महाकवि कालिदास ने भारतीयों को उत्सवप्रिय कहा है। हिंदुओं के प्रिय त्योहार नवरात्र की शुरुआत हो चुकी है। नवरात्र हिंदुओं की प्रिय-पूज्य देवियों के नौ स्वरूपों की पूजा का त्योहार है। इन नौ दिनों के दौरान दुर्गा माता के नौ स्वरूपों की अलग-अलग पूजा होती है। नवरात्र के दौरान शक्ति के नौ स्वरूपों की पूजा करने से सभी प्रकार की परेशानियां दूर होती हैं और पूजा करने वाले के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। मां दुर्गा पूजा करने वाले के जीवन में अपार सफलता बख्शती हैं। नवरात्र के ये नौ दिन पूजा उपवास और प्रार्थना के दिन हैं। नवरात्र के उत्सव में माता जी की पूजा-आराधना की जाती है। देश के अलग-अलग प्रदेशों में शक्ति की उपासना की विविध परंपराएं हैं। नवरात्र के पहले तीन दिन मां दुर्गा की पूजा करने के लिए समर्पित किया गया है। प्रत्येक दिन मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूप को समर्पित है। पहले दिन शैलपुत्री, दूसरे दिन ब्ह्मचारिणी, तीसरे दिन चंद्रघंटा स्वरूप की आराधना की जाती है। नवरात्र के बाद के दिनों में माता कुष्मांडा स्वरूप की, माता स्कंदमाता की, मां कात्यायनी स्वरूप की, माता लक्ष्मी की, माता सरस्वती की, मां महागौरी और मां सिद्धिदात्री की पूजा-आराधना की जाती है। नौवें दिन कन्यापूजन किया जाता है। नौ कन्याएं, जो युवा न हुई हों, इस तरह की दस साल की कन्याओं को देवी दुर्गा के नौ प्रतीक माना जाता है। कुछ इलाकों के ऐसी कन्याओं के पैर धोए जाते हैं और उन्हें उपहारस्वरूप नौ वस्त्र प्रदान किए जाते हैं। उत्तर भारत में रावण को जीत कर आने वाले और राम के विजय के प्रतीक के रूप में विजयदशमी मनाई जाती है। दशहरा के दौरान रामलीला भी खेली जाती है और अंत में रावण और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन भी किया जाता है।
नवरात्र उत्सव देवी मां दुर्गा की आराधना का पर्व है। कहा जाता है कि यह उत्सव प्राग ऐतिहासिक काल से मनाया जा रहा है। देश के अलग-अलग भागों में नवरात्र उत्सव भिन्न-भिन्न रूप से मनाया जाता है। माता की हर शक्तिपीठ का अलग-अलग महत्व है। पर माता का मूलस्वरूप एक ही है। माता कहीं वैष्णोदेवी के रूप में जानी जाती हैं तो कहीं मां काली के रूप में जानी जाती हैं। कहीं चामुंडा के स्वरूप में पूजी जाती हैं तो हिमाचल प्रदेश में नैना देवी के नाम से भी पूजी जाती हैं। सहारनपुर में शाकम्भरी देवी के नाम से पूजी जाती हैं। ये सभी शक्ति के ही विविध स्वरूप हैं। इनकी पूजा करने से मां प्रसन्न होती हैं। पश्चिम बंगाल में इन दिनों दुर्गा पूजा का काफी महत्व है। देवी का महिषासुर नामक राक्षस का वध करती मूर्तियों की पूजा की जाती है। गुजरात में जगदंबा माता की पूजा-अर्चना तथा गरबा द्वारा नवरात्र मनाई जाती है।
कहा जाता है कि माता जगदंबा धर्म की स्थापना के लिए सर्व देवों के तेज से प्रकट हुई हैं। सर्व देवों के तेज से प्रकट हुई माता जगदंबा ने महिषासुर का वध किया था। महादेव के तेज में से माता जी का मुखारविंद प्रकट हुआ। इस मुखारविंद में ओष्ट का ऊपर का भाग कार्तिक स्वामी के तेज से प्रकट हुआ। ओष्ट के नीचे का भाग अरुणदेव के तेज सः प्रकट हुआ। पर्वत के तेज से दांत प्रकट हुए। यमराज के तेज में से माता जी के केश प्रकट हुए। अग्निदेव के तेज में से माता जी के तीन नेत्र प्रकट हुए। जिस तरह महादेव जी को ‘त्रयम्बक’ कहा जाता है, उसी तरह माता जी को ‘त्रयम्बके’ कहा जाता है।
माता जी के तीनों नेत्र हैं सूर्य, चंद्र और अग्नि। सूर्य रूपी नेत्र द्वारा माता जी हम सभी को दिन में देखती हैं कि मनुष्य कैसा कर्म करता है। चंद्र रूपी नेत्र से माता जी हम सभी को रात के समय देखती हैं कि मनुष्य कैसा कर्म करता है। माता जी का तीसरा नेत्र अग्नि है। अग्नि संहार का नेत्र है। संध्या के नेत्र में से माता जी की पलकें प्रकट हुईं। कुबेर के नेत्र में से माता जी के कान प्रकट हुए। अश्विनी कुमारी के नेत्र में से माता जी की नासिका प्रकट हुई। विष्णु जी के तेज में से माता जी की अट्ठारह भुजाएं प्रकट हुईं। वसुओ के तेज में से माता जी की अंगुलिया प्रकट हुईं। चंद्र देव के तेज में से माता जी के पयोधर प्रकट हुए। इस तरह राक्षसों का वध करने के लिए सर्व देवों के तेज में से मां जगदंबा प्रकट हुईं।
