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त्रासदी को कैसे बनाया रोचक इतिहास “वो 17 दिन”

                ज़ेबा खान

आप सबको वो दिन तो याद ही होगा जब देश में हर जगह दिवाली  की  तैयारियां चल रही थीं तभी अचानक से टीवी पर एक ब्रेकिंग न्यूज़ फ़्लैश होने लगती है, जिसमें बताया जा रहा था कि सिलक्यारा सुरंग के अंदर 41 मजदूर फस गये हैं जिन्हें बचाना बहुत मुश्किल है जैसे ही टीवी पर ये खबर आई तो मानो दीवाली के रंग में भंग पड़ गया हो। हर किसी की नज़र बस सरकार के ऊपर ही टिकी हुई थी। जिसे देखो वो बस उस घटना की ही बात कर रहा था। इस घटना को पुस्तक का रूप दिया है कुमार राजीव रंजन सिंह और इसका संपादन अमित कुमार ने किया है, इसका प्रकाशन डायमंड बुक्स ने किया गया है। इतिहास  बन  चुके किसी भी त्रासदी को रोचक तरीके से लिखना और उसमें  हकीकत की तासीर को बनाएं रखना किसी भी लेखक के लिए सबसे बड़ी चुनौती होती है। लेकिन यह चुनौती तब और बड़ी  हो जाती है जब उसे हर वर्गहर तबके  के पाठकों को ध्यान में रखकर लिखा गया हो। यह चुनौती भरा काम कुमार राजीव रंजन सिंह ने किया है। कुमार राजीव रंजन सिंह छात्र जीवन से ही राजनीतिक एवं राष्ट्रीय मुद्दों में गहरी रुचि रखने लगे जिस वजह से देश के सामने तमाम चुनौतियों और समस्याओं से उद्वेलित राजीव रंजन छात्र नेता रहने के दौरान ही राष्ट्रीय राजनीति में गहराई तक जुड़ गए और समसामयिक मुद्दों को उठाते रहे।

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उन्होंने अपने कॉलेज के दिनों में दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष पद का चुनाव भी लड़ा उनकी राजनीति मुख्य रूप से युवाओं के साथ जुड़कर उनके मुद्दों के प्रति आम लोगों में जागरूकता फ़ैलाने का रहा है। राजीव रंजन सभी के लिए समान अवसरों के पक्षधर रहे हैं और इसके लिए सतत प्रयत्नशील भी। युवाओं का सशक्तीकरण राजीव रंजन का प्रिय विषय है।

इसीलिए वर्ष 2007 में उन्होंने एक अंतरराष्ट्रीय स्तर के एनजीओ युवा.. एक आंदोलन‘ की स्थापना की। इसके अलावा उन्होंने नेहरू युवा केंद्र तथा युवा कार्यक्रम और खेल मंत्रालयभारत सरकार के सहयोग से महात्मा गांधी युवा सूचना केंद्र(MYGYIC-COM)’ की शुरुआत की। राजीव रंजन उन लोगों में थे जिन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की परिवर्तनकारी संभावनाओं और युवाओं के सशक्तीकरण के लिए उनकी गंभीरता को पहचाना। श्री मोदी के नेतृत्व में युवाओं से जुड़े मुद्दों के केंद्र में आने से प्रभावित होकर वे यंग इंडिया‘ से जुड़ गए।

राजीव रंजन ने बदलते भारत के बदलते राजनीतिक परिदृश्य में बौद्धिक प्रतिभाओं की जरूरत को देखते हुए एक ऐसी संस्था की कल्पना की जो सामाजिकआर्थिक विकास के साथ लोकतांत्रिक व्यवस्था की मजबूती में भी सहायक हो। इस सपने को साकार करने के लिए उन्होंने 2022 में एक थिंक टैंक इंडिया सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च एंड डेवलपमेंट‘ (ICPRD) की स्थापना की। युवा सशक्तीकरण के प्रति प्रतिबद्ध कुमार राजीव रंजन सिंह देश की प्रगति एवं उन्नति के लिए सामूहिकता में विश्वास करते हैं।

