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पाॅलीथिन उपयोग करने पर सजा और जुर्माना

उत्तर प्रदेश में अब दैनिक जीवन में पाॅलीथिन उपयोग करने पर सजा और जुर्माना होगा। राज्य सरकार ने इस पर सख्त क़ानून बनाया है ताकि लोग पॉलिथीन से दूरी बना लें और पर्यावरण को बचाने में अपना सहयोग दे सके।

पाॅलीथिन उपयोग करने पर सजा और जुर्माना होगा

पर्यावरण को गहरा नुकसान पहुंचा रही पॉलिथीन पर अंकुश लगाने के लिए वर्ष 2000 में बनाए गये उ.प्र प्लास्टिक और अन्य जीव अनाशित कूड़ा कचरा (उपयोग और निस्तारण का विनियमन) (संशोधन) अध्यादेश, 2018 में कैबिनेट बाई-सर्कुलेशन के जरिए राज्य सरकार द्वारा भेजे गये संशोधन के प्रस्ताव को राज्यपाल राम नाईक ने मंजूरी प्रदान कर दी है।

इसके बाद अध्यादेश द्वारा उक्त अधिनियम में किये जा रहे प्रतिबंधों का उल्लंघन करने पर सजा और जुर्माना हो सकेगा। राज्य सरकार ने इसे काफी सख्त इसलिए बनाया है ताकि लोग पॉलिथीन से दूरी बना लें और पर्यावरण को बचाया जा सके।

देना पड़ सकता है एक लाख तक का जुर्माना

राज्य सरकार द्वारा इस बाबत बनाए गये नियमों के तहत –

  • पहली बार इसका उल्लंघन करने पर दोषी को एक माह तक की सजा अथवा न्यूनतम एक हजार रुपये और अधिकतम दस हजार रुपये तक के अर्थदंड।
  • दूसरी बार के उल्लंघन में दोष सिद्ध किये जाने पर छह माह तक के कारावास अथवा न्यूनतम पांच हजार रुपये एवं अधिकतम बीस हजार रुपये तक का जुर्माना किया जा सकेगा। अध्यादेश के प्रावधानों का पहली बार उल्लंघन करते हुए प्लास्टिक बैग का विक्रय, विनिर्माण, वितरण, भंडारण व परिवहन आदि करने पर दोषसिद्ध किये जाने वाले व्यक्ति को छह माह तक के कारावास अथवा न्यूनतम दस हजार रुपये और अधिकतम पचास हजार रुपये के जुर्माने से दंडित किये जाने की व्यवस्था की गयी है।
  • वहीं दूसरी बार उल्लंघन करने पर दोषसिद्ध किये गये व्यक्ति को एक वर्ष तक की सजा एवं न्यूनतम बीस हजार रुपये और अधिकतम एक लाख रुपये तक का जुर्माना देना होगा।

नियम को पालन कराने की जद्दोजहद

मालूम हो कि यह अधिनियम राज्य विधायिका द्वारा वर्ष 2000 में जैव प्रदूषित कचरा, प्लास्टिक एवं उससे बनायी जाने वाली अन्य सामग्रियों जैसे प्लास्टिक बैग एवं पॉलिथीन आदि के प्रयोग एवं उससे पर्यावरण को होने वाले विविध प्रकार के नुकसानों को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया था। इसमें प्लास्टिक एवं प्लास्टिक उत्पादों के निस्तारण के लिए कोई प्रभावी प्रावधान नहीं था। वहीं जैविक रूप से नष्ट नहीं होने वाले प्लास्टिक व पॉलिथीन आदि जैसे उत्पादों को निस्तारित किये जाने के लिए चलाये जाने वाले कार्यक्रमों से राज्य सरकार पर वित्तीय बोझ भी बढ़ता जा रहा था।

प्लास्टिक तथा पॉलिथीन जैसे उत्पादों से पर्यावरण को क्षति पहुंचने के अतिरिक्त उनके गड्ढों एवं भराव क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में जमा होने, तालाबों, नदियों, वनों व अन्य प्राकृतिक स्थानों के प्रदूषित होने, मानव जीवन, पशुओं, जीव-जंतुओं आदि को होने वाली क्षति को प्रभावी रूप से नियंत्रित करने तथा दंडित किये जाने के आशय से इस अधिनियम को संशोधित किये जाने के लिए यह अध्यादेश लाया गया है।

किस को पड़ेगी कानूनी मार

जैविक रूप से नष्ट नहीं होने वाले 50 माइक्रोन से कम मोटाई के प्लास्टिक के थैले, पॉलिथीन, नायलोन, पीबीसी, पॉलीप्रोपाइलिंग, पॉलीस्ट्रिन एवं थर्माकोल के प्रयोग तथा उनके पुनर्निमाण, विक्रय, वितरण, पैकेजिंग, भंडारण, परिवहन, आयात एवं निर्यात आदि।

रवि गोकुल

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