उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले सूबे की राजनीति जोड़-तोड़ और गठबंधन के सभी समीकरण को आजमाने में लगी है। इसी को आगे बढ़ाते हुए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 16 दिसंबर को अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव से मुलाकात की और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के साथ गठबंधन की घोषणा की। समाजवादी पार्टी के भीतर नियंत्रण के लिए संघर्ष शुरू होने के लगभग पांच साल बाद दोनों नेताओं के बीच ये पहली औपचारिक, आमने-सामने की बैठक हुई है।
अब तक के तमाम चुनावी सर्वे में अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी यूपी विधानसभा चुनाव में सीएम योगी के नेतृत्व वाली बीजेपी को चुनौती देती नजर आ रही है। ऐसे में अखिलेश यादव ‘यादव वोट बैंक’ को पूरी तरह अपने पाले में करने के लिए प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) से लेकर गैर-ओबीसी वोटों के लिए सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के साथ गठबंधन का औपचारिक ऐलान कर चुके हैं।
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आरएलडी, सुभासपा, महानदल, एनसीपी, जनवादी सोशलिस्ट पार्टी और अपना दल (कृष्णा पटेल) के साथ गठबंधन तय कर लिया है। इसके अलावा भागीदारी संकल्प मोर्चा में शामिल रहे कई दलों के साथ भी सपा ने तालमेल कर रखा है। वहीं, शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी को एडजस्ट करने और दलित नेता चंद्रशेखर आजाद की ‘बहुजन आजाद समाज पार्टी’ के साथ गठबंधन करने की भी चर्चाएं हैं। इसके अलावा आम आदमी पार्टी के भी सपा के साथ आने की संभावना है। ऐसे में तकरीबन दस से ज्यादा दल सपा गठबंधन में शामिल हो सकते हैं।
बावजूद इसके सपा कितने सीटों पर लड़ेगी और सहयोगी दलों के लिए कितनी सीटें छोड़ेगी यह बात अभी सामने नहीं आ सकी है। हालांकि, यह बात साफ है कि अखिलेश यादव ने इस बार बड़े दलों के बजाय छोटे दलों के साथ गठबंधन का फैसला किया है। ऐसे में साफ है कि सपा 300 से ज्यादा सीटों पर खुद चुनाव लड़ेगी और बाकी 80 से 90 सीटों में सहयोगी दलों को एडजस्ट करने की कोशिश की जा सकती है।
हालांकि बीजेपी से नाता तोड़कर इस बार सपा के साथ आए सुहेलदेव समाज पार्टी के प्रमुख ओमप्रकाश राजभर ने सीट शेयरिंग को लेकर कोई दावा तो नहीं किया है, लेकिन सूत्रों की मानें तो उनकी पार्टी की ओर से 20 सीटों की डिमांड की जा रही है। ऐसे में लगता है कि राजभर वोटों के समीकरण को देखते हुए अखिलेश उन्हें 10 से 12 सीटें दे सकते हैं। उत्तर प्रदेश की सत्ता में वापसी के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव छोटे-छोटे दलों को मिलाकर अपना कुनबा बढ़ाने में जुटे हुए हैं। बीजेपी से चुनावी मुकाबले के लिए अखिलेश जातीय आधार वाले आधा दर्जन दलों के साथ गठबंधन फाइनल कर चुके हैं। लेकिन, सीट शेयरिंग को लेकर अभी तक कोई फॉर्मूला नहीं आ सका है। ऐसे में सहयोगी दलों के साथ सीट बंटवारा करना सपा के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकता है।
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आरएलडी, सुभासपा, महानदल, एनसीपी, जनवादी सोशलिस्ट पार्टी और अपना दल (कृष्णा पटेल) के साथ गठबंधन तय कर लिया है। इसके अलावा भागीदारी संकल्प मोर्चा में शामिल रहे कई दलों के साथ भी सपा ने तालमेल कर रखा है। वहीं, शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी को एडजस्ट करने और दलित नेता चंद्रशेखर आजाद की बहुजन आजाद समाज पार्टी के साथ गठबंधन करने की भी चर्चाएं हैं। इसके अलावा आम आदमी पार्टी के भी सपा के साथ आने की संभावना है।
