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Lucknow University और भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के संयुक्त तत्वाधान में दो दिवसीय संगोष्ठी आयोजित

Lucknow University और भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के संयुक्त तत्वाधान में दो दिवसीय संगोष्ठी आयोजित

Lucknow। राजनीतिशास्त्र विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय (Lucknow University), लखनऊ एवं भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वाधान में 7 अप्रैल से 8 अप्रैल तक “राज्य, समाज और राष्ट्र के बीच अर्न्तसंबंधः भारतीय परिपेक्ष्य” (Interrelationship between State, Society and Nation: Indian Perspective) विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

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उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में प्रसिद्ध राष्ट्रवादी विचारक और शिक्षाविद डॉ कृष्ण गोपाल (Dr Krishna Gopal) उपस्थित रहे। लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो आलोक कुमार राय (Prof Alok Kumar Rai) ने मुख्य संरक्षक के रूप में कार्यक्रम की अध्यक्षता की। अन्य प्रतिष्ठित गणमान्य व्यक्तियों में राजनीति विज्ञान विभाग की पूर्व विभागाध्यक्ष एवं प्रतिकुलपति प्रो मनुका खन्ना और कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो अरविंद मोहन शामिल थे।

Lucknow University और भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के संयुक्त तत्वाधान में दो दिवसीय संगोष्ठी आयोजित

अपने संबोधन में, प्रो गुप्ता ने संगोष्ठी के विषय का एक व्यावहारिक अवलोकन प्रदान किया, जिसमें राज्य निर्माण और समकालीन वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की गई जो राज्य-समाज संबंधों की पारंपरिक समझ को चुनौती देते हैं। डॉ कृष्ण गोपाल ने अपने मुख्य भाषण में राष्ट्र और राज्य निर्माण की यूरोपीय और भारतीय अवधारणाओं का एक व्यापक और तुलनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत किया।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कैसे पश्चिमी दार्शनिक परंपराएँ अक्सर विशिष्टता को प्राथमिकता देती हैं, जहाँ विविधता अक्सर अलग-अलग पहचान और उस आधार पर राज्य निर्माण की ओर ले जाती है। इसके विपरीत, उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे भारत, 5,000 साल के इतिहास वाली सभ्यता के रूप में, साझा आंतरिक मूल्यों और नैतिक ढाँचों के माध्यम से एकता बनाए रखते हुए धर्म, जाति, संस्कृति और भाषा में जबरदस्त विविधता को अपनाता है।

डॉ गोपाल ने कई पश्चिमी दार्शनिकों का संदर्भ दिया जिनके विचारों ने बहिष्कार प्रथाओं में योगदान दिया है, जबकि भारतीय शास्त्रों और पवित्र ग्रंथों के साथ समानताएँ खींची हैं जो विविधता में एकता के सिद्धांत पर जोर देते हैं। उनकी विद्वतापूर्ण प्रस्तुति ने प्रतिभागियों को विविधता के बीच सामाजिक सामंजस्य बनाए रखने के लिए भारत के अनूठे दृष्टिकोण के बारे में बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान की।

Lucknow University और भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के संयुक्त तत्वाधान में दो दिवसीय संगोष्ठी आयोजित

संगोष्ठी के संयोजक डॉ जितेंद्र कुमार ने संगोष्ठी के वैचारिक ढांचे और इसके अकादमिक महत्व को स्पष्ट किया। उन्होंने बताया कि वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक संदर्भ में विद्वानों के विमर्श के लिए इस विशेष विषय को क्यों चुना गया और राष्ट्रीय पहचान और सामाजिक एकीकरण पर समकालीन बहसों के लिए इसकी प्रासंगिकता पर बल दिया। प्रो मनुका खन्ना ने संगोष्ठी के विषय पर आगे विस्तार से बताया और चर्चा में अतिरिक्त अकादमिक परिप्रेक्ष्य का योगदान दिया।

उद्घाटन सत्र का समापन प्रो कमल के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। संगोष्ठी ने देश भर के विद्वानों, शोधकर्ताओं और छात्रों को आकर्षित किया है, जो भारत के अनूठे राज्य-समाज संबंधों से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्नों पर बौद्धिक आदान-प्रदान के लिए एक मंच प्रदान करता है। दो दिनों में निर्धारित विभिन्न तकनीकी सत्र सैद्धांतिक रूपरेखा, ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य और संगोष्ठी विषय से संबंधित समकालीन चुनौतियों पर गहराई से चर्चा करेंगे। इस अकादमिक प्रयास का उद्देश्य राष्ट्र निर्माण प्रक्रियाओं और भारतीय संदर्भ में राज्य संस्थाओं और सामाजिक ताकतों के बीच गतिशील अंतःक्रिया पर चल रहे विमर्श में सार्थक योगदान देना है। इसी क्रम में संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र का समापन राष्ट्रगान के साथ किया गया।

Lucknow University और भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के संयुक्त तत्वाधान में दो दिवसीय संगोष्ठी आयोजित

इस दौरान विभाग के समस्त शिक्षक प्रो संजय गुप्ता, (विभागध्यक्ष), प्रो मनुका खन्ना, प्रो कमल कुमार, प्रो कविराज, डा अमित कुशवाहा, डॉ शिखा चौहान, डा राजीव सागर, डा माधुरी साहू, डा अनामिका, डा जितेन्द्र कुमार, डॉ दिनेश कुमार, डा तुंगनाथ मुआर, डॉ दिनेश यादव, डॉ सत्यम तिवारी व अन्य छात्र-छात्राएं उपस्थित रहें।

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