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औरैया में तीन दिन में दूसरे पत्रकार की मौत, अव्यवस्थाओं के चलते कब्रगाह बना जिला अस्पताल

औरैया। जनपद के जिला अस्पताल में भर्ती कोरोना संक्रमित मरीजों के प्रति जहां अधीक्षक समेत अन्य चिकित्सकों की घोर लापरवाही व संवेदनहीनता देखने को मिल रही है, वहीं अन्दर से आ रहे दृश्यों को देखने से स्वास्थ्य सुविधाओं के किए जा रहे सभी दावे हवा-हवाई नजर आ रहे हैं। जिले में तीन दिन में दूसरे पत्रकार साथी की मौत पर जिला प्रेस क्लब के सदस्यों के सब्र का बांध आज टूट गया। उन्होंने सारी अव्यवस्थाओं व मौतों का जिम्मेदार अधीक्षक को ठहराया है।

जिले में शुक्रवार को जहां कोरोना संक्रमित एक और पत्रकार की मौत से सुविधाओं के अभाव में मरीजों में दहशत का माहौल बन गया है। वहीं मतगणना हेतु कोरोना जांच कराने को लगी भीड़ ने कोरोना प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ा दी। 100 शैय्या जिला अस्पताल की कोविड फैसिलिटी में चिकित्सकों की लापरवाही का आलम ये है कि जो भी मरीज भर्ती हुआ उसके तीमारदारों ने अपनों के जीवन को बचाने के लिए चिकित्सकों के पैर तक पड़ लिए, पर वह नहीं पसीजे। आलम यह है कि यहां भर्ती मरीजों को न तो समय से दवा मिल रही है और न ही ऑक्सीजन। जिसके चलते जिले के एक वरिष्ठ पत्रकार गोपाल मिश्रा ने दम तोड़ दिया।

बताया तो यहां तक गया है कि अधीक्षक ने अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए अस्पताल में लगे सीसीटीवी कैमरे तक खराब करा दिए हैं। टाइम-बेटाइम जो दवा दी जा रही है उसे भी तीमारदारों को स्वयं खिलानी पड़ रही है। पत्रकार गोपाल मिश्रा की मौत से व्यथित जिले के पत्रकारों ने आज जिला अस्पताल की खामियों को उजागर कर अधीक्षक को तत्काल हटाये जाने की मांग है।

इसी के साथ आज एक महिला मरीज के जमीन पर लेटे होने की फोटो वायरल हुई, जिसमें एक बच्ची अस्पताल में अपनों की जान बचाने के जद्दोजहद में ग्लूकोज की बोतल हाथ में पकड़े खड़ी है। यानि जिला अस्पताल में बोटल टांगने के लिए एक स्टैंड तक नहीं है। दूसरी ओर जिलाधिकारी सुनील कुमार वर्मा ने कल ही जिला अस्पताल में 200 बेड की सुविधा के साथ वर्तमान में 80 मरीजों के भर्ती होने की बात कही थी। सवाल ये उठता है, जब 120 बेड खाली पड़े थे तो इस महिला को बेड क्यों उपलब्ध नहीं कराया गया।

जिससे स्पष्ट है कि जिला अस्पताल में मरीजों के साथ किस तरह का व्यवहार किया जा रहा है। चिकित्सकों व स्वास्थ्य कर्मियों में मानवता नाम की कहीं कोई चीज नहीं दिख रही है। यानि जो मरीज जिला अस्पताल में भर्ती हो रहा है वो भगवान भरोसे है। क्योंकि धरती के इस भगवान को उनके जीवन को बचाने में कोई दिलचस्पी नहीं है।

आज जिला अस्पताल की एक फोटो और वायरल हुई, जिसमें मतगणना केन्द्र में प्रवेश हेतु कोरोना जांच कराने को पहुंचे प्रत्याशी व एजेंट कहीं भी कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते नजर नहीं आ रहे हैं। खिड़की कर भीड़ ऐसे एकत्रित हुई मानों मधुमक्खियों का छत्ता हो। यहां पर दो गज की दूरी का पालन कराने के लिए न स्वास्थ्य कर्मी नजर आया और न पुलिस या प्रशासन के लोग। कहा जा सकता है कि लापरवाही का आलम यह है कि जानबूझकर जिले के नागरिकों को मौत के मुंह में धकेला जा रहा है।

