गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी (जीएनडीयू) के एमर्जिग जीवन साइंस विभाग ने 12 वर्ष की रिसर्च के बाद ब्रेस्ट कैंसर को मात देने वाली दवाई तैयार की है. इसका चूहों पर इस्तेमाल पास रहा है. अब दो तरह का कंपाउंड (दवा तैयार करने का मटीरियल और फार्मूला) अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर को भेजा गया है. अमेरिकी संस्थान ने इस पर मोहर लगा दी है. अब इसका मानव शरीर पर परीक्षण करने के लिए रिसर्च प्रारम्भ कर दी है.
जीएनडीयू के एमर्जिग जीवन साइंस विभाग के इंचार्ज प्रो। पलविंदर सिंह ने बताया कि यह रिसर्च 2006 में प्रारम्भ हुई थी. करीब पांच वर्ष तक ब्रेस्ट कैंसर से पीडि़त भिन्न-भिन्न स्त्रियों के केस स्टडी किए गए व उनमें कैंसर के कारणों का डाटा इकट्ठा किया. फिर चूहों में उसी तरह की बीमारी के ट्यूमर तैयार कर इस्तेमाल प्रारम्भ किए. सैकड़ों बाहर असफलता हाथ लगी. 2018 में करीब 12 वर्ष की मेहनत रंग लाई व दो तरह की दवाई तैयार की. इसका चूहों पर परीक्षण किया. परिणाम अच्छा आया व चूहों से बीमारी समाप्त होने लगी. फिर अमेरिकी इंस्टीट्यूट को दवाई तैयार करने का मटीरियल व फार्मूला भेजा गया. अमेरिकी इंस्टीट्यूट ने भी इस पर मोहर लगा दी है. अब दवा का मानव शरीर पर टेस्ट करने के लिए रिसर्च कर रहा है, ताकि कैंसर को समाप्त किया जा सके.
भारत होगा संसार का पहला देश
अमेरिकी इंस्टीट्यूट अपनी रिपोर्ट जीएनडीयू के साथ साझा करेगा. अगर मनुष्य पर भी टेस्ट पास रहा तो हिंदुस्तान संसार का पहला देश बन जाएगा, जिसने ब्रेस्ट कैंसर की दवाई की सबसे पहले खोज की.
पांच-पांच चूहों के कई ग्रुप बनाकर किया प्रयोग
प्रो। पलविंदर सिंह ने बताया कि मानव शरीर में प्रोटीन की मात्रा कम होने या बढ़ने से कई ऐसे स्टेज हैं, जिससे ब्रेस्ट कैंसर का जीवाणु पैदा होने लगता है. उन सभी कारणों को लेकर मटीरियल तैयार किया गया था. बाद में पांच-पांच चूहों के कई ग्रुप बनाकर इस्तेमाल प्रारम्भ किए. इसमें धीरे-धीरे सफलता मिलती गई.
जीएनडीयू ने दोनों कंपाउंड पेटेंट के लिए भेजे
जीएनडीयू की टीम ने लंबी रिसर्च के बाद यह कंपाउंड तैयार किया है, इसलिए इसका पेटेंट करवाया जा रहा है. कंपाउंड पेटेंट के लिए भेजे गए हैं. इससे कोई दूसरा देश या इंस्टीट्यूट इस पर अपना दावा नहीं कर सकेगा.