लखनऊ। गांधी जयन्ती की 151वीं वर्षगांठ पर गांधी भवन में एक वर्चुअल कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया गया। पद्मश्री रामबहादुर राय मुशायरा के मुख्य अतिथि थे। वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक हेमंत शर्मा विशिष्ट अतिथि रहे। ये जानकारियां गांधी जयन्ती समारोह ट्रस्ट के अध्यक्ष राजनाथ शर्मा ने दी। इस मुशायरा की एक दिलचस्प बात यह भी रही कि इसमें सभी शायर व कवि पूरे हिन्दुस्तान के विभिन्न प्रान्तों से हुए थे। जश्न-ए-उर्दू के अध्यक्ष सैयद फरहान वास्ती इस मुशायरे के संयोजक थे। गांधी जयन्ती समारोह (कार्यक्रम) के अध्यक्ष समाजसेवी मो. उमेर अहमद किदवई ने मुख्य अतिथि सहित आए हुए सम्मानित अतिथियों का स्वागत किया।
उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के चलते यह कार्यक्रम वर्चुअल कराया जा रहा है। मुशायरा शुरू होने से पहले मुख्य अतिथि पद्मश्री रामबहादुर राय ने कहा कि बाराबंकी का गांधी जयन्ती समारोह, देश का एक ऐसा समारोह है, जो परम्परागत तरीके से मनाया जाता है। यह कार्यक्रम जनता के सहयोग से जनता द्वारा आयोजित होता है।
वर्चुअल कवि सम्मेलन एवं मुशायरा में अपने अंदज़ में कलाम पेश करते हुए गीतकार व शायर डाॅ आलोक श्रीवास्तव ने फरमाया कि आया था रोशनी बनकर, एक प्रण की तरह से तनकर। वो हिन्द देश का वासी, जो था प्रथम प्रवासी, सिद्धान्त पे चलने वाला, वो समय बदलने वाला। मुद्ठी में सवेरा लेकर, सब रैन बसेरा लेकर। जंजीर गलाने आया, वो देश जगाने आया। वो सत्य अहिंसावादी, वो था महात्मा गांधी।
सम्मेलन की सदारत करते हुए डॉ. अंजुम बाराबंकवी ने अपना कलाम कुछ यूं कहा कि…
जब चमकने लगा किस्मत का सितारा मेरा, खुद ब खुद बनने लगे लोग सहारा मेरा।
आपको चांद सितारों के सलाम आएंगे, आप समझे तो किसी रोज़ इशारा मेरा।
कुछ नशा कम हो अमीरी का तो आकर देखो, कैसे होता है गरीबी में गुजारा मेरा।
शायर शाहिद अंजुम ने अपना कलाम पढ़ा कि…
अदालतों में कोई फैसला नहीं होगा, हमारी मौत भी गांधी के कत्ल जैसी है।
बस इतनी सी खुदाई चाहता हूं। भरत के जैसा भाई चाहता हूं।
मोहब्बतों में सुदामा के पांव धोते है, कृष्णा जैसे भी दोस्त होते है।
महाराष्ट्र के शायर नईम फराज़ ने कलाम पेश करते हुए पढ़ा कि…
दिलों के बीच दीवारें उठाकर क्या हुआ हासिल, तुम्हारी नफरतें हारी हमारा प्यार जिन्दा है।
चंडीगढ़ निवासी वरूण आनंद ने पढ़ा…
अपने बच्चों से पाल-पाल के दुख, हमने रखे तेरे सम्भाल के दुख।
आपके दुख तो आम ही दुख, मेरे दुख है सभी कमाल के दुख।
एक दिन की खुराक है मेरी, आपके हैं जो पूरे साल के दुख।
शायर असलम राशिद ने पढ़ा कि…
होता नहीं उदास किसी दुख से मैं कभी, इतने हसीन लोग मेरे आस पास है।
मुम्बई के शायर तनवीर ग़ाजी ने कलाम पेश करते हुए पढ़ा…
जब हवाओं में उड़ने के दिन आएंगे, हम तो है जो तारों को गिन आएंगे।
जो तेरे कत्थई बालों में सज नहीं पाया, वह सुर्ख फूल अभी तक मेरी किताब में है।
मध्यप्रदेश के शायर अहया भोजपुरी ने फरमाया कि…
हिज़रत करो तो रिश्तों ओ सामान छोड़कर, वरना न जाओ तुम कभी मैदान छोड़कर। यूं तो लड़ाई झगडे़ की आदत नहीं मुझे, फिर भी गलत किया था गिरेहबान छोड़ के।
कार्यक्रम में सैयद सरोश आसिफ, शादाब उल्फत, माधव नूर आदि ने अपने कलाम पेश किए। मुशायरे की निजामत आलोक श्रीवास्तव ने की। अन्त में इस मौके पर प्रमुख रूप से मो. उमेर अहमद किदवई, वरिष्ठ पत्रकार हसमत उल्ला, बृजेश दीक्षित, एस.एम साहिल, इकबाल अशरफ किदवई, कौशल किशोर त्रिपाठी, मृत्युंजय शर्मा, पाटेश्वरी प्रसाद, हुमायूं नईम खान, अतिकुर्रहमान, विनय कुमार सिंह, अनवर महबूब किदवई, धनंजय शर्मा, सत्यवान वर्मा सहित कई लोग मौजूद रहे।