सावन का महीना भगवान शिव की पूजा-अर्चना के लिए जाना जाता है. इस महीने शिव भक्त दूर-दूर से शिव मंदिर आकर भोलेबाबा को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं. शिव के प्रति ऐसी आस्था और समर्पण भारत में ही नहीं पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी देखी जाती है. जी हां पाकिस्तान में भी अनेक हिंदू मंदिर हैं. जिसमें कटसराज मंदिर का इतिहास बेहद खास है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह वही मंदिर है जहां पहली बार देवी सती की मत्यु के बाद भगवान शिव ने उन्हें याद करते हुए आंसू बहाए थे. आइए इस पावन महीने में जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी आस्था और विश्वास की कहानी.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कटसराज का यह शिव मंदिर पाकिस्तान के चकवाल गांव से लगभग 40 कि.मी. की दूरी पर कटस नामक स्थान में एक पहाड़ी पर है. यह मंदिर लगभग 900 साल पुराना बताया जाता है. खास बात यह है कि पाकिस्तान में रहने वाले सभी हिंदुओं की आस्था का यह प्रमुख केंद्र है.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब माता सती ने अपने पिता दक्ष के यहां मौजूद यज्ञ कुंड में आत्मदाह किया था, तो उनके वियोग में भगवान शिव अपनी सुध-बुध खो बैठे थे. माता सती को याद करते हुए भगवान शिव की आंखों से जो आंसू टपके थे उनसे दो कुंड बन गए. जिसमें से एक कुंड का नाम कटाक्ष कुंड पड़ गया. भगवान शिव के आंसुओं से जो कटाक्ष कुंड बना वो आज विभाजन के बाद पाकिस्तान में मौजूद है. जबकि दूसरा कुंड भारत में राजस्थान के पुष्कर तीर्थ में मौजूद है. मान्यताओं के अनुसार, कटसराज मंदिर का कटाक्ष कुंड चमत्कारी पानी से भरा हुआ है.इस सरोवर में दो रंग का पानी मौजूद हैं. मंदिर में जहां पानी कम गहरा है वहां लोगों को इसका रंग हरे रंग का और गहराई में पानी का रंग नीले रंग का दिखाई देता है.
पांडवों से भी जुड़ा है शिव मंदिर का इतिहास-
महाभारत के अनुसार यह वही जल सरोवर बताया जाता है जहां पांडव अपनी प्यास बुझाने के लिए एक-एक करके आए थे. पानी के इस कुण्ड पर यक्ष का अधिकार था. पानी पीने आए जब सभी पांडव एक-एक करके बेहोश हो गए तो अंत में युधिष्ठिर ने यक्ष के सभी सवालों का सही-सही जवाब देते हुए भाइयों को जीवित करवाया था.