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भारत-रूस और चीन की तिकडी ने लगाई अमेरिका की सबसे बड़ी ताकत “डालर” में सेंध

भारत, रूस और चीन ने ब्रिक्‍स सम्‍मेलन में खुले तौर पर पश्चिमी देशों को चैलेंज कर दिया है। दुनिया की इन 3 महाशक्तियों के अलावा ब्रिक्‍स समूह में शामिल 7 अन्‍य देशों ने आपसी व्‍यापार में स्‍थानीय मुद्रा के इस्‍तेमाल पर सहमति जताई। इस फैसले से अमेरिका की सबसे बड़ी मजबूती डॉलर में सेंध लगाने की तैयारी हो चुकी है।

भारत-रूस और चीन की तिकडी ने लगाई अमेरिका की सबसे बड़ी ताकत "डालर" में सेंध

आपको बताते चलें कि रूस के कजान में हो रहे ब्रिक्‍स सम्मेलन में शामिल देशों ने लोकल करेंसी में व्‍यापार पर सहमति जताई है। इससे अमेरिकी डॉलर को ग्‍लोबल मार्केट में बड़ी चुनौती मिलेगी।

दया शंकर चौधरी

अभी ग्‍लोबल ट्रेड में ज्‍यादातर लेनदेन डॉलर में ही किया जाता है। रूस के कजान में हुए ब्रिक्‍स सम्‍मेलन में इस बार पूरब बनाम पश्चिम के मुद्दे को खासतौर से हवा दी गई। दुनिया की 3 बड़ी आर्थिक शक्तियां जब एक मंच पर पहुंचीं तो पूरे पश्चिम की निगाहें इसी तरफ लगी रही। सम्‍मेलन में भारत, रूस और चीन ने अमेरिका को सीधे तौर पर व्‍यापारिक चुनौती देने का संकेत भी दे दिया है। ब्रिक्‍स में शामिल देशों ने आपसी कारोबार के लिए अब डॉलर के बजाय स्‍थानीय मुद्रा में लेनदेन करने की बात कही है। इसका मतलब है कि भारत इन देशों से डॉलर के बजाय रुपये में लेनदेन कर सकेगा। अभी ग्‍लोबल ट्रेड में ज्‍यादातर ट्रांजेक्‍शन डॉलर में ही होता है।

ब्रिक्स देशों ने बुधवार (23 अक्टूबर 2024) को व्यापार बढ़ाने और स्थानीय मुद्राओं में वित्तीय निपटान की व्यवस्था बनाने पर सहमति जताई। साथ ही स्वतंत्र रूप से काम करने वाला सीमापार निपटान और डिपॉजिटरी बुनियादी ढांचे की व्यावहारिकता का अध्ययन करने और ब्रिक्स पुनर्बीमा कंपनी पर भी सहमति व्यक्त की। सदस्य देशों के नेताओं ने 21वीं सदी में नव विकास बैंक को एक नये प्रकार के बहुपक्षीय विकास बैंक (एमडीबी) के रूप में विकसित करने पर भी सहमति जताई और ब्रिक्स के नेतृत्व वाले बैंक की सदस्यता को बढ़ाने का समर्थन किया।

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क्या है ब्रिक्‍स के घोषणा पत्र में?

16वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के बाद जारी घोषणापत्र में कहा गया है कि सदस्य देश कामकाज के स्तर पर स्थिरता बनाये रखने और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए डिजिटल बुनियादी ढांचा क्षेत्र में संयुक्त गतिविधियों की संभावना तलाशेंगे। ब्रिक्स नेताओं ने 21वीं सदी में मानव जीवन के सभी पहलुओं की तेज गति वाली डिजिटलीकरण प्रक्रिया पर चिंता व्यक्त की और विकास के लिए डेटा की महत्वपूर्ण भूमिका और इस मुद्दे के समाधान के लिए ब्रिक्स के भीतर जुड़ाव को तेज करने की जरूरत बताई।

एक मंच पर तीन बड़े नेता

शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी चिनपिंग सहित ब्रिक्स देशों के शीर्ष नेताओं ने भाग लिया। ब्रिक्‍स ने कहा, हम व्यापार बाधाओं को कम करने और गैर-भेदभावपूर्ण पहुंच के सिद्धांत पर तैयार तेज, कम लागत वाले, कुशल, पारदर्शी, सुरक्षित और समावेशी सीमापार भुगतान उत्पादों के व्यापक लाभ को समझते हैं। हम ब्रिक्स देशों और उनके व्यापारिक भागीदारों के बीच वित्तीय लेनदेन में स्थानीय मुद्राओं के उपयोग का स्वागत करते हैं।

