बीते दिनों प्राइवेट सेक्टर की दो बड़ी इंश्योरेंस कंपनियों पर कार्रवाई की गई है। इसके बाद इन कंपनियों से बीमा खरीदने वाले लोगों की चिंता बढ़ गई है। इन दोनों कंपनी में से एक अनिल अंबानी की स्वामित्व वाली रिलायंस हेल्थ इन्श्योरेन्स कंपनी (Reliance Health Insurance) व दूसरी अवीवा जीवन इन्श्योरेन्स (Aviva Life Insurance) है। बीते सोमवार को नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) ने अवीवा के विरूद्ध दिवालिया प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी। एपीजे ट्रस्ट (Appejay Trust) ने अवीवा कंपनी पर लाइसेंस फीस, कार पार्किंग, मेंटेनेंस, सर्विस चार्ज व सर्विस टैक्स नहीं जमा करने का आरोप लगाया है। यह रकम करीब 27 लाख 67 हजार 203 रुपए है।
वहीं, दूसरी तरफ रिलायंस हेल्थ इन्श्योरेन्स के मुद्दे में इन्श्योरेन्स रेग्युलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (IRDA) ने कंपनी को किसी भी प्रकार के इन्श्योरेन्स प्रोडक्ट्स (Insurance Product) बेचने पर रोक लगा दिया है। IRDA ने बोला है कि 15 नवंबर के बाद रिलायंस हेल्थ इन्श्योरेन्स कोई प्रोडक्ट नहीं बेच सकेगी। कंपनी को पॉलिसीहोल्डर्स (Policy Holders) की लायबीलिटी व वित्तीय एसेट (Financial Assets) को रिलायंस जनरल इन्श्योरेन्स के हाथों सौंपना होगा। कंपनी पर आरोप है कि वह अपने सॉल्वेन्सी मार्जिन (Solvency Margin) को मेन्टेन नहीं कर पाई है।
बता दें कि इन्श्योरेन्स कंपनियों को सॉल्वेन्सी मार्जिन 150 प्रतिशत के अनुपात में मेन्टेन करना जरूरी है। जून में 106 प्रतिशत के मुकाबले कंपनी का सॉल्वेन्सी मार्जिन बीते सितंबर माह में घटकर 63 प्रतिशत तक आ चुका था। रेग्युलेटर ने कंपनी को सॉल्वेन्सी जरूरतों को पूरा करने के लिए 30 सितंबर तक की मोहलत दी थी। लेकिन, कंपनी इस लक्ष्य को पूरा करने में नाकाम रही। ऐसे में इन दोनों कंपनियों के मौजूदा पॉलिसीधारकों की चिंता बढ़ गई है। क्या कंपनी पर होने वाली कार्रवाई से पॉलिसीधारकों की पॉलिसी पर क्या प्रभाव पड़ेगा? आज हम आपको इसी के बारे में बताने जा रहे हैं। सबसे पहले बात करते हैं कि कंपनी पर हुई इस र्कारवाई का अवीवा जीवन इन्श्योरेन्स के पॉलिसीधारकों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
आईबीसी द्वारा कार्रवाई के बाद कंपनी ने अपनी तरफ से जारी एक बयान में बोला है, ‘अवीवा इंडिया का सॉलवेन्सी मार्जिन 300 प्रतिशत से अधिक है। मौजूदा मुद्दा कंपनी व उसके वेंडर के बीच है जिसमें कंपनी न्यायालय इसका निवारण निकालने पर कार्य कर रही है। ‘ कंपनी ने अपने बयान में आगे बोला कि अगर कंपनी द्वारा वेंडर को बकाया भुगतान करने का मुद्दा उसके बैलेंस शीट पर आधारित है। इससे पॉलिसीहोल्डर्स पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
वहीं, रिलायंस हेल्थेकयर इन्श्योरेन्स के मुद्दे में IRDA ने बोला है कि RHICL इस बात को सुनिश्चित करे कि लंबी अवधि में पॉलिसीहोल्डर्स पर इसका प्रभाव न पड़े। RGICL ने अपने बयान में बोला है कि इस मुद्दे का प्रभाव पॉलिसीहोल्डर्स पर नहीं पड़ेगा। उन्हें उनकी पॉलिसी टर्म्स व कंडीशन के आधार पर फायदे मिलते रहेंगे। लाइवमिंट ने अपनी एक रिपोर्ट में एक ब्रोकरेज फर्म के हवाले से बोला है कि इस तरह के मुद्दे में इन्श्योरर को अपना मर्जर प्लान IRDA के हवाले करना होता है। ऐसे में प्रोडक्ट आरजीआईसीएल (RGICL) से जुड़ जाएगा व इसके बाद केवल प्रोडक्ट नाम व कस्टमर सर्विस नंबर में परिवर्तन होता है, जिसके बारे में कंपनी ग्राहकों को सूचित करती है। पॉलिसीहोल्डर को अपनी तरफ से कुछ नहीं करना होता है।