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हाईकोर्ट के फैसले पर बरेलवी उलमाओं ने जताई हैरानी, कहा- सुप्रीम कोर्ट में जाएंगे

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने शुक्रवार को यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 को असांविधानिक करार दिया। कोर्ट ने कहा कि यह एक्ट धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करने वाला है। हाईकोर्ट के इस फैसले से विश्व विख्यात दरगाह आला हजरत बरेली से लगातार मदरसा संचालक एवं उलमा संपर्क कर रहे हैं। लोगों में बेचैनी का माहौल है।

उलमा-ए-इकराम ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले से हम आश्चर्यचकित हैं। मदरसा अधिनियम किसी मौलाना ने नहीं बल्कि सरकार ने बनाया है। उन्होंने कहा कि यह गलतफहमी है कि मदरसों में सिर्फ मजहबी शिक्षा दी जाती है, जबकि मदरसों में अंग्रेजी, विज्ञान, गणित और कंप्यूटर के साथ सभी विषय पढ़ाए जा रहे हैं, जिसका प्रमाण है कि यहां से पढ़कर निकले छात्र आईएएस, पीसीएस और प्रोफेसर भी बने हैं।

उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 13 एवं 30 के तहत अल्पसंख्यकों को यह हक मिलता है कि वह अपनी पसंद के शैक्षिक शिक्षण संस्थान खोलें। हाईकोर्ट के इस फैसले से मुस्लिम के अधिकारों का हनन होगा और उन्हें अपने अधिकारों से वंचित करने की कोशिश है। अनुच्छेद 29 में किसी भी वर्ग की अपनी अलग भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे इसे संरक्षित करने का अधिकार है। यह धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ-साथ भाषाई अल्पसंख्यकों दोनों को सुरक्षा प्रदान करता है।

फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में देंगे चुनौती
जमात रजा-ए-मुस्तफा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सलमान हसन खान (सलमान मियां) ने बताया कि मदरसा संचालक एवं उलमा-ए-इकराम में नाराजगी का माहौल है। इसको देखते हुए जल्द ही उलेमा ए इकराम एवं मदरसा संचालक से बैठक की जाएगी। इसके बाद इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया जाएगा। सलमान मियां ने बताया कि गुरुकुल संस्कृत पाठशाला जैसे धार्मिक संस्थाओं को भी सरकारी मदद मिलती है।

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