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नया बैंकिंग नेटवर्क बनाएंगे

ब्रिक्स नेताओं ने समूह के भीतर ‘कॉरेसपॉन्डेंट बैंकिंग नेटवर्क’ को मजबूत करने और ब्रिक्स सीमापार भुगतान पहल (बीसीबीपीआई) के अनुरूप स्थानीय मुद्राओं में निपटान को सक्षम बनाने की बात कही, जो स्वैच्छिक और गैर-बाध्यकारी है। ब्रिक्स में पहले ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल थे। अब पांच अतिरिक्त सदस्यों मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को भी इसमें शामिल किया गया है।

गवर्नर और वित्‍तमंत्री बनाएंगे रणनीति

नेताओं ने ब्रिक्स देशों के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नर को स्थानीय मुद्राओं, भुगतान उत्पादों और मंचों के मुद्दे पर चर्चा जारी रखने का काम सौंपा। अपने सदस्य देशों के बुनियादी ढांचे और सतत विकास को बढ़ावा देने में नव विकास बैंक (एनडीबी) की भूमिका को पहचानते हुए ब्रिक्स नेताओं ने 2022-2026 के लिए एनडीबी की सामान्य रणनीति को पूरा करने के लिए कॉरपोरेट संचालन और परिचालन को प्रभावी बनाने को लेकर सुधार का समर्थन किया।

आजादी का अमृत महोत्सव और भारतीय अर्थ व्यवस्था में रुपये का महत्व

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि 15 अगस्त 2022 को देश की आजादी के 75 वर्ष पूरे हो गये हैं। आजादी के 75 वर्ष पूरे होने के 75 हफ्ते पहले, यानि 12 मार्च 2021 को केंद्र सरकार ने आजादी के अमृत महोत्सव का आगाज़ किया था जोकि 15 अगस्त 2023 तक चला।

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अमृत महोत्सव के आगाज़ के लिए गुजरात के साबरमती को चुना गया था। यहीं से महात्मा गाँधी के नेतृत्व में दांडी मार्च शुरू किया गया था। आजादी के 75 वर्ष पूरे होने तक अर्थात 15 अगस्त 2022 तक 75 सप्ताह पूरे देश में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। देश के हर राज्य और हर केंद्र शासित प्रदेश के साथ ही भारतीय दूतावासों में भी अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।

उद्देश्य: देश भर में आयोजित प्रदर्शनियों में असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन, भारत छोड़ो आन्दोलन, के साथ ही दांडी मार्च, महात्मा गाँधी, नेताजी शुभाष चन्द्र बोस और आन्दोलन के नेताओं सहित स्वतंत्रता से संबंधित मुख्य स्थलों को दिखाया गया। महोत्सव के जरिये आजादी से जुड़े उन विस्मृत नायकों की भी तलाश की गयी जिनका नाम अभी तक इतिहास के पन्ने में कहीं छुपा हुआ था। इसके जरिये देश के लोग, देश के युवा और बच्चे उन महावीर योद्धा को जान सकेंगे जो इतिहास के पन्नों में कहीं दबे हुए हैं साथ ही यह महोत्सव नए दृष्टिकोणों, नए संकल्पों और आत्म-निर्भरता से प्रेरणा को प्रतिध्वनित करने का संकल्प था।

भारत-रूस और चीन की तिकडी ने लगाई अमेरिका की सबसे बड़ी ताकत "डालर" में सेंध

प्रधानमंत्री मोदी ने 12 मार्च, 2022 को अमृत महोत्सव की शुरुआत की थी क्योंकि, 12 मार्च, 1930 को ही दांडी मार्च की शुरुआत हुई थी जोकि नमक पर ब्रिटिश एकाधिकार के खिलाफ कर-प्रतिरोध और अहिंसक विरोध के प्रत्यक्ष कार्रवाई अभियान था जोकि 6 अप्रैल, 1930 तक चला था।

गांधीजी ने 12 मार्च को साबरमती से अरब सागर (दांडी के तटीय शहर तक) तक 78 अनुयायियों के साथ 241 मील की यात्रा की। इस यात्रा का उद्देश्य गांधी और उनके समर्थकों द्वारा समुद्र के जल से नमक बनाकर ब्रिटिश नीति की उल्लंघन करना था।

‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ उत्सव पिछले 75 वर्षों में भारत द्वारा की गई तीव्र प्रगति का जश्न मनाता है। यह उत्सव हमें अपनी छिपी ताकत को फिर से खोजने के लिए प्रोत्साहित करता है और हमें राष्ट्रों के समूह में अपना सही स्थान हासिल करने के लिए ईमानदार, सहक्रियात्मक कार्रवाई करने के लिए प्रेरित करता है।

75 सालों में कितना बदला भारतीय रुपया

देश आजादी का अमृत महोत्‍सव मना रहा है। इन 75 वर्षों में बहुत कुछ बदला है, जिसमें भारतीय रुपया भी शामिल है आइए जानते हैं भारतीय रुपये का सफर..!

भारत को आजाद हुए 75 वर्ष हो चुके हैं और देश आजादी का अमृत महोत्‍सव मना रहा है।इस दौरान बहुत कुछ बदला है। देश ने “कच्ची सड़क” से “एक्सप्रेस वे” तक का सफर तय किया है, तो कोयले से चलने वाली रेलगाड़ी से लेकर मेट्रो तक देखी है। इतने वर्षों में एक और चीज जो बदलती रही वह है भारतीय रुपया। हमारे जीवन में रोज इस्तेमाल होने वाले रुपए का स्वरूप भी समय के साथ बदलता रहा है।

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सबसे पहला नोट दो और पांच रुपए का था, जिस पर रिजर्व बैंक के पहले भारतीय गवर्नर सीडी देशमुख के हस्ताक्षर थे। आजादी के समय एक रुपए, दो रुपए और पांच रुपए के नोट सबसे ज्यादा चलन में थे। उस समय सबसे बड़ा नोट दस हजार रुपए का हुआ करता था। इसके बाद देश, काल और परिस्थिति के हिसाब से नोट बदलते रहे। डिजाइन के साथ ही जिन कागजों पर नोट छपते थे उनमें भी बदलाव किया गया। यह सब कुछ समय की मांग और देश की अर्थव्यवस्था की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए किया गया।

छोटे नोटों में होता रहा बदलाव

सबसे ज्यादा बदलाव एक, दो, पांच, दस और सौ रुपए के नोट में किए गए. वर्तमान में एक और दो रुपए के नोट चलन में नहीं है। सबसे कम बदलाव 500 रुपए के नोट में हुआ है। यह नोट सिर्फ एक बार ही बदला गया है। 2016 में नोटबंदी के बाद पुराने 1000 और 500 रुपए के नोट भी बंद हो गए। वर्तमान में सबसे बड़ा नोट 2 हजार रुपए का है।

भारत-रूस और चीन की तिकडी ने लगाई अमेरिका की सबसे बड़ी ताकत "डालर" में सेंध

भारत में नोटबंदी कितनी बार हुई और कब हुई?

भारत में अब तक तीन बार नोटबंदी की घटनाएँ हुई हैं, जिनमें से प्रत्येक के अपने विशिष्ट कारण और परिणाम थे।

पहली नोटबंदी पहली बार 12 जनवरी, 1946 को हुई थी। इस दौरान 1,000 और 10,000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर कर दिया गया था। इस नोटबंदी का मुख्य उद्देश्य काले धन को नियंत्रित करना था।

दूसरी नोटबंदी 16 जनवरी, 1978 को हुई, जिसमें तत्कालीन मोरारजी देसाई की सरकार ने 1,000, 5,000, और 10,000 रुपये के नोटों को चलन से हटा दिया था।

तीसरी नोटबंदी सबसे हालिया और चर्चित नोटबंदी 8 नवंबर, 2016 को हुई, जब भारत सरकार ने 500 और 1,000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर कर दिया। इस नोटबंदी के पीछे के कारणों में काले धन का मुकाबला करना, नकली नोटों की समस्या को कम करना, और डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देना शामिल था।

नोट पर कब और कैसे आए महात्मा गांधी?