ऐसे में तकरीबन दस से ज्यादा दल सपा गठबंधन में शामिल हो सकते हैं। महान दल और जनवादी पार्टी सोशलिस्ट सबसे पहले सपा के साथ आए, लेकिन इन दोनों दलों ने सीटों की कोई डिमांड नहीं रखी है. ऐसे में माना जा रहा है कि महान दल और जनवादी पार्टी दोनों ही सपा के चुनाव निशान पर किस्मत आजमा सकते हैं। जनवादी पार्टी के अध्यक्ष डॉ. संजय 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा के टिकट पर चंदौली सीट से लड़ चुके हैं जबकि महान दल ने कहा कि शीट शेयरिंग को लेकर किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं है।
सपा के गठबंधन में सबसे ताकतवर सहयोगी आरएलडी है, जिसका सियासी आधार पश्चिमी यूपी के इलाके में है। किसान आंदोलन के चलते आरएलडी को संजीवनी मिली है। ऐसे में आरएलडी की डिमांड 50 से ज्यादा सीटों की थी, लेकिन अखिलेश यादव और जयंत चौधरी की मुलाकात के बाद सीट बंटवारे का फॉर्मूला निकल आया है। ऐसे में माना जा रहा है कि सपा आरएलडी को करीब 36 सीटें दे सकती है। आम आदमी पार्टी यूपी में 117 सीटों पर अपनी कैंडिडेट घोषित कर चुकी है, लेकिन अब सपा के साथ गठबंधन करने की चर्चाएं है।
आम आदमी पार्टी के यूपी प्रभारी संजय सिंह ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव से मुलाकात भी की है और गठबंधन के संकेत भी दिए हैं। ऐसे में सपा यूपी में आम आदमी पार्टी को कितनी सीटें देगी यह बात अभी साफ नहीं है। यूपी में अखिलेश यादव के साथ दलित नेता चंद्रशेखर की पार्टी के साथ भी चुनाव लड़ने की संभावना है। हालांकि पिछले दिनों चंद्रशेखर, अखिलेश यादव से मिलने की कोशिश की थी लेकिन यह मुलाकात हो नहीं सकी। यदि इन दोनों नेताओं में बात बन जाती है तो दलित वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश की जाएगी।
किसी भी फार्मूले के तहत सीट शेयरिंग के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव के समक्ष असंतुष्टों को साधे रखने की बड़ी चुनौती होगी। एक लंबे अरसे से सपा के बैनर तले चुनावों की तैयारी कर रहे सक्रिय कार्यकर्ताओं का यदि कहीं से भी टिकट काट कर सहयोगी दलों को दिया गया तो वे पार्टी के प्रति और संभावित प्रत्याशियों के प्रति कितने वफादार रह सकेंगे कोई कह नहीं सकता। सहयोगी दलों को भी यदि मनमुताबिक सीटें न दी गईं तो वे भी अखिलेश के लिए चुनौती खड़ी कर सकते हैं। सभी समझौतों के बाद पाला बदलने की समस्या से निपटना भी चुनौती होगी।
अभी हाल ही में लखनऊ में हुई अमित शाह की रैली में आरक्षण को लेकर कोई ठोस ऐलान न होने से निषाद समाज के लोगों में भी गुस्सा देखने को मिला। निषाद पार्टी के समर्थक भाजपा को वोट न देने की बात कहते दिखाई दिए। रैली के दौरान निषाद समाज के लिए आरक्षण की घोषणा भी होने वाली थी लेकिन ऐसा कोई ऐलान न होने के कारण निषाद समाज के लोगों में नाराजगी दिखाई दी। वहीं, निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने इसको लेकर नाराजगी जताई है और सीएम योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखा है। पत्र में निषाद पार्टी प्रमुख ने कहा है, गृह मंत्री ने कहा कि सरकार बनने पर हमारे मुद्दों का समाधान होगा, लेकिन कुछ मुद्दों को सरकार बनने से पहले हल निकलेगा तो विशेष फायदा निषादों को होगा, ये मुद्दा आरक्षण का है।
अमित शाह की रैली में आरक्षण को लेकर कोई ठोस ऐलान न होने से निषाद समाज के लोगों में भी गुस्सा देखने को मिला। निषाद पार्टी के समर्थक भाजपा को वोट न देने की बात कहते दिखाई दिए। वहीं, संजय निषाद ने सीएम योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर कहा है कि अगर भाजपा को निषाद समाज का वोट चाहिए, उन्हें इस समाज के लोगों का ख्याल भी रखना होगा।