कर्नाटक विधानसभा चुनाव का प्रचार पूरे चरम पर है। कांग्रेस, भाजपा और जनता दल (सेक्युलर) मतदाताओं का भरोसा जीतने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं। भाजपा के सामने अपनी सरकार बरकरार रखने की चुनौती है, लेकिन कांग्रेस के लिए यह चुनाव कई मामलों में अहम है। पार्टी हर हाल में अपनी जीत सुनिश्चित करना चाहती है।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए सिर्फ एक राज्य का चुनाव भर नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक से हैं। पार्टी को विधानसभा चुनाव से सियासी फायदा मिलने की उम्मीद है। कर्नाटक में चुनाव के दौरान दलित मतदाता काफी अहम भूमिका निभाता है, लेकिन पिछले कुछ मौकों पर वह कांग्रेस से छिटक गया।
कर्नाटक दक्षिण भारत का प्रवेश द्वार माना जाता है। कर्नाटक में सरकार बनने के बाद भाजपा ने दक्षिण के दूसरे राज्यों में अपना प्रसार किया। ऐसे में दक्षिण में भाजपा को रोकने के लिए कांग्रेस को कर्नाटक में जीत हासिल करनी होगी। वहीं, हार की स्थिति में पार्टी दक्षिण भारत में हाशिए पर चली जाएगी।
केरल में पहले ही लगातार दूसरी बार सीपीएम सरकार बनाकर इतिहास रच चुकी है। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में कांग्रेस के लिए कोई बड़ी संभावना फिलहाल बनती नही दिख रही। तमिलनाडु में पार्टी कई दशक पहले अपनी जमीन खो चुकी है।
राज्य में 19.5 फीसदी दलित मतदाता हैं और उनके लिए 36 सीट आरक्षित हैं, पर वह इससे ज्यादा सीटों पर असर रखते हैं। पिछले चुनाव में दलित मतदाताओं ने भाजपा पर भरोसा जताया। ऐसे में पार्टी को विश्वास है कि खड़गे के जरिए दलित मतदाता चुनाव में कांग्रेस पर भरोसा जताएंगे।