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कोरोना और भारत: तीसरी लहर के लिए कितना तैयार हैं हम, तीसरी लहर के सितंबर में आने की संभावना

दया शंकर चौधरी

मौजूदा समय में हम जिन विकट परिस्थितियों से गुजर रहे हैं, वह संभवतः सदी का सबसे क्रूरतम और भयावह काल है। चीन के वुहान नगर से निकले इस अदृश्य दुश्मन ने पूरी दुनिया को अपने आगोश में ले लिया है। इसके चपेट में न केवल कमजोर अर्थव्यवस्था वाले देश अपितु विकासशील और विकसित अर्थव्यवस्था वाले देश भी आए हैं। इस वायरस ने सारी दुनिया के अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ कर रख दी है, समूचा स्वास्थ्य तंत्र ध्वस्त हो चुका है। इस त्रासदी के बीच कई लोग खुद अपने स्वास्थ्य से जूझ रहे हैं, तो कई अपनों को जूझते हुए देख रहे हैं। एक बड़ी आबादी ने स्वजनों को खोया है। निराश, हताश और परेशान जनता के माथे की लकीरों पर उस समय बल पड़ने लगा जब उन्होंने तीसरी लहर की धड़कनें बढ़ा देने वाली खबर सुनी।

दूसरी लहर केे बीच तीसरी लहर की चुनौती

नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज के पूर्व निदेशक रहे और मौजूदा केंद्र सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. कृष्णास्वामी विजय राघवन ने आशंका व्यक्त की है कि भारत में भी कोरोना की तीसरी लहर आ सकती है और इसे टाला नहीं जा सकता है। इस लहर से बच्चे सर्वाधिक प्रभावित होंगे। उन्होंने कहा- हालांकि अभी ये कहना मुश्किल है कि ये कब आएगी और कैसे प्रभावित करेगी, लेकिन इसके लिए हमें तैयार रहना होगा। उन्होंने कहा है कि कोविड वैक्सीन मौजूदा वैरिएंट के खिलाफ कामयाब है। हालांकि भारत सहित दुनियाभर में इसके नए वैरिएंट सामने आएंगे। दुनियाभर के वैज्ञानिक इन अलग-अलग किस्म के वैरिएंट का मुकाबला करने की तैयारी कर रहे हैं।

कनाडा और यूरोपीय देशों में कोरोना के तीसरी लहर के प्रभाव को देखते हुए विशेषज्ञों ने अनुमान जताया है कि भारत में इसका प्रभाव सितंबर माह तक देखने को मिल सकता है। डबल म्यूटेंट वाले कोरोना वायरस के दूसरी लहर ने न केवल भारत अपितु पूरे विश्व में खासी तबाही मचाई हुई है। ऐसे में तीसरी लहर की आहट ने समूचे विश्व के शीर्ष स्वास्थ्य संगठनों, सरकारों, प्रशासनिक अमले के साथ ही आम जनमानस को भी गंभीर चिंता में डाल दिया है। पहली लहर सर्वाधिक बुजुर्गों के लिए घातक रही, दूसरी लहर युवाओं के लिए और तीसरी लहर बच्चों के लिए सर्वाधिक घातक रहने की आशंका है।

रोकी जा सकती है कोरोना की तीसरी लहर

हालांकि राहत देने वाली बात यह रही कि डॉ. विजय राघवन ने पुनः कहा कि तीसरी लहर को देश में कहीं भी आने से रोका जा सकता है। बशर्ते स्थानीय सरकारें, प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग कोविड-19 गाइडलाइंस का समुचित अनुपालन कराना सुनिश्चित करें। विजय राघवन ने कहा, ‘कोरोना की लहरों और उसके आंकड़ों की बजाय इस बात पर चर्चा करना चाहिए कि आखिर लोकेशन, टाइमिंग और इसका असर क्या है। यदि हम कदम उठाते हैं तो हर जगह पर कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर का असर नहीं दिखेगा। यह इस बात पर निर्भर करता है कि कोरोना संकट से निपटने के लिए राज्य स्तर पर, जिलों में और स्थानीय स्तर पर गाइडलाइंस का किस तरह से पालन किया जाता है।’ उन्होंने कहा कि कोरोना के ऐसे मामलों से आसानी से निपटा जा सकता है, जिनमें लक्षण देखने को नहीं मिल रहे हैं। उन्होंने कहा कि यदि टेस्टिंग, ट्रीटींग और कंटेनिंग के नियमों को फॉलो किया जाता है तो तीसरी लहर के असर को रोका जा सकता है।

