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छठे चरण में कई बाहुबली नेता भी है मौजूद, पूर्वांचल में मुख्तार के बेटे सहित कई बाहुबली ठोंक रहे हैं ताल

भाजपा ने अतीक और मुख्तार के बहाने समाजवादी पार्टी को घेरे रखा। अतीक-मुख्तार का नाम लेकर मोदी-योगी सहित पूरी बीजेपी ने समाजवादी पार्टी को दबंगों-माफियाओं की पार्टी साबित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। शायद ही इससे पूर्व ऐसा कोई चुनाव हुआ होगा, जो पूरी तरह माफियाओं के इर्दगिर्द घूमता रहा हो।

  • Published by- @MrAnshulGaurav, Written by- Ajay Kumar, Tuesday, 01 Febraury, 2022
     अजय कुमार,लखनऊ

उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के पांच चरण पूरे हो चुके हैं। अब मात्र दो चरणों का चुनाव बाकी रह गया है। सत्ता की जो लड़ाई पश्चिम से शुरू हुई थी, वह अब मोदी-योगी के गढ़ पूर्वांचल में पहुंच चुकी है।

पूर्वांचल का नाम सामने आते ही तमाम ऐसे चेहरे मन मस्तिष्क में कौंधने लगते हैं,जिनका नाम लिए बिना पूर्वांचल की पूरी राजनीति का खाका नहीं खींचा जा सकता। इसमें कई बड़े जमीनी तो कुछ रॉबिनहुड टाइप के नेता भी हैं।

पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर, पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी, सांसद रहे मुरली मनोहर जोशी, अनिल कुमार शास्त्री वाराणसी से सांसद रह चुके हैं। प्रधानमंत्री मोदी भी पूर्वांचल में वाराणसी से दो बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। बड़े राज नेताओं से इतर सफेदपोश माफियाओं, यानी अपराध की दुनिया से राजनीति की सीढ़ियाँ चढ़ने वाले बाहुबलियों की बात की जाए, तो पूर्वांचल की पहचान दबंगई के लिए भी खूब होती है। 2022 का तो पूरा का पूरा चुनाव ही पूर्वांचल के दो बाहुबलियों अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी के नाम पर ही लड़ा गया।

भाजपा ने अतीक और मुख्तार के बहाने समाजवादी पार्टी को घेरे रखा। अतीक-मुख्तार का नाम लेकर मोदी-योगी सहित पूरी बीजेपी ने समाजवादी पार्टी को दबंगों-माफियाओं की पार्टी साबित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। शायद ही इससे पूर्व ऐसा कोई चुनाव हुआ होगा, जो पूरी तरह माफियाओं के इर्दगिर्द घूमता रहा हो। अब तो छठे और सातवें चरण में चुनाव ही उन जिलों में हो रहा है, जहां कभी अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी की तूती बोला करती थी। मुख्तार पूर्वांचल के जिला गाजीपुर की मऊ विधान सभा सीट से विधायक हैं।

 2009 में वाराणसी से मुख्तार बीजेपी के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ लोकसभा चुनाव तक लड़ चुके थे। मुख्तार गैंग की कई जिलों में ठेकों से लेकर जमीन की खरीद फरोख्त और रंगदारी से करोड़ों की कमाई होती थी, जो योगी सरकार के आने के बाद धीमी पड़ गई है। मुख्तार का अवैध कारोबार का धंधा योगी शासनकाल में चौपट हो चुका है।

मुख्तार अंसारी मौजूदा विधानसभा सदस्य हैं और काफी समय से बांदा जेल में हैं। पहले उनकी जेल से ही चुनाव लड़ने की तैयारी थी, लेकिन अब उनके बड़े बेटे अब्बास अंसारी ने सुभासपा के टिकट पर उनकी सीट, मऊ सदर से नामांकन कर दिया है। आगरा जेल में बंद विजय मिश्र भी विधायक हैं और पूर्वांचल में भदोही जिले की ज्ञानपुर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। उत्तर प्रदेश की मऊ विधानसभा सीट फिर सुर्खियों में है। पिछले पांच चुनाव से यहां मुख्तार का कब्जा है। इस बार उन्होंने यह सीट अपने बेटे के लिए छोड़ दी है। भाजपा अपराध के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति के सहारे आत्मविश्वास से भरी है। राजनीतिक समीकरणों के बीच आम मतदाता अपना नफा-नुकसान तलाश रहा है। दलित और मुस्लिम बाहुल्य इस सीट पर कभी कमल नहीं खिल सका है। यहां तक कि 2017 के चुनाव में जिले की चार में से तीन सीटों पर भाजपा जीती, लेकिन मऊ में सफलता नहीं मिल पाई।

