 2021 में अपनी अनिवार्य सेवानिवृत्ति की बैठकों की सूचना केंद्र और राज्य सरकार से मांगने के एथिकल आधार पर पात्र है? क्या ऐसे दोहरे होते हैं समाजसेवियों और आरटीआई एक्टिविस्टों के एथिक्स?
भले ही अब बीसवीं सदी का मीडिया न होकर 21वीं सदी का मीडिया हो और अब मीडिया-एथिक्स में कितनी भी गिरावट आ गई हो और पीत पत्रकारिता कितने भी चरम पर हो लेकिन क्या मीडिया को यह विशेषाधिकार प्राप्त हो गया है कि वह दोहरे मापदंड अपनाने वाले व्यक्तियों का एक पक्ष दिखाकर उसे समाजसेवी और आरटीआई एक्टिविस्ट के रूप में स्थापित करने का काम एक पार्टी बनकर निरंतर करती रहे और मीडिया निहित स्वार्थ साधकर उसी व्यक्ति का दूसरा पक्ष जानबूझकर छुपाये रहे? देशहित और समाजहित में इस प्रश्न का उत्तर ढूंढा जाना नितांत आवश्यक है।