तीसरी लहर के लिए कितना तैयार है भारत

अगर विश्व के परिप्रेक्ष्य में भारत को देखें तो भारत 135 करोड़ की आबादी के साथ विश्व का दूसरा सर्वाधिक जनसंख्या, सातवां सबसे बड़ा क्षेत्रफल, और पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला एक विकासशील देश है। आबादी के लिहाज से हेल्थकेयर सेक्टर में डिफेंस सेक्टर के बजाय तुलनात्मक रूप से समग्र बजट का कम हिस्सा ही खर्च किए जाने की परंपरा रही है। लेकिन कोरोना वायरस रूपी इस अदृश्य शत्रु ने मौजूदा सरकार को अपनी प्राथमिकताओं पर पुनर्विचार करने को विवश कर दिया है।

ऐसे में जब अमेरीका, जापान, इटली, जर्मनी समेत अन्य विकसित यूरोपीय देशों की स्वास्थ्य सेवाएं ध्वस्त हो गईं तो भारत की दशा चिंताजनक होनी ही थी। ग्लोबल हेल्थ सिक्योरिटी इंडेक्स प्रकोप को रोकने, पता लगाने, रिपोर्ट करने और इस पर अमल करने की अपनी क्षमता के आधार पर देशों की रैंकिंग करता है। इस संस्था ने भारत को 195 देशों में 57वां स्थान दिया है। भारत की हेल्थकेयर एक्सेस की रैंकिंग 149 रही और इन्फ्रास्ट्रक्चर पर्याप्तता 124 वें स्थान पर।

बहरहाल, पहली लहर से सकुुुुशल बाहर निकल रहेे भारत को टीकाकरण से राहत की उम्मीद थी, लेकिन जब तक वैक्सीनेशन होता तब तक दूसरी लहर ने पूरे देश को झकझोर दिया। चुनावों में व्यस्त सरकार के लिए इस बात का अंदाजा लगाना तक मुश्किल था कि दूसरी लहर ऐसी तबाही मचाएगी जबकि सरकार ने इसके इंतजाम ही नहीं किए। कुप्रबंधन, असफल प्रशासन, नौकरशाही का हावी होना, अस्पतालों और चिकित्सा व्यवस्था का लड़खड़ाता ढांचा, गांवों में बदइंतजामी ने सरकार की पोल खोल कर रख दी है। ऐसे में सवाल उठता है कि भारत तीसरी लहर के लिए कितना तैयार है?

दूसरी लहर में हाल बेहाल, चिकित्सा ढांचा खस्ताहाल

इधर दूसरी लहर में हालात भयावह हैं। देश की राजधानी में हजारों लोग ऑक्सीजन सिलेंडर के अभाव में भटकते रहे। श्मशानों में चिताओं को जलाने की जगह नहीं बची। अब जबकि हालात संभले हैं और सरकार चौकन्नी तो हुई है लेकिन गांवों में हालात खराब हो रहे हैं। संक्रमण का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है जबकि प्रतिदिन मरने वालों का आंकड़ा सरकते हुए 4500 से आगे निकल रहा है। हालात चिंताजनक हैं, ऐसे में कहा जा सकता है कि तीसरी लहर से निपट पाना सरकार के लिए आसान नहीं होगा।

इधर, लंबे समय से लगातार काम कर रहे कोरोना वॉरियर्स जैसे पैरामेडिकल स्टाफ, पुलिस-प्रशासन , सफाई कर्मचारी, सार्वजनिक वितरण प्रणाली में लगे हुए लोग बहुत थक चुके हैं, तथा बहुत ही तनाव में हैं। फिर भी राष्ट्र को बचाने के लिए इन्हें तीसरी लहर के रोकथाम हेतु पुनः कमर कसना ही होगा। इस निर्णायक युद्ध में सबका योगदान अविस्मरणीय व अतुलनीय रहेगा।

सरकार के अलावा जनता को भी खुद को जागरूक बनाकर, आत्मविश्वास से लबरेज होकर, संयम का परिचय देते, कोविड गाइडलाइंस एवं समय समय पर जारी दिशानिर्देशों का ईमानदारी से पालन करते हुए सरकारी तंत्र का सहयोग करना होगा। इस युद्ध में जनता को अपने घर में रहकर अपने बुजुर्गों, महिलाओं और बच्चों का ख्याल रखते हुए, ‘दो गज की दूरी, मास्क है जरूरी’ को आत्मसात् कर कोरोना के खिलाफ इस निर्णायक युद्ध में हर किसी को यथा सामर्थ्य सहयोग करना होगा।

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