नाम मुलायम पर मिजाज के सख्त नेताजी के नाम से सुप्रसिद्ध भारत के भूतपूर्व रक्षा मंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव को किसी एक किरदार में बांधना हवा को मुट्ठी में कैद करने के बराबर है। नेताजी अपने कैरियर का शुरुआत छात्र नेता से करते हुए इंटर स्कूल में शिक्षक बने,पहलवानी का शौक अलग, साहित्य और संगीत में भी रुचि थी।
साहित्य के रक्षा के लिए सुरक्षाकर्मी से भी लड़ जाने वाले नेता थे मुलायम सिंह यादव ।एक बार की बात है मैनपुरी के करहल जैने इंटर कॉलेज में 26 जून 1960 को कवि सम्मेलन चल रहा था। सम्मेलन के दौरान मशहूर कवि दामोदर स्वरूप विद्रोही ने अपनी कविता सुनानी शुरू की, तभी एक पुलिस इंस्पेक्टर ने उनसे माइक छीनकर कहा कि सरकार के खिलाफ कविताएं पढ़ना बंद करो।यह बात मुलायम को इतनी बुरी लगी कि उन्होंने मंच पर आकर इंस्पेक्टर को उठा कर पटक दिया और कहां तुम्हारा काम सुरक्षा प्रदान करना है राजनीति का पाठ पढ़ाना नहीं।
आगे चलकर राजनीति उनका मकसद बन गया,पर कभी भी अपने सामाजिक दायित्व निभाने से दूर नहीं भागे।आजीवन समाजवादी विचारधारा के साथ बने रहे या यूं कहे तो समाजवादी विचारधारा को भारतीय भूमि पर वट वृक्ष के समान बनाने में अहम भूमिका निभाई। राजनीति में भी खूब सफल रहे राजनीति में शायद कोई भी पद उन से अछूता नहीं रहा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से लेकर भारत सरकार के रक्षा मंत्री तक का दायित्व उन्होंने बड़ी ही सफलतापूर्वक निभाई उनके कार्यकाल को याद कर कोई भी अपने आप पर गर्व महसूस कर सकता है।वे कितने भी बड़े पद पर चले गए लेकिन कभी भी उन्हें पद का गुमान नहीं हुआ।
ऐसा कहा जाता है नेता जी को अपने संसदीय क्षेत्र और विधानसभा क्षेत्र के प्रत्येक गांव के लोगों का नाम जुबानी याद रहता था।उत्तर प्रदेश के शायद ऐसा कोई गांव नहीं है जहां मुलायम सिंह यादव नहीं गए हो। अपने कार्यकर्ताओं के साथ वे पिता चाचा भाई और पुत्र वध व्यवहार करते थे। उन्हें गांव से बहुत प्यार था, जिसका जीता जागता उदाहरण उनका गांव सैफई है जहां उन्होंने हर तरह की सुविधाएं अत्याधुनिक सुविधा उपलब्ध करवाया। जिस किसी भी पद पर रहे उस पद को उन्होंने अमर कर दिया जब वे भारत के रक्षा मंत्री बने तो चीन जैसे बाहुबली देश को आंखों में आंखें डाल कर कहते थे जब भी चीन के साथ लड़ाई होगी तो चीन की धरती पर होगी।
उन्होंने सेना का आधुनिकीकरण करने की भरपूर कोशिश की उन्हीं के समय में सेना में सुखोई विमान शामिल किया गया उन्हीं के द्वारा शहीद सैनिकों के पार्थिव शरीर उनके गांव तक समान पहुंचाने की परिपाटी शुरू की गई इसके पूर्व सिर्फ शहीदों के कपड़े आते थे। यही नहीं उन्होंने यह सुनिश्चित करवाया किस शहीद के साथ उस जिले के जिला पदाधिकारी और पुलिस कप्तान अंतिम संस्कार तक उपस्थित रहे और शहीदों का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा।
