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मां-बाप बच्चों के मालिक बनने की कोशिश न करें

बच्चों के पालन-पोषण में एक सब से महत्वपूर्ण बात यह है कि मां-बाप को एक खास बात समझ लेनी चाहिए कि उन्हें बच्चे के उचित पालन-पोषण के लिए एक अच्छा मां-बाप बनना है। पर बच्चे के साथ व्यवहार एक अच्छे मित्र की तरह करना है। बच्चे का पालक बनना है, पर मालिक नहीं बनना है। बच्चे को भरपूर स्नेह देना है, बदले में उसका आज्ञांकित नहीं बनना है।

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खास कर नई पीढ़ी के मां-बाप बच्चे के उचित पालन-पोषण के लिए चिंतित रहते हैं। लेकिन बच्चे को सारी विधाओं में पारंगत करने के चक्कर में, सब सिखाने की उमंग में बच्चे का बचपन छीन लेते हैं। बच्चे को बच्चा रहने देना ही सब से सच्चा पैरेंटिंग है और इसके लिए मां-बाप को भी थोड़ा बच्चा बनना पड़ता है, थोड़ा-बहुत त्याग करना पड़ता है, बच्चा हो कर सोचना-विचारना पड़ता है कि बच्चे के लिए कैसा व्यवहार अच्छा और उचित है।

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पहले की पीढ़ी मेहमान या दोस्त घर आते थे तो बच्चे को उनके सामने, ‘बेटा, गाना तो गाओ…’, या फिर ‘डांस कर के दिखाओ…’, या फिर वह ऐक्टिंग कर के दिखाओ…’, यह कह कर बच्चे को प्रदर्शन की वस्तु बनाते थे। आजकल तो बच्चों को एक्स्ट्रा एक्टिविटी के नाम पर उल्टे-सीधे क्लासों में भेजने वाले मां-बाप बच्चे को बचपन से ही महान बना देना चाहते हैं। उनकी इच्छा होती है कि बच्चा उनका नाम रोशन करे। सारे बच्चे बचपन से ही भीड़ में कम्फर्टेबल नहीं होते। शर्मीले बच्चे भी सामान्य, नार्मल होते हैं। उन्हें हमेशा टोकते रहने और उन्हें लोगों के बीच कैसे बोलना चाहिए, इस तरह का मार्गदर्शन करते रहने से अचानक उनका स्वभाव बदल जाएगा और वे सभी को खुश कर देंगे, इस तरह की अपेक्षा करना भी ठीक नहीं है।

मां-बाप

इसी तरह अधिक बोलने वाले बच्चे को चुप रहने के लिए कहने पर वह एकदम से चुप नहीं हो जाएगा। कुछ बच्चों की जिज्ञासा अधिक होती है, जिससे वे मां-बाप से बारबर सवाल करते रहते हैं। बच्चे के सवाल का उचित जवाब ही मां-बाप को देना चाहिए। कभी-कभी बच्चे मां-बाप से ऐसा सवाल पूछ लेते हैं, जिसका जवाब मां-बाप के पास नहीं होता। ऐसी स्थिति में मां-बाप ‘मेरा सिर मत खाओ’ या ‘अब चुप हो जाओ…’ यह कह कर बच्चे को चुप करा देते हैं। मां-बाप को बच्चे के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए। अगर जवाब न आ रहा हो तो सच बता देना चाहिए, ‘मुझे अभी तो नहीं आता, जान कर बताऊंगा।’ और उस सवाल का जवाब पता करते समय बच्चे को साथ रखना चाहिए। ऐसा करने से दो फायदे होंगे। एक तो बच्चा यह समझेगा कि सभी को सभी सवालों के जवाब आते हों, यह जरूरी नहीं है और इसमें शरम की कोई बात भी नहीं है।

इसके अलावा बच्चा सवालों के उत्तर पाना, पढ़ना या अन्य प्रवृत्ति सीखेगा। मुख्य बात यह है कि बच्चे का मालिक बन कर अपनी मर्जी के अनुसार उसे जबरन किसी प्रवृत्ति की ओर धकेलने का प्रयत्न करने से उसे उस प्रवृत्ति से अनिच्छा तो होगी ही, साथ ही उसका बचपन भी छिनेगा। पहले छोटे बच्चों के लिए इतने कपड़े नहीं खरीदे जाते थे। इसलिए वे सामान्य कपड़ों में छूट से खेल सकते थे। विवाहों या पार्टियों में बच्चे ऊबते नहीं थे और अब तो बच्चे किसी भी समारोह में जाने में ऊबते हैं। इसका कारण बच्चे अपनी पसंद का खेल खेल नहीं पाते। अब मां-बाप महंगा कपड़ा और लड़की हुई तो मेकअप करा कर बच्चों को शोभा का पुतला बना कर ले जाते हैं।

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अपना बच्चा अच्छा दिखाई दे, इसके लिए बच्चों की कोमल त्वचा पर तरह-तरह के केमिकल और बालों में हानिकारक शैम्पू का उपयोग करने वाले मां-बाप जानेअंजाने में अपने बच्चों को भविष्य में गंभीर स्किन प्राब्लम देते हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रमों से ले कर परिवार की शादियों तक सभी बच्चों को बड़े लोगों की तरह कपड़े, मेकअप और चप्पल, जूते पहनने को मजबूर करते हैं। ऐसे में उन्हें यह साबित करना होता है कि वह खुद किसी से कम नहीं हैं। पैसा खर्च कर सकते हैं और बच्चों को आधुनिक बना सकते हैं। पर बच्चा खिलौना नहीं है या मां-बाप की प्रतिष्ठा की प्रतिकृति भी नहीं है, यह समझना बहुत जरूरी है।

सही बात तो यह है कि यह सब बच्चों का बचपन छीन लेता है। इतना ही नहीं, बच्चों को अचानक बड़ा बना देता है और उन्हें दिक्कत होती है कि उन्हें बड़ों जैसा व्यवहार करना पड़ता है। बच्चे पहले के पांच सालों में बहुत कुछ सीख जाते हैं और तब फैशन या प्रतियोगिता के बदले स्नेह, संस्कार औल स्वभाव का गढ़ना महत्वपूर्ण होता है। फैशन और पढ़ाई तो उम्र होने पर सीख ही जाएगा। अपरिपक्व उम्र में बहुत ज्यादा फैशन और पार्टी कल्चर की शिक्षा देकर मां-बाप बच्चों का बहुत ज्यादा अहित कर रहे हैं। बच्चा अपने हिसाब से किसी में भी रुचि ले और उसी के अनुसार बर्ताव करे। यही उसके उचित विकास के लिए महत्वपूर्ण है। मां-बाप का कोई हक नहीं है कि अपनी मर्जी के अनुसार जबरदस्ती बच्चे से बर्ताव कराए और उनका बचपन छीन लें। बच्चे को बच्चा ही रहने दें, यही आप के और बच्चे, दोनों के हित में है।

              स्नेहा सिंह

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