1969 में महात्मा गांधी के 100वें जन्मदिन पर पहली बार नोट पर उनकी तस्वीर छापी गई थी। इसमें महात्मा गांधी को बैठे हुए दिखाया गया था। 1987 में पहली बार 500 रुपये का नोट जारी किया गया था और इस पर महात्मा गांधी की तस्वीर छापी। 1996 में रिजर्व बैंक ने महात्मा गांधी सीरीज के नए नोट छापे। भारतीय करंसी के नोटों पर 1969 में पहली बार महात्मा गांधी की तस्वीर छपी थी।

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पिछले दिनों दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भारतीय करेंसी (नोट) पर महात्मा गांधी के साथ-साथ भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की फोटो लगाने की भी मांग की है। केजरीवाल के इस बयान को गुजरात चुनाव से पहले ‘हिंदुत्व कार्ड’ के तौर पर देखा गया। ये मांग करते हुए केजरीवाल ने कहा कि अगर नोट पर एक तरफ गांधीजी की और दूसरी तरफ लक्ष्मी-गणेश की तस्वीर होगी, तो इससे पूरे देश को उनका आशीर्वाद मिलेगा।

सीएम केजरीवाल ने कहा था कि देश की अर्थव्यवस्था नाजुक दौर से गुजर रही है, डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होता जा रहा है, इसमें सुधार के लिए केंद्र सरकार बड़ा फैसला ले। केजरीवाल ने नोटों पर गांधीजी के साथ-साथ गणेश-लक्ष्मी की तस्वीर लगाने की मांग करते हुए कहा था कि सारे नोट बदलने की जरूरत नहीं है, लेकिन जो नए नोट छपते हैं, उन पर ये शुरुआत की जा सकती है।

भारत-रूस और चीन की तिकडी ने लगाई अमेरिका की सबसे बड़ी ताकत "डालर" में सेंध

केजरीवाल पहले नहीं हैं, जिन्होंने इस तरह की मांग की है। इससे पहले बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने भी दो साल पहले नोटों पर भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की तस्वीर छापने की मांग की थी। उस समय स्वामी ने कहा था कि अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए धन की देवी लक्ष्मी की तस्वीर छापनी चाहिए।

नोटों पर गांधीजी की तस्वीर को लेकर अक्सर सवाल उठते रहे हैं। कुछ कहते हैं कि नोटों पर से महात्मा गांधी की तस्वीर हटा देनी चाहिए।कुछ कहते हैं कि महात्मा गांधी की तस्वीर हो, लेकिन बाकी नोटों पर दूसरे महापुरुषों की तस्वीर भी छपनी चाहिए। अभी कुछ दिन पहले ही अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने भी मांग की थी कि नोटों पर महात्मा गांधी की जगह *नेताजी सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर छाप देनी चाहिए।*

पर क्या ऐसा हो सकता है?

इसका सीधा सा जवाब है- नहीं…। आजादी के बाद कई सालों तक नोटों पर अशोक स्तंभ या दूसरे प्रतीक छपते रहे थे। महात्मा गांधी की तस्वीर लगाने का फैसला ही इसलिए लिया गया था, क्योंकि उनकी स्वीकार्यता पूरे देश में थी। माना जाता है कि गांधीजी की बजाय दूसरे किसी महापुरुष की तस्वीर को छापा जाता, तो इससे विवाद और विरोध हो सकता था। यही वजह थी कि नोटों पर महात्मा गांधी की तस्वीर छापने का फैसला लिया गया।

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नोटों पर महात्मा गांधी की बजाय दूसरे किसी महापुरुष की तस्वीर छापी जाए? इसे लेकर केंद्रीय रिजर्व बैंक (RBI) की एक कमेटी का गठन किया गया था। नवंबर 2014 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने लोकसभा में बताया था कि आरबीआई की कमेटी ने महात्मा गांधी की बजाय दूसरे किसी नेता की तस्वीर ना छापने का फैसला लिया है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति गांधीजी से ज्यादा देश के स्वभाव का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता।

भारत में नोटों का क्या है इतिहास

भारत को आजादी तो 15 अगस्त 1947 को मिल गई थी, लेकिन गणतंत्र 26 जनवरी 1950 को बना। तब तक रिजर्व बैंक प्रचलित करंसी नोट ही जारी कर रहा था। रिजर्व बैंक की वेबसाइट के मुताबिक, सरकार ने पहली बार 1949 में 1 रुपये के नोट का नया डिजाइन तैयार किया था। उस समय नोटों पर ब्रिटेन के महाराजा की तस्वीर छपती थी।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, उस समय सहमति बनी कि ब्रिटेन के महाराज की जगह महात्मा गांधी की तस्वीर छापी जानी चाहिए, लेकिन बाद में तय हुआ कि नोटों पर अशोक स्तंभ की तस्वीर छापी जाएगी।

