लखनऊ। गौवंश की सुरक्षा, संरक्षा औ रसंवर्धन के लिए उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार की ओर से प्रति वर्ष करोड़ों रुपये का अनुदान गौशालाओं को दिया जा रहा है। बावजूद इसके तमाम गौशालाओं में उचित रखरखाव न होने के चलते निराश्रित गायें भूख और बीमारी के कारण दम तोड़ रहीं हैं। ये बात अलग है कि इन गौशालाओं की देखरेख के लिए बाकायदा उत्तर प्रदेश गौसेवा आयोग कार्यरत है।
गौ सेवा आयोग अध्यक्ष ने दिया जांच कराने का आश्वासन
उदाहरण के लिए कानपुर में किशनपुर कुलगांव की कान्हा गौशाला में समस्याओं का अम्बार है। करीब 25 एकड़ में फैली इस गौशाला की स्थापना डेढ़ वर्ष पूर्व की गई थी। नगर निगम कानपुर की देखरेख में संचालित इस गौशाला में करीब 3570 गौवंश और 650 के आसपास नंदी हैं। यहाँ के प्रभारी राजेंद्र मिश्र और मुनीम जी का कहना है कि रखरखाव के लिए यहाँ तीन शिफ्ट में मात्र 35 कर्मचारी कार्यरत हैं। जिनमें से सुबह 24, दोपहर 6, और शाम को 5 कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई जाती है। लेकिन वास्तविकता इसके बिलकुल विपरीत है। स्थलीय निरीक्षण के दौरान मात्र तीन-चार कर्मचारी देखने को मिले।
किशनपुर कुलगांव की कान्हा गौशाला में भ्रमण, निरीक्षण करने गये गौप्रेमी मनोज बाजपेयी ने बताया कि गौवंश के लिए छाया की उचित व्यवस्था न देखकर पूछने पर पता लगा की अभी 2 दिन पहले इस विषय में नगर निगम के अधिकारियों से बातचीत हुई है। जबकि सर्वविदित है कि गर्मी तीन महीने पहले से चल रही है और इस समय भीषण बरसात भी जारी है। इसके अलावा गौशाला में पेड़ों की संख्या भी पर्याप्त नहीं है। गौवंश को सर्दी, गर्मी, धूप बरसात और आँधी से बचाने के लिए पर्याप्त टीनशेड भी नहीं हैं। पूरी गौशाला में अनुमानतः 25 शेड ही होंगे, जिसमें दो या दो से अधिक गौवंश छाया ले सकते हैं। मनोज ने बताया कि 7 अगस्त को वे गौशाला गये थे, जहाँ बहुत छोटे गौवंश धूप में चिल चिल्ला रहे थे जिसमें एक गोवंश को बेहोशी की हालत में पाया गया फिर उनको छाया में शिफ्ट किया गया।
इसी तरह गौशाला में भूसे, चारे की अव्यवस्था भी देखने को मिली। चरही की गहराई इतनी अधिक प्रतीत हुई जिससे गाय को चारा खाते वक्त कठिनाई महसूस होती होगी। साथ ही चरही में भूसा की ही मात्रा दिखाई दीं। चरही की गहराई का अंदाजा ऐसे भी लगाया जा सकता है कि एक गाय जो कि बड़ी थी चरही के अंदर असहाय स्थिती में गिरी हुई दिखाई दी। आग्रह करने पर बहुत कोशिश के बाल घायला़स्था में गाय को बाहर निकाला गया। ऐसा लगता है कि गाय भूसे की चक्कर में चरही के अंदर गिर गई थी।
मनोज का कहना है कि गौशाला में लगभग 30-40 प्रतिशत गौवंश में जियोटैग नहीं मिला। पूछने पर पता लगा कि हर दूसरे से तीसरे दिन टैगिंग होती है। जो की मुझे असंतुष्ट कर रही थी, क्योंकि प्रतिदिन यदि 20 गायों को भी बाहर लाया जाता है तो 5 दिन में 100 गायों को छोड़कर सबको टैगिंग लगी होनी चाहिए थी। प्रभारी से इस विषय में ज्यादा पूछने पर बताया गया कि महापौर ने मना किया है टैग लगाने के लिए। गौशाला प्रभारी के पास महापौर का लिखित आदेश नहीं था। प्रभारी के पास गौशाला से सम्बन्धित कोई भी रिकार्ड नहीं मिला, इस संबंध में बताया गया कि यहाँ कोई भी रिकॉर्ड नहीं रखा जाता, सारा रिकॉर्ड मोतीझील नगर निगम के ऑफिस में रहता है हमारे पास कुछ नहीं रहता।
गौवंश के चारे की बाबत जानकारी दी गई कि चारा दिन भर में तीन बार दिया जाता है। लेकिन सच्चाई इसके विपरीत थी। गौशाला में करीब पांच से छः घंटे बिताने के दौरान किसी भी चरही में भूसा चारा देखने को नहीं मिला। इस बाबत बताया गया कि ठेकेदार के द्वारा प्रतिदिन 80 क्विंटल भूसा गौशाला में आता है।
मनोज के अनुसार इस गौशाला में सबसे ज्यादा चिंताजनक दृश्य यह देखने को मिला कि एक बोलेरो गाड़ी में करीब चार से पांच व्यक्ति बिना किसी जांच पड़ताल के गेट के अंदर गाड़ी ले जाते हैं और वो संदिग्ध अवस्था में पूरी गौशाला का भ्रमण करते हैं। पूछने पर उनकी पहचान छिपाई जाती है। या फिर एक ही व्यक्ति के बारे में तीन अलग अलग पहचान बताई जाती है। उनमें से एक शिवम् नाम के व्यक्ति ने कुछ भी बताने से इंकार कर दिया। मिश्रा जी नाम के गौशाला प्रभारी का कहना है कि वे शिवम् नाम के व्यक्ति के साथ आये अनवर को नहीं जानते हैं। मनोज का कहना है कि गौशाला में संदिग्ध गतिविधियों को देखकर वे चिंतित हैं। इस बाबत उत्तर प्रदेश गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष से उनकी फोन पर बातचीत हुई है। अध्यक्ष ने आश्वासन दिया है कि प्रशासनिक स्तर पर गौशाला की जांच कराई जाएगी और वहाँ की अनियमितताओं को दूर करने का प्रयास किया जाएगा।