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उत्तर प्रदेश की भोजपुरी कला बिहार में होगी प्रदर्शित

उत्तर प्रदेश की भोजपुरी कला बिहार में होगी प्रदर्शित

• उत्तर प्रदेश की लोक कलाकार कुमुद सिंह की दो और वंदना श्रीवास्तव की दो भोजपुरी कला का होगा प्रदर्शन। 

• कार्यक्रम में भाग लेंगे भूपेंद्र अस्थाना, कुमुद सिंह और वंदना श्रीवास्तव। 

• देश के 10 प्रदेशों से 35 लोककलाकारों की 60 कृतियां होंगी प्रदर्शित। 

Lucknow। उत्तर प्रदेश की भोजपुरी चित्रकला (Bhojpuri Painting) बिहार की राजधानी पटना में आयोजित लोकचित्रकलाओं की पहली राष्ट्रीय प्रदर्शनी में अपनी शोभा बिखेरेगी। लोक-परंपराओं का उत्सव शीर्षक के तहत फोकार्टोपीडिया फाउंडेशन, पटना द्वारा कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स में 18 से 20 अप्रैल तक आयोजित राष्ट्रीय प्रदर्शनी में दस राज्यों बिहार, यूपी, झारखंड, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा, आंध्रप्रदेश

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की करीब बीस लोककला विधाओं से लगभग 35 कलाकारों की 60 कलाकृतियां प्रदर्शित की जाएंगी। इस उत्सव में लखनऊ स्थित फैकल्टी ऑफ आर्किटेक्चर एंड प्लानिंग की डीन एवं प्रिंसिपल डॉ वंदना सहगल को बतौर गेस्ट ऑफ ऑनर आमंत्रित किया गया है। साथ ही फ़ोकार्टोपीडिया उत्तर प्रदेश के सदस्य लखनऊ से भूपेंद्र कुमार अस्थाना, चित्रकार कुमुद सिंह और वंदना श्रीवास्तव भी तीन दिवसीय इस कार्यक्रम में शामिल होंगी। भोजपुरी कला की ख्यातिलब्ध कलाकार कुमुद सिंह, मऊ से वंदना श्रीवास्तव की 2- 2 कलाकृतियां प्रदर्शनी में शामिल की गयी हैं।

भूपेंद्र अस्थाना ने बताया कि कुमुद सिंह वर्तमान में उत्तर प्रदेश लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान, लखनऊ की सदस्य हैं और पूर्व में साकेत पीजी कॉलेज, अयोध्या के ड्रॉइंग एवं पेंटिंग विभाग में बतौर विभागाध्यक्ष अपनी सेवाएं दे चुकी हैं। साथ ही दूसरी चित्रकार के रूप में भोजपुरी चित्रकार वंदना श्रीवास्तव को संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार की वरिष्ठ अध्येता वृत्ति (सीनियर फेलोशिप) प्रदान की गई है।

यह सम्मान उन्हें कला और संस्कृति के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान, कला व साहित्य के अंतर्संबंधों पर गहन दृष्टि और भोजपुरी संस्कृति को चित्रकला के माध्यम से व्यापक पहचान दिलाने के लिए प्रदान किया गया है। वंदना श्रीवास्तव ने अपनी कलाकृतियों में भोजपुरी समाज, उसकी परंपराओं, लोकजीवन और रंग-रूप को जीवंत रूप में उकेरा है। उनके चित्रों में भोजपुरी संस्कृति की गहराई और जीवन-दर्शन की झलक मिलती है।

उनके कार्यों ने न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भोजपुरी कला की पहचान स्थापित की है। वन्दना श्रीवास्तव की ससुराल उत्तर प्रदेश के मऊ ज़िले के रामपुर कान्धी, देवलास गाँव की रहने वाली हैं। उन्होंने राजस्थान से एमए की उपाधि प्राप्त की है। वे दिल्ली सरकार की साहित्य कला परिषद की सदस्य रही हैं।

फोकार्टोपीडिया के निदेशक सुनील कुमार ने लोकपरंपराओं के तीन दिनी उत्सव की रूपरेखा बताते हुए कहा कि इस उत्सव में न चित्र प्रदर्शनी का आयोजन किया जा रहा है कि बल्कि लोककलाओं के समक्ष मौजूदा समय की चुनौतियों पर गंभीर बहस-मुबाहिसों को भी अंजाम दिया जाएगा ताकि उनसे उबरने के उपायों पर गौर किया जा सके।

Bhojpuri art of Uttar Pradesh will be displayed in Bihar

साथ ही राष्ट्रीय प्रदर्शनी से कला प्रेमी समाज में लोककलाओं के प्रति जागरूकता भी बढ़े और यह जरूरी है कि हमारी युवा पीढ़ी विविध लोक-चित्र परंपराओं से साक्षात्कार करें ताकि एक बेहतर संवेदनशील और कला सजग समाज की दिशा में हम बढ़ पायें। उन्होंने कहा कि भोजपुरी चित्रकला उत्तर प्रदेश और बिहार दोनों ही राज्यों की थाती है। वर्तमान में वह दोनों ही राज्यों में लुप्तप्राय दिखती है। इस तरह की प्रदर्शनियों से भोजपुरी चित्रकला के प्रति भी लोगों में जागरूरकता बढ़ेगी।

राष्ट्रीय राष्ट्रीय प्रदर्शनी में जिन लोकचित्रकलाओं को सम्मिलित किया गया है, उनमें भोजपुरी चित्रकला के अलावा बिहार की गोदना, मंजूषा और मिथिला चित्रकला, मध्यप्रदेश की गोदना, गोंड और भील चित्रकला, झारखंड की कोवर-सोहराई और उरांव चित्रकला, महाराष्ट्र की वर्ली चित्रकला, राजस्थान की पिचवई और फड चित्रकला, कर्नाटक की चितारा चित्रकला और लुप्त होने की कगार पर खड़ी सुरपुर रेखा चित्रों को शामिल किया है। इनके अवाला प्रदर्शनी में नेपाल और सिंगापुर के कलाकारों की भी सहभागिता है।

Bhojpuri art of Uttar Pradesh will be displayed in Bihar

फोकार्टोपीडिया इस उत्सव में प्रदर्शनी के साथ-साथ ओसारा टॉक्स नाम से दो कलावार्ताओं और एक फोकार्टोपीडिया फोरम का आयोजन किया जाएगा, जिनमें विविध विषयों पर कलाकारों और कला समाज एक साथ मिलकर लोककलाओं की वर्तमान चुनौतियों से जुड़े विषयों पर अपनी-अपनी राय व्यक्त करेंगे।

गौरतलब है कि फोकार्टोपीडिया हिन्दी पट्टी मे लोककलाओं का डिजिटल आर्काइव बनाने की पहली निजी कोशिश है। वर्ष 2021 से वह लोककलाओं के संरक्षण, संवर्धन और उनके प्रचार प्रसार में सक्रिय है और हमारी सांस्कृतिक विरासतों की थाती संभालने वाले वरिष्ठ लोककलाकारों का ऑडियो-विजुअल माध्यम में दस्तावेजीकरण कर रही है ताकि वर्तमान के साथ-साथ भावी पीढ़ीयों के लिए उन्हें संरक्षित की जा सके।

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