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हिन्दू धर्म के अनुसार ये होता है पुरुष के सिर पर चोटी का महत्व, जरुर पढ़े

हमारे यहां सभी धर्मो के अपनी अलग- अलग रीति रिवाज है हमारा देश हिन्दू धर्म प्रमुख देश है। हिन्दू धर्म के वैदिक काल में संस्कृत भाषा बोली जाती थी और जो व्यक्ति जैसा काम करता था उसी के आधार पर उसकी जाति का निर्धारण कर दिया गया था जो केवल पांच प्रकार की जाति बनाई गई थी जो प्रमुखत: शेव ,वैष्णव ,शक्त ,वैदिक ,स्मार्त थी।

पुरुष के सिर पर चोटी का महत्व:

सुशुर्त सहिंता में वर्णित है की मष्तिष्क के अन्दर जहाँ बालो का केंद्र होता है वहां सम्पूर्ण नाडी व संधियों का मिलान होता है उसे ‘अधिपतिमर्म ‘कहते है। उस स्थान पर यदि व्यक्ति को चोट लगती है तो उसकी मृत्यु हो जाती है सुषुम्ना के मुख्य स्थान को ‘मस्तुलिंग ‘कहते है।

मनुष्य की सभी ज्ञानेन्द्रियो कान ,नाक ,जीभ, आँख का सम्बन्ध होता है और कामेंद्रिया हाथ ,पेर .गुदा इन्द्री का सम्बन्ध मस्तुलिंग से होता है। व्यक्ति के मस्तिष्क मस्तुलिंग जितने ताकतवर होते है उसकी ज्ञानेन्द्रिया और कमेंद्रिया उतनी ही शक्तिशाली होती है।

चोटी रखने के कई कारण है:

बच्चे के जन्म के पहले,तीसरे,पांचवे,सातवे,और नोवे वर्ष के अंत में जब बच्चे का मुंडन संस्कार किया जाता है। तब कपाल के केंद्र में चोटी रखी जाती है और जब कोई व्यक्ति यज्ञोपवित धारण करता है तब चोटी रखी जाती है जिस स्थान पर चोटी रखी जाती है उस स्थान को सहस्त्रार कहते है तथा उस स्थान के कुछ नीचे आत्मा का निवाश होता है चोटी रखने के बाद उसमे गठान बाँधी जाती है।

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