मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल का आगाज अलग अंदाज में करती दिख रही है। इस बार सरकार समाज के सबसे पिछड़े और निचले तबके के लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए कदम उठाती दिख रही है। इसके तहत सरकार आर्थिक सर्वेक्षण (आर्थिक जनगणना) कराने का फैसला लिया गया है। इस बार इस आर्थिक सर्वेक्षण (आर्थिक जनगणना) में ठेले , रेहड़ी पर अपना रोजगार करने वाले भी मेनस्ट्रीम में शामिल होंगे। साथ ही, 27 करोड़ घरों और 7 करोड़ Establishment का आर्थिक सर्वेक्षण होगा। यह जून के आखिरी हफ्ते में शुरू होगा। इसके बाद 6 महीने में साफ हो जायेगा कि देश में रोजगार की स्थिति कैसी है।
आपको बता दे कि वर्ष 2013 में आर्थिक जनगणना हुई है। हर 5 साल बाद देश भर में यह गणना होती है। पहले इस काम में परिषदीय स्कूलों अध्यापकों, आंगनबाड़ी कार्यकत्री, आशा आदि को लगाया जाता था। अबकी बार देश भर की आर्थिक जनगणना का काम सीएससी एजेंसी को दिया गया है। एजेंसी अपने जनसेवा केंद्र संचालकों यानी वीएलई के माध्यम से पूरा कराएगी।
एसकोर्ट सिक्योरिटी के रिसर्च हेड आसिफ इकबाल ने बताया कि आर्थिक जनगणना में ठेले रेहड़ी वालों को शामिल करने से ये सभी लोग मेनस्ट्रीम में शामिल हो जाएंगे। इनको लेकर भी सरकार नए कानून बनाएगी। ऐसे में उनको आसानी से कर्ज मिलने समेत कई अधिकार मिलेंगे।
आर्थिक जनगणना करने के लिए ग्रामीण और शहरी इलाकों में अलग-अलग गणनाकार लगाए जाएंगे। घर-घर जाकर आर्थिक आधार पर जनगणना का काम करने के लिए शहरी क्षेत्र में दस अर्द्धशहरी क्षेत्र में सात और ग्रामीण क्षेत्र में पांच गणनाकारों का रजिस्ट्रेशन किया गया है। आर्थिक जनगणना के तहत काम ऑनलाइन किया जाएगा। पूरी गणना पेपरलेस होगी। मोबाइल या टैबलेट के माध्यम से जनगणना की जाएगी। सभी डिटेल मुखिया के समक्ष मोबाइल में ऑनलाइन अपलोड की जाएगी।
सर्वे में शामिल गणनाकारों को मेहनताने के रूप में प्रति परिवार 15-20 रुपये दिए जाएंगे. अनुमान है कि सर्वे में देशभर के करीब 20 करोड़ परिवार गणना में शामिल होंगे। इस पर करीब 300 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। हाल में ही सीएससी ने कुछ माह के भीतर ही आयुष्मान भारत के तहत 14 राज्यों में एक करोड़ पंजीकरण किए थे।