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अलोपा देवी मंदिर : नवरात्र में पूजा-अर्चना व दर्शन को सुबह से लग रही भीड़, श्रीकृष्ण की ससुराल को भी नहीं मिला पौराणिक महत्व

बिधूना। शारदीय नवरात्र पर्व तहसील क्षेत्र में श्रद्धा भाव से मनाया जा रहा है। दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना हो रही है। क्षेत्र के गांव कुदरकोट में स्थित अलोपा देवी मंदिर पर पूजा अर्चना के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुट रही है। कुदरकोट (पूर्व में कुंडिनपुर) का नाम भी इतिहास के पन्नो में दर्ज है। मान्यता है कि यहां भगवान श्रीकृष्ण की ससुराल है। यहां पर भगवान श्रीकृष्ण द्वारा रुकमिणी के हरण करने के प्रमाण भी मिलते हैं, जिस कारण यह स्थान पौराणिक भी है।

तहसील मुख्यालय से करीब 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांव कुदरकोट के खेड़े पर ऐतिहासिक व पौराणिक महत्व का अलोपा देवी मंदिर स्थापित है। द्वापर कल में यह मंदिर मां गौरी के नाम से स्थापित था, जिनसे देवी रूक्मिणी का सीधा जुड़ाव था। देवी रूक्मिणी की इच्छा पर भगवान कृष्ण द्वारा इसी मंदिर से उनका हरण किए जाने के बाद मां गौरी भी अलोप हो गयीं थीं। तभी से इस मंदिर को अलोपा देवी के नाम जाना जाता है। मंदिर से मां गौरी व देवी रूक्मिणी का सीधा जुड़ाव होने के कारण यहां नवरात्र में पूजा अर्चना व दर्शनों के लिए स्थानीय व दूरदराज के श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है।

भागवत पुराण में उल्लेख है कि कुंदनपुर में पांडु नदी पार करके भगवान कृष्ण रुकमिणी का हरण कर ले गए थे और द्वारका ले जाकर विवाह कर उन्हें अपनी रानी बनाया था। इसके अलावा देवी के अदृश्य होने का भी तथ्य भागवत पुराण में मिलता हैै। कुदरकोट में अलोपा देवी का मंदिर भी है। हालांकि भगवान श्रीकृष्ण की ससुराल को लेकर लोगों के अलग-अलग तर्क भी हैं। जनश्रुति के अनुसार कुंडिनपुर जिसका अपभ्रंस कुंदनपुर का नाम बाद में कुदरकोट पड़ा है। भगवान कृष्ण की ससुराल होने के बाद भी आज तक न कुदरकोट का न तो विकास हो सका है और न ही इस स्थल को पौराणिक महत्व मिल सका है।

श्रीमद् भागवत ग्रंथो के उल्लेख के अनुसार लगभग 5 हजार बर्ष पूर्व कुंडिनपुर (मौजूदा कुदरकोट) के राजा भीष्मक धर्म प्रिय राजा थे। उनकी एक पुत्री रुक्मिणी व पांच पुत्र रुक्मी, रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेस तथा रुक्ममाली थे। रुक्मी की मित्रता शिशुपाल से थी, इसलिये वह अपनी बहिन रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल से करना चाहता था। जबकि राजा भीष्मक व उनकी पुत्री रुक्मिणी की इच्छा भगवान श्रीकृष्ण से विवाह करने की थी। जब राजा भीष्मक की अपने पुत्र रुक्मी के आगे न चली तो उन्होंने रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल से तय कर दिया। रुक्मिणी को शिशुपाल के साथ शादी तय होना नागवार गुजरा तो उन्होंने द्वारका नगरी में भगवान कृष्ण के यहाँ एक दूत भेजकर अपने को हरण करने का आग्रह भिजवा दिया। भगवान श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी का संदेश स्वीकार कर लिया और रुक्मिणी को द्वारका ले जाकर अपनी रानी बनाने की पूरी तैयारी कर ली।

रुक्मिणी के हरण के बाद अलोप हो गयी माँ गौरी- मान्यता है कि कुंडिनपुर महल से कुछ दूरी पर स्थित गौरी माता मंदिर से रुक्मिणी के हरण के बाद देवी गौरी अलोप हो गयी। जिसके बाद वहां पर अलोपा देवी मंदिर की स्थापना की गयी है और अब इसी मंदिर को अलोपा देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है। मंदिर के पश्चिम दिशा में स्थित द्वापर कालीन महाराजा भीष्मक द्वारा स्थापित शिवलिंग है। जहां अब मंदिर बना हुआ है और ये मंदिर अब बाबा भयानक नाथ के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर के पुजारी राम कुमार चौरसिया ने बताया कि यहां पर चैत्र व आषाढ़ माह की नवरात्रि में हर बर्ष मेला का आयोजन होता है। पिछले 122 बर्षो से भव्य रामलीला का आयोजन होता आ रहा है। जो वर्तमान में भी चल रहा है। दशहरा को रावण का बध होगा है माँ अलोपा देवी मंदिर धरती तल से 60 मीटर की ऊंचाई पर खेरे पर बना हुआ है, हर साल फाल्गुनी अमावश्या को चौरासी कोसी परिक्रमा का आयोजन भी होता है।

नदी के रास्ते रथ से रुक्मिणी को ले गए श्रीकृष्ण- ग्रंथो के अनुसार कुंदनपुर में एक परम्परा थी कि शादी के एक दिन पहले सभी कुंवारी लड़किया महल में बने गौरी मंदिर में ब्राह्मणियों के साथ पूजा करने जाती थी। परम्परा के अनुसार शादी से एक दिन पूर्व रुक्मिणी भी मंदिर में पूजा करने गयी। इसी समय भगवान श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी की इच्छा पर उन्हें अपने साथ कम बहती हुई पांडु नदी में प्रवेश कर हरण करके द्वारका ले गए। इसके बाद खिसियाये शिशुपाल ने राजा जरासन्द की सेना की मदद लेकर राजा भीष्मक से युद्ध किया जिसमें शिशुपाल बुरी तरह पराजित हुआ था।

मुगल शासन में कुंडिनपुर अब बन गया कुदरकोट- कुंडिनपुर जो बाद में कुंदनपुर के नाम से जाना जाता था पर जब मुगलो का शासन हुआ तभी से इसका नाम कुदरकोट पड़ गया। आज भी यहां राजा भीष्मक के 50 एकड़ में फैले महल के अवशेष स्पष्ट दिखाई देते है। आज के समय में जहां कुदरकोट में माध्यमिक स्कूल है वहां पर कभी राजा भीष्मक का निवास स्थान होता था और यहां पर रुक्मिणी खेला करती थी। मुगलों ने इस नगर पर कब्जे के बाद इसके पूरे इतिहास को तहस नहस करने के लिए भौगोलिक स्थिति बदलने का भरसक प्रयास किया था। लेकिन यहां पर अवशेष व ग्रंथो में कुंडिनपुर का उल्लेख आज भी है। दो बर्ष पूर्व ही खेरे के ऊपर एक मकान में निकली सुरंग इसका उदाहरण है। जिसका आज तक कोई पता न चल सका है। पुरातत्व विभाग की उदासीनता व जागरूकता की कमी के कारण मथुरा बृन्दावन जैसे पूज्य स्थान कुदरकोट को पौराणिक बिश्व प्रख्याति नहीं मिल सकी।

रिपोर्ट – संदीप राठौर चुनमुन/राहुल तिवारी

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