इस पुस्तक का सम्पादन अमित कुमार ने किया है जो पिछले 25 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र अपना जोहर दिखा रहे हैं। मौजूदा समय में यह राष्ट्रीय सहारा हिंदी दैनिक में वरिष्ठ संवाददाता के पद पर कार्यरत हैं। पत्रकारिता के अलावा लेखनकार्य से भी जुड़े हुए है अमित कुमार की अबतक तीन किताबे प्रकाशित हो चुकी है। जिसमें से एक पुस्तक  पत्रकारिता पर आधारित जनसम्पर्क‘ है जिसे दिल्ली सरकार की हिंदी अकादमी की ओर से साहित्यकृति‘ सम्मान भी मिल चुका है। इसके अलावा क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी के ऊपर एक किताब सफलतम कप्तान महेंद्र सिंह धोनी‘ के नाम से लिखी है। और इस कड़ी में एक कविता संग्रह भी प्रकाशित हो चुकी है। 

त्रासदी को कैसे बनाया रोचक इतिहास “वो 17 दिन”

अमित ने  टीवी सीरियल में भी हाथ आजमाया है। हिंदी के पहले उपन्यास परीक्षा गुरु‘ का दूरदर्शन के लिए सीरियल में रूपांतरण किया है। इस सीरियल के संवाद और स्क्रीन प्ले भी लिखे हैं। पत्रिकारिता के फील्ड में  इन्होने खूब नाम कमाया है  खून की कालाबाजारीप्रदूषण खासकर लाइटपॉल्यूशन’जिसके बाद आम आदमी को पता चला कि रौशनी से भी प्रदूषण फैलता है जिससे हमारी इकोलॉजी पर सबसे बुरा प्रभाव पड़ता है। 

यह रंगमंच से भी लंबे समय तक जुडे रहे। यही वजह है कि पत्रकारिता के फील्ड में कदम रखने के बाद भी उन्होंने रंगमंच को नही छोड़ा और अपनी लेखनी के माध्यम से रंग समीक्षा जारी रखी। साथ ही राष्ट्रीय सहारा में लंबे समय तक राजधानी में मंचित होने वाले नाटकों के लिए मंडी हाउस‘ शीर्षक से नियमित रूप से एक साप्ताहिक कॉलम लिखे हैं। इन्होने हमेशा प्रमुखता में स्वास्थ और पर्यावरण को ही रखा है। 

इस पुस्तक से आप लोगों को पता चलेगा आखिर वो 17 दिन को उत्तराखंड के सिलक्यारा सुरंग में फसे हुए लोगों ने हर एक दिन मौत का तांडव होते देखा है। उनके आंखों के सामने कभी न खत्म होने वाला अंधेरा थालेकिन इसके साथ ही उनके अंदर भरोसे की एक ऐसी अदृश्य रोशनी भी जगमगा रही थी जो उन्हें यह भरोसा दिला रही थी कि वह एक दिन अपनों से जरूर मिलेंगे। सिलक्यारा सुरंग के बीच में फंसे इन 41 मजदूरों के अंदर उम्मीदों की यह किरण देश के यशश्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस पूरे ऑपरेशन को व्यक्तिगत रूप से मॉनिटर किए जाने की वजह से जगी थी। ऐसा 17 दिनों के बाद सुरंग से बाहर आए मजदूरों ने बताया था। 

लेखक ने सिलक्यारा की घटना को जितने रोचक तरीके से लिखा है उससे पता चलता है कि उन्होंने पूरी घटना को बहुत ही बारीकी के साथ देखा और समझा है। किताब को पढ़ते हुए कभी भी ऐसा नहीं लगता है कि इतिहास के पन्ने को उलट रहे हैं । बल्कि ऐसा लगता है जैसे कोई उपन्यास पढ़ रहे हों। किताब को पढ़ते हुए हर पल एक उत्सुकता बनी रहती है कि आगे क्या कुछ घटने वाला है।

इतिहास को उपन्यास की शैली में लिखना और रोचकता को बनाए रखना लेखक की सबसे बड़ी थाती है। यह किताब लेखक कुमार राजीव रंजन सिंह की लेखकीय प्रतिभा से पाठकों को परिचित कराती है और यह उम्मीद भी जताती है कि आने वाले समय में उनकी लेखनी से कुछ और बेहतर कहानियांउपन्यास पाठकों को पढ़ने को मिलेंगे। इस घटना को पुस्तक के रूप में लाने के लिए कुमार राजीव रंजन सिंह और सम्पादक अमित कुमार के अथाह प्रयासों  के बावजूद ही “वो 17 दिन” पुस्तकको पाठकों के हाथों में सौपा जा सका है।

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