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मधुमक्खी पालन से लाखों कमा रहे बिहार के युवा

कभी 10-15 बॉक्स के साथ शुरू किया गया मधुमक्खी पालन का धंधा आज 150 से 300 बॉक्स तक जा पहुंचा है, 9-10 लाख तक सालाना करते है कमाई दूसरे किसानों के लिए बने मिसाल।

बिधूना। बिधूना क्षेत्र के गांव रुरुकलां में आम के दो बागों में बिहार के कई युवा शहद उत्पादन के लिए डिब्बों में मधुमक्खी पालन कर रहे हैं, जिससे प्रतिदिन शहद का उत्पादन होता है शहद उत्पादन के लिए न कोई ज्यादा लागत खर्च होती है और न ही नुकसान का खतरा होता है शुद्ध शहद होने के कारण बेंचने में भी नही होती परेशानी ऐसे में इनको मार्केटिंग में भी परेशानी नहीं होती है।

बिहार के चकाकू के रहने वाले दिनेश राय ने बताया कि खेती के साथ-साथ उन्होंने मुर्गी पालन किया था, जिसमें अक्सर नुकसान हो जाता था। ऐसे में उन्होंने 2018 में पंद्रह डिब्बों से मधुमक्खी पालन की शुरुआत की। उन्हें इसमें फायदा दिखा तो कटरा माली के सुनील को पार्टनर बना कर डिब्बों संख्या बढ़ा कर 300 कर दी। दिनेश ने बताया कि इसकी लागत खर्च प्रति डिब्बा 1500 रुपए है ऐसे में उनके कुल 4.5 लाख रुपए खर्च हुए हैं।

सुनील का कहना है कि ये डिब्बे जल्द खराब भी नहीं होते हैं दिसम्बर जनवरी माह में शहद का पीक टाइम होता है। दिनेश ने बताया कि मौसम अच्छा रहता है तो 300 डिब्बों से 60-65 कुंतल शहद का उत्पादन जनवरी तक हो जाएगा, 150 रुपए किलो के हिसाब से शहद निकल गया तो 5 महीने में ही 9 लाख 75 हजार की का हो जायेगा ऐसे में लगभग 5 लाख की बचत हो जाती है। उन्होंने बताया कि इसी पांच महीने में उत्तर प्रदेश में सरसों फूल खिलते हैं, जिससे शहद का उत्पादन होता है।

मुजफ्फरपुर बिहार के दो सगे भाई अतुल कुमार व प्रकाश ने बताया कि उनके पास भी लगभग 300 बॉक्स है। उन्होंने बताया कि रसदार फूल के लिए सूरजमुखी सबसे उपयुक्त है, जिससे दोहरा लाभ मिलता है। शहद का उत्पादन भी बढ़ जाता है और तेल के लिए सूरजमुखी का भी उत्पादन हो जाता है। प्रकाश ने बताया कि इन पांच महीने के अलावा जब फूल नहीं रहता है, तो चीनी के सहारे मधुमक्खी को जीवित रखा जाता है।

अगर शहद का उत्पादन करना है तो इनका स्थान बदलकर इनको फूल वाली जगह में ले जाना पड़ता है। बिहार के राघवपुर निवासी अरूण कुमार ने बताया कि यहाँ की सरसों की फसल के बाद हम लोग मध्य प्रदेश या राजस्थान चले जाते है, जहाँ पर सरसों की फसल लेट होती है, उसके बाद हम लोग अपने घर चले जाते है वहाँ पर लीची की फसल से शहद तैयार होता है।

बिहार के ही कटरा माली के ही रहने वाले दीपक कुमार और बैजनाथ महतो भी रुरुकलां में शहद उत्पादन कर रहे हैं दोनो लोग 100-100 बॉक्स के साथ किस्मत आजमा रहे है, दीपक ने बताया कि किसान खेती के साथ-साथ उद्यान के माध्यम से गांव में ही रहकर बेहतर जीवन जी सकते हैं।

सरकार भी समय-समय पर विभिन्न योजनाएं लाती रहती है, जिससे खेती के साथ-साथ सह-रोजगार भी मिलता है। वही महतो ने बताया कि शहद उत्पादन के लिए हम लोग मौसम के हिसाब से डेरा डालते है। साल में कई बार शहद तैयार करते है। पहले लीची के समय बिहार में, फिर मक्का, मूंग और तरबूज के समय। बाजरा, बरसाती मक्का व सरसो के समय, उसके बाद जहां सरसों लेट होती है। जैसे मध्यप्रदेश और राजस्थान आदि में डेरा डालते हैं। उन्होंने कहा कि एक बॉक्स में 8-9 फ्रेम होते है जिनमे शहद तैयार होता है।

रिपोर्ट – संदीप राठौर चुनमुन

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