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1950 में पहली बार 2, 5, 10 और 100 रुपये के नोट छापे गए। इन सभी नोटों पर अशोक स्तंभ की तस्वीर छापी गई। 1953 में नोटों पर हिंदी को प्रमुखता से छापा गया। फिर 1954 में एक हजार, दो हजार और 10 हजार रुपये के नोट फिर से जारी किए गए, लेकिन 1978 में इनकी नोटबंदी कर दी गई, यानी इन्हें चलन से बाहर कर दिया गया।

जब पहली बार छपी गांधीजी की तस्वीर

1969 में महात्मा गांधी के 100वें जन्मदिन पर पहली बार करंसी पर महात्मा गांधी की तस्वीर छापी गई। इसमें महात्मा गांधी को बैठे हुआ दिखाया गया था। पीछे सेवाग्राम आश्रम छपा था। 1972 में रिजर्व बैंक ने 20 रुपये और 1975 में 50 रुपये का नोट जारी किया। 80 के दशक में फिर नई सीरीज के नोट जारी किए गए।

1 रुपये के नोट पर तेल का कुंआ, 2 रुपये के नोट पर आर्यभट्ट के उपग्रह की तस्वीर, 5 रुपये के नोट पर ट्रैक्टर से खेत जोतता किसान और 10 रुपये के नोट पर कोणार्क मंदिर का चक्र, मोर और शालीमार गार्डन छापे गए। ये वो दौर था जब अर्थव्यवस्था बढ़ रही थी और लोगों की खरीदारी करने की ताकत भी बढ़ रही थी। लिहाजा रिजर्व बैंक ने 500 रुपये का नोट जारी किया। इस पर महात्मा गांधी की तस्वीर छापी गई। वाटरमार्क में अशोक स्तंभ को रखा गया।

1996 में आए नई सीरीज के नोट

1996 में रिजर्व बैंक ने कई सारे सुरक्षा फीचर्स के साथ ‘महात्मा गांधी सीरीज’ के नए करंसी नोट जारी किए। वाटरमार्क भी बदले गए। इसमें ऐसा फीचर भी जोड़ा गया, जिससे नेत्रहीन भी नोट को आसानी से पहचान सकें।

9 अक्टूबर 2000 को आरबीआई ने एक हजार रुपये का नोट जारी किया। 8 नवंबर 2016 में नोटबंदी हो गई। महात्मा गांधी सीरीज के 500 और 1000 रुपये के नोट चलन से बाहर कर दिए गए। इसके बाद 2 हजार रुपये का नोट भी जारी किया गया। इसमें भी गांधीजी की तस्वीर छापी गई।

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नोट पर जो तस्वीर छपी, वो कब की है?

अक्सर मन में सवाल आता है कि नोट पर महात्मा गांधी की तस्वीर जो छपी है, वो कब की है? ये तस्वीर 1946 में खींची गई थी। ये तस्वीर उस समय ली गई थी, जब महात्मा गांधी लॉर्ड फ्रेडरिक पेथिक लॉरेंस विक्ट्री हाउस में आए थे!

भारत में छप चुका है 1 लाख का दुर्लभ नोट

एक लाख रुपए का नोट नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद सरकार के जमाने में आया था। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस नोट पर महात्मा गांधी की तस्वीर नहीं थी बल्कि सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर छपी हुई थी।

अब तक आपने अपनी जिंदगी में 2000 रुपए के नोट को सबसे बड़े नोट के रूप में देखा होगा…लेकिन अगर हम कहें कि भारत का सबसे बड़ा नोट 2 हजार का नहीं बल्कि 1 लाख का है तो शायद आप इस बात पर यकीन ना करें। लेकिन ये सच है। एक जमाने में भारत में 1 लाख रुपए का नोट भी छप चुका है। इसे देखना तो दूर कई लोगों ने इस बारे में सुना तक नहींं होगा…तो चलिए आपको 1 लाख रुपए के नोट से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातों से रूबरू कराते हैं।

कब और क्यों आया था 1 लाख रुपए का नोट

आपको बता दें कि 1 लाख रुपए का नोट नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद सरकार के जमाने में आया था। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस नोट पर महात्मा गांधी की तस्वीर नहीं थी बल्कि सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर छपी हुई थी। इस नोट को आज़ाद हिंद बैंक ने जारी किया था। इस बैंक का गठन भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ही किया था। जो कि बर्मा के रंगून में स्थित था।इसी बैंक को बैंक ऑफ इंडिपेंडेंस भी कहा जाता था।

