येरेवन। अपनी दो दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर आर्मेनिया पहुंचे भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर का पहला दिन बेहद उपयोगी रहा। आर्मेनिया की राजधानी येरेवन में उन्होंने क्रमश: अर्मेनियाई विदेश मंत्री, नेशनल असेंबली के अध्यक्ष तथा अर्मेनियाई प्रधानमंत्री के साथ द्विपक्षीय बैठकें कर महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की।
द्विपक्षीय बैठकों के बाद आयोजित एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में डॉ. जयशंकर ने कहा हमने अपने द्विपक्षीय संबंधों की व्यापक समीक्षा की, हमने क्षेत्रीय और बहुपक्षीय मुद्दों पर चर्चा की और सबसे महत्वपूर्ण रूप से विभिन्न स्तरों पर सहयोग और आदान-प्रदान के भविष्य के रोडमैप पर सहमति व्यक्त की।
आर्मेनियाई नेताओं के साथ हुई चर्चा को लेकर अपनी राय साझा करते हुए विदेश मंत्री (ईएएम) ने इस बात पर प्रकाश डाला कि राजनीतिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों का विस्तार हुआ है लेकिन दोनों देशों के बीच आर्थिक और वाणिज्यिक सहयोग को मजबूत करने के लिए अभी भी बहुत कुछ किया जा सकता है।
प्रत्यक्ष संपर्क (भूमि और वायु दोनों के माध्यम से) की वर्तमान कमी के बावजूद, विदेश मंत्री डा. जयशंकर और अर्मेनियाई विदेश मंत्री अरारत मिर्जोयान ने माल और वाणिज्यिक आदान-प्रदान में सुधार के लिए ईरान में चाबहार बंदरगाह के उपयोग पर चर्चा की। डॉo जयशंकर ने एक ट्वीट में यह भी उल्लेख किया इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर सहित कनेक्टिविटी को मजबूत करने में हमारे हित साझा हैं, जिसमें चाबहार बंदरगाह भी शामिल है।
सरकार के सबसे वरिष्ठ सदस्यों के साथ द्विपक्षीय वार्ता के साथ-साथ डॉ. जयशंकर ने दोनों देशों के लोगों के बीच सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों पर भी विशेष ध्यान दिया। उन्होंने आर्मेनिया में पढ़ रहे 3000 से अधिक भारतीय छात्रों के कल्याण के लिए अर्मेनियाई सरकार को धन्यवाद दिया।
ट्वीट्स की एक श्रृंखला में विदेश मंत्री डा. जयशंकर ने ऐतिहासिक मटेनादारन पुस्तकालय की अपनी यात्रा की झलक दिखाई, जो प्राचीन अर्मेनियाई पांडुलिपियों का दुनिया का सबसे बड़ा भंडार है। उन्होंने संरक्षित पांडुलिपियों की छवियों के साथ ट्वीट किया आर्मेनिया-भारत कनेक्ट येरेवन में मटेनादारन पुस्तकालय में दिखाई देता है। पहला अर्मेनियाई अखबार और संविधान जो मद्रास (चेन्नई) में प्रकाशित हुआ था।
डा. जयशंकर ने महाभारत की एक प्राचीन संस्कृत प्रति की तस्वीरें भी ट्वीट की, जो पुस्तकालय में भी प्रदर्शित है। मतेनादरन पुस्तकालय की यात्रा के बाद उन्होंलने आर्मेनिया की राष्ट्रीय गैलरी का भी दौरा किया जहां उन्होंने प्रसिद्ध अर्मेनियाई कलाकार सरकिस खाचटुरियन के कार्यों में गहरी रुचि ली। वे कैनवास पर तेल का उपयोग कर अजंता और एलोरा की गुफाओं के चित्र बनाने के लिए प्रसिद्ध हैं।