सैनिक कर्मियों को कई की लंबित मांगों को भी उन्होंने पूरा किया। नेताजी हमेशा सख्त निर्णय लिए जाने के लिए याद किए जाएंगे उनके लिए राष्ट्रहित, राष्ट्र में भाईचारा और धर्मनिरपेक्षता सबसे आगे था पद नहीं। वे चाहे विपक्ष के नेता रहे या सत्तापक्ष के मुख्यमंत्री रहे या रक्षा मंत्री उनकी राजनीति पर जबरदस्त पकड़ थी और उत्तर प्रदेश की राजनीति में तो कहना ही नहीं है। जहां भी जाते थे वहां एक नारा लगाया था ‘जिसका जलवा कायम है उसका नाम मुलायम है।’ नेताजी का जन्म अपने इलाके के जाने-माने समाजवादी विचारधारा वाले प्रगतिशील किसान सुघर सिंह यादव और मूर्ति देवी के घर 22 नवम्बर 1939 हुआ था।
पिता सुघर सिंह यादव का नाम सुघर इसलिए रखा गया था, क्योंकि वे बचपन से ही बहुत ही साफ सुथरा रहना पसंद करते थे। वहीं उनकी मां को मूर्ति नाम इसलिए दिया गया था क्योंकि वे बचपन में बिल्कुल मूर्ति की तरह सुंदर दिखाई देती थीं।इटावा जिले के सैफई गांव में जन्मे मुलायम सिंह यादव अपने पाँच भाई-बहनों में रतनसिंह यादव से छोटे व अभयराम सिंह यादव, शिवपाल सिंह यादव, राजपाल सिंह और कमला देवी से बड़े हैं। प्रोफेसर रामगोपाल यादव इनके चचेरे भाई हैं। शुरुआत में उनके पिता उन्हें पहलवान बनाना चाहते थे किन्तु पहलवानी में अपने राजनीतिक गुरु चौधरी नत्थूसिंह को मैनपुरी में आयोजित एक कुश्ती-प्रतियोगिता में प्रभावित करने के पश्चात उन्होंने नत्थूसिंह के परम्परागत विधान सभा क्षेत्र जसवन्त नगर से अपना राजनीतिक सफर शुरूआत की।
राजनीति में आने से पूर्व मुलायम सिंह यादव आगरा विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर (एम०ए०) और बी०टी० करने के उपरान्त इन्टर कालेज में प्रवक्ता नियुक्त हुए और सक्रिय राजनीति में रहते हुए नौकरी से त्यागपत्र दे दिया।
मुलायम यादव भारत के समाजवादी विचारधारा को मानने वाले गरीब, दलित, पिछड़े,मजदूर, किसान , महिलाओं, अल्पसंख्यकों के नेता थे। एक प्रगतिशील किसान परिवार में जन्म लेने वाले मुलायम सिंह ने अपना राजनीतिक जीवन उत्तर प्रदेश में विधायक के रूप में शुरू किया। बहुत कम समय में ही मुलायम सिंह का प्रभाव पूरे उत्तर प्रदेश में नज़र आने लगा।
मुलायम सिंह ने उत्तर प्रदेश में दबे कुचले शोषित पीड़ित लोगों की सामाजिक स्तर को ऊपर करने में महत्वपूर्ण कार्य किया। उनमें समाजिक चेतना पैदा कर उन्होंने उन्हें इस योग्य बनाया कि वे आगे चलकर भारतीय राजनीति के केंद्र बिंदु बन गए। वे समाजवादी नेता रामसेवक यादव के प्रमुख अनुयायी (शिष्य) थे तथा इन्हीं के आशीर्वाद से मुलायम सिंह 1967 में पहली बार विधान सभा के सदस्य चुने गये और मन्त्री बने।
आगे चलकर 1992 में उन्होंने समाजवादी पार्टी बनाई। वे तीन बार क्रमशः 5 दिसम्बर 1989 से 24 जनवरी 1991 तक, 5 दिसम्बर 1993 से 3 जून 1996 तक और 29 अगस्त 2003 से 11 मई 2007 तक उत्तर प्रदेश के मुख्य मन्त्री रहे।
