कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस का घोषणापत्र जारी हुआ, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा नीति यानी NEP को खत्म करने का वादा किया गया। अब जब राज्य में कांग्रेस की सरकार बन चुकी है, तो फिर शिक्षा जगत की ध्यान इस वादे की ओर चला गया है। जानकार इसे ‘बेवकूफी’ भरा फैसला बता रहे हैं। साथ ही NEP को खत्म करने के बजाए बीच का रास्ता खोजने की सलाह दे रहे हैं।
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खास बात है कि अगस्त 2021 में कर्नाटक पहला राज्य था, जहां राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की गई थी। नवंबर 2020 में ही प्रदेश की टास्क फोर्स की तरफ से सरकार को रिपोर्ट सौंपी जा चुकी थी। जबकि, जुलाई 2020 में केंद्र सरकार ने इस नीति की शुरुआत की थी।
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मैसूर यूनिवर्सिटी के कुलपति जी हेमंत कुमार का मानना है, ‘जरूरतों के हिसाब से NE का संशोधन करना अच्छा रास्ता है। लागू नीति को रद्द करने की सलाह नहीं दी जाती है।’ बैंगलोर यूनिवर्सिटी को कुलपति एमएस थिमप्पा ने कहा ‘कर्नाटक में NE को खत्म करने का प्रस्ताव बेवकूफी भरा है। NE सबसे साइंटिफिक पॉलिसी में से एक है और छात्रों के लिए कई फायदे हैं।’
रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस की घोषणापत्र समिति के उपाध्यक्ष केई राधाकृष्ण ने कहा, ‘संविधान में शिक्षा संविधान में शामिल सूची का हिस्सा है। केंद्र ने नई शिक्षा नीति को थोपा है। इसे बगैर किसी तैयारी के लागू किया गया है। राज्य सरकार ने लागू करने के लिए जानकारों के साथ चर्चा नहीं की गई थी। वहीं, शिक्षकों को ट्रेनिंग नहीं मिली है। ऐसे में हम इसे खत्म करेंगे और हमारा फैसला छात्रों पर असर नहीं डालेगा।’
उन्होंने कहा, ‘यह सच है कि कर्नाटक में NEP को ठीक तरह से लागू नहीं किया गया, लेकिन उसे खत्म कर देना उपाय नहीं है। इसके बजाए नई सरकार इसे ठीक तर से लागू करने की कोशिश कर सकती है।’