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इस बैंक को खास कर डोनेशन कलेक्ट करने के लिए बनाया गया था जो कि भारत को ब्रिटिश राज से आज़ाद करने के लिए दिया जाता था। वहीं 1 लाख रुपए का नोट जारी करने वाले आजाद हिंद बैंक को दुनिया के 10 देशों का समर्थन भी प्राप्त था। आजाद हिंद सरकार के समर्थन में बर्मा, जर्मनी, चीन, मंचूको, इटली, थाईलैंड, फिलिपिंस ऑरलैंड आयरलैंड ने बैंक की करेंसी को मान्यता दी थी। वहीं नोटों के बनावट की बात करें तो एक तरफ सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर छपी थी तो दूसरी तरफ भारत के चित्र के ऊपर स्वतंत्र भारत लिखा हुआ था।

नेताजी के चालक ने दी थी 1 लाख के नोट की जानकारी

आपको बता दें कि आजाद हिंद बैंक द्वारा 5000 के नोट की जानकारी सार्वजनिक ही की गई थी जिसका एक नोट आज भी बीएचयू के भारत कला भवन में सुरक्षित मौजूद है। वहीं एक लाख के नोट  की जानकारी नेताजी के चालक रह चुके कर्नल निजामुद्दीन ने एक मीडिया हाउस को दिये इंयरव्यू के दौरान खुद बताई थी। इसके अलावा ये बात और भी पुख्ता हुई जब  एक लाख के नोट की तस्वीर हाल ही में नेताजी की परपोती राज्यश्री चौधरी ने विशाल भारत संस्थान को उपलब्ध कराई थी।

भारतीय करेंसी पर कभी छपती थी ‘नेताजी’ की तस्वीर

आजादी से पहले भारतीय करेंसी पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की भी तस्वीर छपती थी। आजाद हिंद बैंक की ओर से जारी इस करेंसी की छायाप्रति उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर में बैंक रोड स्थित भारतीय स्टेट बैंक की मुख्य शाखा के करेंसी डिस्प्ले बोर्ड पर देखा जा सकता है।

1943 में बना था आजाद हिंद बैंक

नेताजी ने देश को आजाद कराने के लिए जो जंग शुरू की थी, उसके लिए उन्हें काफी समर्थन भी मिला। लोगों ने खूब बढ़-बढ़कर चंदा भी दिया। इन पैसों को संभालने के लिए अप्रैल 1943 में एक बैंक भी बनाया गया। उसका नाम था ‘आजाद हिंद बैंक’। इस बैंक की स्थापना वर्मा की राजधानी रंगून में हुई थी। वर्मा को अब म्यांमार के नाम से जाना जाता है।

The trio of India, Russia and China put a dent in America's biggest strength "Dollar".

पुराने जमाने में राजा-महाराजा भी अपने नाम के सिक्के निकालते थे, तो उसी तरह नेताजी की इस सरकार ने भी ‘आजाद हिंद बैंक’ के मार्फत अपनी करेंसी जारी की। जिन देशों ने ‘आजाद हिंद सरकार’ का समर्थन किया, उन्होंने इस करेंसी को भी मान्यता दी थी।

आजाद हिंद सरकार को कई देशों का मिला था समर्थन

आजाद हिंद सरकार व फौज को समर्थन देने वाले दस देशों वर्मा, क्रोसिया, जर्मनी, नानकिंग (वर्तमान में चीन), मंचूको, इटली, थाइलैंड, फिलीपिंस व आयरलैंड ने बैंक और इसकी करेंसी को मान्यता दी थी। बैंक की ओर से दस रुपये के सिक्के से लेकर एक लाख रुपये के नोट तक जारी किए गए थे।

एक लाख रुपये के नोट पर सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर छपी थी। इसके पूर्व तक आजाद हिंद बैंक की ओर से जारी 5000 के नोट की ही जानकारी सार्वजनिक थी। पांच हजार का एक नोट बीएचयू के भारत कला भवन में भी सुरक्षित रखा है।

जापान-जर्मनी की मदद से होती थी करेंसी की छपाई

सुभाष चंद्र बोस ने जापान-जर्मनी की सहायता से आजाद हिंद सरकार के लिए नोट छपवाने का इंतजाम किया था। जर्मनी ने आजाद हिंद फौज के लिए कई डाक टिकट जारी किए थे, जिन्हें आजाद डाक टिकट कहा जाता है। ये टिकट आज भारतीय डाक के स्वतंत्रता संग्राम डाक टिकटों में शामिल हैं।

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