उत्तर प्रदेश समेत पूरे देश में सामाजिक सद्भाव को बनाए रखने में मुलायम सिंह ने साहसिक योगदान दिया। मुलायम सिंह की पहचान एक धर्मनिरपेक्ष मजबूत इरादे वाले नेता की है।वे अपने विरोधियों को कभी मौका नहीं देते थे कि वह उन पर उंगली उठा सकें। विरोधी भी मुलायम सिंह के काम और कार्यशैली की प्रशंसा करते हुए नहीं सकते थे भले ही उनकी वैचारिक प्रतिद्वंदिता क्यों ना हो।
मुलायम यादव का सामाजिक राष्ट्रवाद, लोकतंत्र, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धान्तों में अटूट आस्था थी। भारतीय भाषाओं, भारतीय संस्कृति और शोषित पीड़ित वर्गों के हितों के लिए उनका अनवरत संघर्ष किया। उन्होंने ब्रिटेन, रूस, फ्रांस, जर्मनी, स्विटजरलैण्ड, पोलैंड और नेपाल आदि देशों की भी यात्राएँ की।
समाजवाद के फ़्राँसीसी पुरोधा ‘कॉम डी सिमॉन’ की अभिजात्यवर्गीय पृष्ठभूमि के विपरीत उनका भारतीय संस्करण केंद्रीय भारत के कभी निपट गाँव रहे सैंफई के अखाड़े में तैयार हुआ है। वहाँ उन्होंने पहलवानी के साथ ही राजनीति के पैंतरे भी सीखे। लोकसभा से मुलायम सिंह यादव ग्यारहवीं, बारहवीं, तेरहवीं और पंद्रहवीं लोकसभा के सदस्य चुने गये थे।
जब जब संसद में मुलायम सिंह यादव,शरद यादव और लालू यादव खड़े होते थे सत्ता पक्ष के हाथ-पांव फूलने लगे थे।उस स्वर्णिम दौर के एक मसीहा आज हम लोग के बीच से चले गए। उनसे पहले काशीराम और रामविलास पासवान जी बहुजन राजनीतिक को अधर में छोड़ कर जा चुके हैं।
तानाशाही सत्ता चाहे वह पूर्व का रहा हो या वर्तमान का उनके नाक में नकेल डालने के काम हमेशा इन्हीं लोगों के द्वारा किया जाता रहा। जब-जब इन नेताओं ने हुंकार भरा केंद्रीय सत्ता डोलने लगती थी। लंबे समय तक उत्तर भारतीय राजनीति में इन लोगों का वर्चस्व रहा।
जितनी संबलता इन नेताओं के द्वारा दलित पिछड़े गरीब मजदूर किसान महिलाओं को प्रदान किया गया उतनी संबलता स्वतंत्रता के बाद बनने वाले किसी अन्य राजनीतिक दल यार नेता के द्वारा नहीं प्रदान किया।
एक बार फिर जब उन्ही के कुनबे के नेता नीतीश कुमार केंद्रीय सत्ता को चुनौती देने की कोशिश कर रहे हैं उसी बीच नेताजी मुलायम सिंह यादव का चला जाना समाजवादी विचारधारा वाले लोगों के लिए परेशानी का सबब बन रहा है।
खैर अभी सामाजिक राष्ट्रवाद के जनक माननीय लालू प्रसाद यादव एवं शरद यादव नीतीश कुमार के लड़ाई को मोरल सपोर्ट देने के लिए उपस्थित हैं। प्रकृति इन लोगों को लंबी उम्र और स्वस्थ जिंदगी प्रदान करे ताकि फिरका प्रस्त ताकतों को ढूंढ ढूंढ कर मटिया मेट करते रहें। क्या आज की युवा पीढ़ी में उतनी कुब्बत है जो सत्ता में ना रहते हुए भी सत्ता को प्रभावित करने का माद्दा रखता हो ???
किसी को तो आगे आना होगा और सामने से सामंती और पूंजीवादी ताकतों को चुनौती देना होगा जिस तरह से नेताजी मुलायम सिंह यादव दिया करते थे। और वर्तमान में लालू प्रसाद यादव और शरद यादव “नीतीश कुमार एमके स्टालिन ,के चंद्रशेखर राव को आगे करके बहुजन राजनीति को मजबूती प्रदान कर रहे हैं।