आर्थिक विकास के मार्ग में महंगाई एक ऐसी फांस बनकर रह गई है, जिसका तत्काल स्थायी हल उपलब्ध ही नहीं है। इसकी सबसे बड़ी वजह कंपोनेंट सप्लाई की कमी होना है. इसके अलावा फ्रेट कंटेनर के जरूरी पोर्ट पर फंसने की वजह से भी मैन्युफैक्चरर को कंपोनेंट की कमी हो रही है.आर्थिक संकट का अंदेशा पैदा करती है
कॉपर और एल्यूमीनियम जैसे मेटल्स की कीमतों में भी इजाफा हुआ है. इसके अलावा प्लास्टिक भी महंगे हुए हैं. करेंसी एक्सचेंज रेट्स बढ़ने से भी कीमतें बढ़ी हैं.समय-समय पर सरकारों द्वारा महंगाई को नियंत्रण में रखने के प्रयास भी किए जाते हैं।
पड़ोसी देशों में लगे लॉकडाउन की वजह से भी सप्लाई प्रभावित हो रहा है. AC और रेफ्रिजरेटर जैसे कूलिंग प्रोडक्ट्स में यूज होने वाले कंप्रेसर की सप्लाई भी भारत में प्रभावित हो रही है.
ब्याज की दरों में कमी की जाती है। इसका उद्देश्य जहां व्यक्ति को आर्थिक संरक्षण देना होता है, वहीं उसकी क्रय क्षमता में गिरावट को रोकना भी होता है, वरना अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ सकती है। बढ़ती महंगाई ने कई देशों को आर्थिक संकट में डाला है। श्रीलंका की आर्थिक बर्बादी है। आजकल अमेरिका में भी इसे लेकर खूब असंतोष है।