औपनिवेशिक काल की तीन आपराधिक कानूनों की जगह पर नए कानूनों का लागू करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। इस याचिका में कहा गया है कि तीनों नए कानून अंग्रेजों के कानून को खत्म करने में कारगर नहीं हैं। ये कानून पुलिस शासन को बढ़ाने की ओर कदम हैं। वकीलल विशाल तिवारी ने य याचिका फाइल करते हुए तीनों नए कानूनों पर रोक लगाने की मांग की है। बता दें कि संसद के शीत सत्र में इन तीनों कानूनों को मंजरी दी गई है। इसके बाद 21 दिसंबर को इन कानूनों को लागू भी कर दिया गया।
इस याचिका में कहा गया कि बिना संसदीय बहस ही इन कानूनों को बना दिया गया। इसके अलावा याचिकाकर्ता का कहना है कि नए कानून में हिरासत की अवधि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है। इसके अलावा संपत्ति की कुर्की से सुरक्षा और इलेक्ट्रॉनिक सबूतों की स्वीकार्यता के लिए प्रावधान नहीं हैं।
तिवारी ने अपनी याचिका में कहा, ‘औपनिवेशिक काल में लोगों पर नियंत्रण करने के लिए कानून बनाए गए थे। इससे पुलिस को बहुत ज्यादा शक्तियां मिल जाती हैं। ऐसे में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक 2023 औपनिवेशिक काल की निशानी मिटाने में सफल नहीं है। पुलिस को इतनी शक्ति दे दी गई है जिससे आम नागरिकों के अधिकारों का हनन होगा।’ तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल फाइल की है।
बता दें कि तिवारी इससे पहले अडानी-हिंडनबर्ग केस और अतीक हमद की हत्या मामले में भी पीआईएल फाइल कर चुके हैं। उन्होंने कहा था कि इस मामले में शीर्ष न्यायालय को सुप्रीम कोर्ट के किसी जज की अध्यक्षता में कमेटी बनानी चाहिए। इस मामले में भी तिवारी ने मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट एक एक्सपर्ट कमेटी बनाए जो कि इन तीनों कानूनों की जांच करे। इसके अलावा याचिका में मांग की गई है कि एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट आने तक इन तीनों ही कानूनों पर रोक लगा दिया जाए।