अपने साथी की मौत से आहत जिला प्रेस क्लब के संरक्षक सुरेश मिश्रा ने तो आज व्यथित मन से जिलाधिकारी को लिखा कि हम लोगों ने अपने कई मित्रों को खो दिया है। जिले के कई नागरिक भी कोविड की चपेट में आकर जिला अस्पताल में भर्ती हुए, परंतु अफसोस वहां की अव्यवस्था ने उन्हें जीने नहीं दिया। मौत तो सत्य है किंतु होती बहुत दुखदाई है, वह अपने हों या कोई अन्य। महामारी से मौत का आंकड़ा रुके इसके लिए सामूहिक प्रयास किया जाना आवश्यक है, जो जिले से नादरद हैं। सौ शैय्या हॉस्पिटल में लगे हुए सीसीटीवी कैमरे खराब क्यों हो गए? खराब हुए थे तो सुधारे क्यों नहीं गए? हमारे मजबूत सूत्र यह बताते हैं कि कैमरे जानबूझकर खराब कराए गए। जिससे आप अस्पताल में व्याप्त कमियां न ढूंढ पाएं। ड्यूटी पर तैनात चिकित्सकों व स्टाफ को दवा तब मुहैया कराई जाती है जब उनका ड्यूटी से मुक्त होने का समय होता है।

उन्होंने कहा कि कमियां बहुत हैं, परिणाम उसके साक्ष्य हैं। आपके पास असीमित अधिकार है, महामारी के इस दौर में आपका अधिकार और बढ़ जाता है। नागरिकों के जीवन की रक्षा के लिए अधीनस्थों के साथ आपको कठोरता दिखानी होगी। व्यवस्था सुधारने के लिए सौ शैय्या के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. रस्तोगी को आप तत्काल वहां से कार्यमुक्त करें, उनकी सेवा कहीं अन्यत्र लें, यहां ऐसे वरिष्ठ चिकित्सक को लगाएं जिसे अच्छे प्रबंधन का ज्ञान हो और मरीजों व स्टाफ के साथ जिसका अच्छा व्यवहार हो।

इसके अलावा दिबियापुर सीएचसी व महिला अस्पताल को मिलाकर 100 बैड अस्पताल बनाया जा सकता है। पिछली बार यहां की सेवाएं एल-2 हॉस्पिटल से भी बेहतर थीं। यहां पर हर मरीज को सुबह भाप के साथ गर्म पानी काढ़ा और आवश्यक दवाएं मिल रही थीं। परिणाम संतोषजनक थे। वहां ऑक्सीजन की भी पर्याप्त व्यवस्था है। 100 बेड हॉस्पिटल में लगातार हो रही मौत से अब जिले के लोग दहशत में हैं। कानपुर या सैफई में एडमिट होने की दिक्कत है तो ऐसे में लोगो की मानसिक हालत बिगड़ रही है। अब जितनी जाने जा चुकी हम उन्हें वापस नहीं ला सकते लेकिन जो बचे हैं उन्हें सुरक्षित रख सकते हैं। इसलिए दिबियापुर सीएचसी को 100 बैड कोविड हॉस्पिटल बनाना बहुत जरूरी है। उम्मीद है कि परिणाम बेहतर आएंगे और हमारे नागरिकों के जीवन की रक्षा हो पाएगी।

जिला प्रेस क्लब के अध्यक्ष सुनील गुप्ता ने कहा कि पिछले वर्ष तत्कालीन जिलाधिकारी अभिषेक सिंह ने हम लोगों की मांग पर शासन को डीओ लेटर लिखा था, रस्तोगी का ट्रांसफर हुआ भी लेकिन रुक गया। 100 शैय्या अस्पताल को डॉक्टर रस्तोगी ने अपने निजी स्वार्थ का अड्डा बना रखा है। इन पर चरित्रहीनता के भी लगातार आरोप लग रहे हैं। सच्चाई यह है कि अस्पताल के सीसीटीवी कैमरा बंद रहते हैं ताकि नाकामी व सच्चाई बाहर न जा सके। मेरी मांग है रस्तोगी को तत्काल हटाकर हवन कराया जाए। इसके बाद किसी अन्य को यहाँ की जिम्मेदारी दी जाए, निश्चित तौर में यहाँ से शव नहीं बल्कि मरीज स्वस्थ होकर घर लौटेगा।

शिव प्रताप सिंह सेंगर

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