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गैस की बढ़ती कीमतों से परेशान गरीब लकड़ी के चूल्हों पर खाना बनाने को मजबूर

रसोई गैस की कीमतों में लगातार हो रही बढ़ोतरी केन्द्र सरकार की महत्वाकांक्षी उज्जवला योजना को पलीता लगा रही है। जिसके कारण गरीब वर्ग एक बार फिर परंपरागत लकड़ी और गोबर के ईंधन वाले चूल्हों पर खाना बनाने के लिए मजबूर होने लगा है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र माेदी ने एक मई 2016 को पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया से ‘उज्ज्वला योजना’ की शुरुआत की थी। इस योजना का उद्देश्य गरीब परिवार की महिलाओं को सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण में भोजन पकाने की उपलब्धता को सुनिश्चित करना था। योजना के अनुसार लाखों परिवारों को सरकार ने मुफ्त गैस कनेक्शन की सुविधा उपलब्ध कराई थी लेकिन जनवरी से लेकर जुलाई तक सात बार घरेलू गैस के दाम बढ़ने से त्रस्त होकर गरीब वर्ग सिलेंडर बेच कर फिर से चूल्हे की ओर रुख करने लगा है।

घरों में काम कर गुजारा करने वाली जानकी का कहना है कि जहां पहले सब्सिडी मिलती थी अब सब्सिडी पूरी तरह खत्म हो गई, ऊपर से मंहगाई की मार जिससे घरों में देसी चूल्हे का प्रचलन फिर से वापस लौट आया है।

उन्होने कहा कि एक जुलाई से घरेलू गैस सिलेंडर की कीमत में 25.50 रुपये का इजाफा होने से घरेलू गैस सिलेंडर अब 832.50 रूपए का हो गया है। जबकि मई 2016 में रसोई गैस सिलेंडर के दाम महज 509 रूपए थे। यानि तब से लेकर अब तक कुल 323.50 पैसे प्रति सिलेंडर बढ़ गए हैं जबकि एलपीजी गैस पर पहले सब्सिडी भी मिलती थी जो कि अब सरकार ने पूरी तरह से खत्म कर दी है।

जनवरी से लेकर एक जुलाई तक सात बार गैस के दाम बढ़ाए जा चुके हैं। जिसमें कुल 140.50 रूपए गैस सिलेंडर महंगा हो चुका है। अप्रैल 2020 से घरेलू गैस सिलेंडर पर मिलने वाली सब्सिडी को पूरी तरह से खत्म कर दिया है। सरकार ने शुरू में स्वेच्छा से सब्सिडी छोड़ने के लिए सक्षम लोगों से आह्वान करते हुए तर्क दिया था कि सरकार बड़े लोगों के सब्सिडी छोड़ने से गरीब और जरूरतमंद लोगों को भी रसोई गैस उपलब्ध करा रही है। अब महंगाई की सबसे ज्यादा मार गरीबों पर पड़ रही है, जब सिलेंडर रिफिल नही हुआ तो उसे बेच कर फिर से चूल्हे पर खाना बनाने के लिए विवश होना पड़ रहा है।

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