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माँ- ढाल बन खड़ी रहती है….

विनोद कुमार सीताराम दुबे

माँ अगर साथ हो तो सारी दुनिया अपनी-सी लगती है। माँ जब आंचल में छुपा ले तो बच्चे को लगता है कि बड़े-से-बड़ा ख़तरा भी अब उसका कुछ नहीं कर सकता। इंसान ज़िंदगी की धूप के थपेड़े खाने के बाद जब, माँ के पास थका- मांदा घर वापिस आए और ऐसे में माँ अपनी गोद में उसका सर रख ले, तो उस वक़्त वो असीम शांति और सुकून की गहरी छांंव पा जाता है। जीवन की सारी थकान उस वक़्त ग़ायब हो जाती है। मुम्बई के भांडुप में इंद्रजीत पुस्तकालय के संस्थापक और शिक्षक की एक कविता-

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