संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) में कश्मीर मुद्दे को कम से कम चार बार उठाने के अपने प्रयासों के बाद भी पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी। लेकिन पाकिस्तान जेनेवा में अब भी नहीं मान रहा है और इस मुद्दे पर तत्काल बहस चाहता है। जेनेवा और न्यूयॉर्क में स्थित राजनयिकों का कहना है, 47 सदस्यीय यूएनएचआरसी में चीन को छोड़कर अन्य देशों ने कश्मीर पर बहस की मांग नहीं की है, जबकि यूरोपीय देशों ने इस मुद्दे पर चुप्पी बना रखी है। पाकिस्तान ने ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (ओआईसी) के कोऑर्डिनेकर के रूप में एक संयुक्त बयान जारी किया है। जिसमें दावा किया गया कि सभी 58 सदस्य इस्लामाबाद का समर्थन करते हैं और जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द करने पर नई दिल्ली के खिलाफ खड़े हैं। हालांकि इस संगठन के सदस्यों ने भारत को बताया कि निजी तौर पर उनका इस बयान से कोई लेना देना नहीं है।
उसने यूएनएचआरसी में जम्मू-कश्मीर की परिस्थिति पर संयुक्त बयान जमा कराया। हालांकि यह देश कौन हैं इसके बारे में उसने बताने से मना कर दिया है। यूएनएचआरसी में बयान देने के बाद पाकिस्तान के विदेश कार्यालय की वेबसाइट पर लिखा गया कि उसके जम्मू-कश्मीर वाले बयान को इन देशों का समर्थन हासिल है लेकिन उसने समर्थन करने वाले देशों की पहचान नहीं बताई है।
सूत्र ने कहा कि पाकिस्तान के बयान को ओआईसी के 57 सदस्यों और पाकिस्तान का सदाबहार दोस्त चीन का समर्थन प्राप्त है। हालांकि आईओसी के सदस्य देशों जैसे कि इंडोनेशिया ने भारतीय प्रतिनिधियों से बातचीत के दौरान खुद को इससे दूर रखा है।
एक अधिकारी ने कहा, ‘तथ्य यह है कि सूची को सार्वजनिक नहीं किया गया है, इसका मतलब है कि कुछ गड़बड़ है। बेशक पाकिस्तान का कहना है कि इन देशों ने निजी तौर पर उससे बात की है लेकिन उन देशों ने सार्वजनिक तौर पर इस मामले पर कुछ नहीं कहा है।’
भारत पाकिस्तान के उस कदम पर कड़ी नजर बनाए हुए है जिसमें वह यूएनएचआरसी में कश्मीर मुद्दे पर प्रस्ताव रखकर उसपर तुरंत बहस करने की कोशिश कर रहा है।
एक सूत्र ने कहा, ‘किसी मुद्दे पर प्रस्ताव पेश करने या तत्काल बहस के लिए यूएनएचआरसी सदस्यों की बहुमत की जरूरत होती है।’ यूएनएचआरसी में अफ्रीका, एशिया, यूरोप और लैटिन अमेरिका के 47 देशों के सदस्य हैं। भारतीय राजनयिकों ने कश्मीर मुद्दे पर देश की स्थिति के लिए समर्थन बढ़ाने के लिए व्यापक कार्य शुरू किया है। यूएनएचआरसी में केवल चीन और पाकिस्तान ने कश्मीर मुद्दे को अपने राष्ट्रीय बयानों में उठाया। जबकि किसी और देश ने इसका जिक्र तक नहीं किया।
अधिकारियों का कहना है कि पाकिस्तान के लिए जेनेवा में कश्मीर पर कोई प्रस्ताव लाने की कोशिश नाकाम ही रहेगी। हालांकि इस मामले पर बहस बिना किसी नतीजे के जरूर हो सकती है। वहीं 16 अगस्त को पाकिस्तान का साथ केवल ब्रिटेन और चीन ने दिया था। हो सकता है कि कुछ अरब देश उसके समर्थन में हों लेकिन उनमें से कुछ ही इस संगठन का हिस्सा हैं।
एक वरिष्ठ राजनयिक ने बताया, ