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सीएम सिद्धारमैया ने निजी कंपनियों में आरक्षण से जुड़ा पोस्ट हटाया, मामला बढ़ा तो बचाव में आए मंत्री

बंगलूरू:कर्नाटक में कन्नड़ों को निजी कंपनियों में आरक्षण देने वाले विधेयक पर लगातार विवाद बढ़ता जा रहा है। मामले को तूल पकड़ता देख मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने आरक्षण से जुड़ा अपना बयान सोशल मीडिया मंच एक्स से हटा दिया है। वहीं, उनके बचाव में राज्य के मंत्री उतर आए हैं।

सीएम ने क्या कहा था?
दरअसल, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने एक दिन पहले ही कहा था कि कर्नाटक मंत्रिमंडल ने राज्य के सभी निजी उद्योगों में ‘सी और डी’ श्रेणी के पदों के लिए 100 प्रतिशत कन्नडिगा (कन्नड़भाषी) लोगों की भर्ती अनिवार्य करने वाले विधेयक को मंजूरी दे दी है। उन्होंने कहा था कि राज्य सरकार की प्राथमिकता कन्नड़ लोगों के कल्याण की देखभाल करना है।

श्रम विभाग लाया विधेयक: प्रियांक खरगे
इस विधेयक का उद्योगपतियों से लेकर विपक्ष तक ने विरोध किया। इसके बाद मुख्यमंत्री ने बुधवार को अपना ट्वीट डिलीट कर दिया। अब बचाव में आए मंत्री प्रियांक खरगे ने कहा कि विधेयक श्रम विभाग द्वारा लाया गया है। उन्हें अभी उद्योग, उद्योग मंत्री और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग से सलाह-मशविरा करना है।

‘घबराने की जरूरत नहीं’
उन्होंने आगे कहा, ‘मुझे यकीन है कि विधेयक के नियमों के साथ आने से पहले, वे संबंधित मंत्रालयों के साथ उचित सलाह करेंगे और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि उद्योग के साथ व्यापक विचार-विमर्श होगा। इसलिए घबराने की जरूरत नहीं है। हम राज्य के लिए नौकरियों की रक्षा करने जा रहे हैं और साथ ही उनके परामर्श से उद्योगों में निवेश को प्रोत्साहित करेंगे।’

सभी भ्रम करेंगे दूर: पाटिल
वहीं, मंत्री एमबी पाटिल ने कहा, ‘मैंने देखा है कि कई लोगों को इस बारे में आशंका है। हम सभी भ्रम को दूर करेंगे। हम मुख्यमंत्री के साथ बैठेंगे और इसका समाधान करेंगे ताकि इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।’

स्थानीय लोगों में कौशल की कमी नहीं: श्रम मंत्री
कर्नाटक के श्रम मंत्री संतोष एस लाड ने सीएम सिद्धारमैया के ट्वीट पर सफाई दी। उन्होंने कहा, ‘निजी क्षेत्र में प्रबंधन की 50 प्रतिशत नौकरियां और गैर-प्रबंधन की 75 प्रतिशत नौकरियां स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित करने का फैसला लिया गया है। अगर ऐसे कौशल उपलब्ध नहीं होंगे तो लोगों को बाहर से लाया जा सकता है और उन्हें यहां काम दिया जा सकता है। हालांकि, अगर यहां के स्थानीय लोगों में कौशल है, तो सरकार इन्हें वरीयता देने के लिए एक कानून लाने की कोशिश कर रही है।’

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