व्रत कथामृत के लेखक महीपत राम जोशी लिखते हैं कि आद्यशक्ति मां जगदंबा शक्ति, भक्ति, बुद्धि, निद्रा, क्षुधा, शांति, लज्जा, श्रद्धा, लक्ष्मी माता दया और तृप्ति के रूप में सचराचर में विराजमान हैं। प्रकृति और शक्तिसमा जगन्माता दुर्गालक्ष्मी, सरस्वती आदि देवियों की साधना, उपासना और पूजा का दिन ही नवरात्र है।
इस संदर्भ में रामायण का एक प्रसंग प्रस्तुत है। रावण सीता माता का अपहरण कर के ले गया तो उसके बाद भगवान राम सीता जी के विरह में उदास बैठे थे। भाई लक्ष्मण भी उनके साथ थे। तभी नारद जी आ गए। भगवान श्री राम और लक्ष्मण ने उनका स्वागत करते हुए बैठने के लिए आसन दिया। भगवान की उदासी देख कर नारद जी ने कहा, “प्रभु, आप व्यर्थ ही चिंता कर रहे हैं। रावण सती सीता को ले गया है यह मैं जानता हूं। सीता जी तो लक्ष्मी जी का और शैलपुत्री जी का अंश हैं। आप भगवान श्री विष्णु का अंश हैं। रावण ने सीता माता पर कुदृष्टि डाली तो आप ने उसे श्राप दिया था कि तेरा विनाश मेरे हाथों होगा। आप का अवतार ही देवों की प्रार्थना से रावण जैसे अनेक असुरों के संहार के लिए हुआ है। रावण की मृत्यु के लिए सीता जी निमित्त बनेंगी। लंका में बैठी सीता जी आप का ही ध्यान कर रही हैं। अब आप नवरात्र कीजिए, जिससे रावण का वध कर सकें।
भगवान श्री राम ने आश्चर्य से पूछा, “नवरात्र व्रत?” नारद जी ने कहा, “हां, नवरात्र व्रत कीजिए। अष्टमी के दिन शक्ति प्रसन्न होंगी और आप की विजय होगी। इस व्रत को महर्षियों और देवताओं ने भी किया है। वृत्रासुर राक्षस का वध करने के लिए इंद्र ने भी किया था। त्रिपुरासुर का वध करने के लिए शिव जी ने किया था। मधु दैत्य का नाश करने के लिए भगवान विष्णु ने किया था। इस व्रत के प्रभाव से आपकी विजय होगी।”
नारद जी की बात सुन कर भगवान श्री राम ने भी नवरात्र व्रत करने का संकल्प किया। नारद जी ने व्रत की विधि समझाते हुए कहा, “यथोचित सामग्री के साथ सोलह हाथ का भव्य स्वच्छ मंडप तैयार करें। सफेद साड़ी के छोर से वेदी तैयार करें। उसमें सात धान डालें। जवारा उगाएं। कुंभ स्थापना, शक्ति का यंत्र या मूर्ति स्थापना ब्राह्मणों द्वारा कराएं। यज्ञ और पूजापाठ करें। दशांश होम करें। पूजा के समय कोई भी व्रत-नियम लें। अंत में नवरात्र पूरी होते ही ब्राह्मणों को खिला कर व्रत समाप्त करें। जिनकी पूजा करनी है, वह देवी भगवती शक्ति और सनातन हैं और सारे मनोरथ पूर्ण करने वाली भगवती भुवनेश्वरी हैं। भगवान विष्णु की पालनशक्ति, ब्रह्मा जी सर्जनशक्ति और रुद्र की संहारशक्ति भी वही हैं। वही परमेश्वरी परम विद्या हैं और जया विजया भी वही हैं।”
इसके बाद नारद जी ने आगे कहा, “प्रभु, आप सर्व शक्तिमान हैं, समर्थ हैं, सर्वज्ञ हैं। वानरों के सहयोग से आप जरूर रावण का वध करेंगें। आप के भाई लक्ष्मण शेषनाग का अवतार हैं। वह रावण के कुल का निकंदन निकाल देंगे।”
इतना कह कर नारद जी चले गए। भगवान श्री राम ने नारद जी के कहे अनुसार नवरात्र का व्रत श्रद्धापूर्वक किया। व्रत की अष्टमी को शक्ति ने सिंह पर सवारी कर के भी श्री राम को दर्शन देकर कहा, “आप के किए नवरात्र व्रत से मैं प्रसन्न हुई। आप की मनोकामना पूरी करूंगी।”
इतना कह कर देवी अंतर्ध्यान हो गईं और नवरात्र के व्रत के प्रभाव से भगवान श्री राम ने रावण के सामने युद्ध में विजय प्राप्त की। दैत्य कुल का नाश हुआ। देवताओं का दुख दूर हुआ और माता सीता जी का भी श्री राम जी से पुनर्मिलन हुआ। महीपत राम जोशी द्वारा वर्णित नवरात्र की व्रत कथा यहां पूर्ण होती है। यह नवरात्र की महिमा। इस पावन नवरात्र व्रत जो करता है, उस पर देवी पसन्न होती हैं और इस संसार में उत्मोत्तम सुख भोग कर संसार सागर को पार कर परमपद को प्राप्त करता है।