चुनाव के पहले तक विकास का मुद्दा हवा में तैरता रहता है, लेकिन चुनाव आते ही अपराधमुक्त क्षेत्र और विकास हवा में चले जाते हैं। यहां मुस्लिम वोटरों के सहारे मुख्तार अपनी वैतरणी पार लगाते आए हैं। 1993 में इस सीट पर बसपा ने कब्जा किया था। इसके बाद 1996 में बसपा से पहली बार मुख्तार अंसारी ने जीत हासिल की। तब से 2002, 2007 में निर्दल और 2012 में कौमी एकता दल से उन्होंने कब्जा बरकरार रखा। 2017 में फिर बसपा से मुख्तार ने जीत हासिल की। इस बार बांदा जेल में बंद मुख्तार ने यह सीट अपने बेटे अब्बास अंसारी के लिए छोड़ दी है। ऐसे में बदले समीकरण के बीच सियासी लड़ाई रोचक मोड़ पर आ खड़ी हुई है। राजनीतिक दलों के सामने मुख्तार के गढ़ को भेदना चुनौती है।

अबकी से सुभासपा की ओर से मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी इस बार मैदान में हैं। भारतीय जनता पार्टी ने अशोक सिंह को टिकट दिया है। वहीं कांग्रेस ने माधवेन्द्र बहादुर सिंह पर दांव खेला है। बहुजन समाज पार्टी ने अपने प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर को चुनाव मैदान में उतार दिया है। इस बार यहां मुकाबला कांटे का होने के आसार हैं।

मुख्तार अंसारी की तरह बाहुबली अतीक अहमद के खिलाफ भी योगी सरकार ने बड़ी कार्रवाई करते हुए उसके साम्राज्य को नेस्तानाबूत कर दिया है। अतीक और मुख्तार के बसपा और समाजवादी पार्टी से करीबी संबंध रहे हैं। मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव से इन बाहुबलियों के घनिष्ठ संबंध थे, लेकिन इस बार लम्बे समय के बाद यह दोनों बाहुबली चुनाव मैदान में सीधे तौर पर नजर नहीं आ रहे हैं। इसका यह मतलब नहीं है कि दोनों नेताओं ने राजनीति से तौबा कर ली हो। उक्त के अलावा भी पूर्वांचल की सियासत के कई नामी बाहुबली इस चुनाव में अलग-अलग तरीके से राजनीति में अपनी जड़े मजबूत करने में लगे हैं। प्रयागराज की पश्चिमी सीट से पांच बार विधानसभा चुनाव जीत चुके अतीक अहमद खुद तो गुजरात में जेल में हैं। उनके भाई भी फरार हैं। उनकी पत्नी ने असदुद्दीन औवेसी की पार्टी से नामांकन किया था, लेकिन बाद में उन्होंने नाम वापस ले लिया। इस पर परिजन इस बार चुनाव मैदान से पूरी तरह बाहर हैं।

पूर्वांचल के बाहुबली नेता धनंजय सिंह के चुनाव को लेकर भी काफी समय तक ऊहापोह रही। अंततः बिहार की सत्ताधारी पार्टी जद (यू) उन्हें यहां जौनपुर की मल्हनी सीट से लड़ा रही है। चंदौली की सैयदराजा से विधायक सुशील सिंह फिर से मैदान में हैं। उम्रकैद की सजा काट रहे पूर्व सांसद अशोक चंदेल का हमीरपुर की सियासत में लंबे समय से दबदबा रहा है। वह मौजूदा विधानसभा के लिए चुने गए थे, लेकिन जेल जाने के कारण उनकी सदस्यता निरस्त कर दी गई और वहां उप-चुनाव कराया गया। पर, इस बार के चुनाव में उन्होंने पत्नी राजकुमारी चंदेल को मैदान में उतार दिया। कांग्रेस ने उन्हें हमीरपुर सदर से प्रत्याशी बना कर चुनाव लड़ा दिया है।

बात पिछले विधानसभा चुनाव की करें, तो 2017 में 17वीं विधान सभा के लिए हुए चुनाव में कई बाहुबली जीत गए थे तो कुछ को हार का सामना करना पड़ा था। तब बाहुबली विजय मिश्र निषाद पार्टी से ज्ञानपुर विधान सभा सीट से जीते थे, जबकि मुख्तार अंसारी मऊ सदर से जीते थे। सुशील सिंह सैयदराजा सीट से विधायक बने। अमन मणि निर्दलीय जीते थे। अभय सिंह, धनंजय सिंह, जितेंद्र सिंह बब्लू, मोनू सिंह समेत कई दबंग चुनाव हार गए थे।

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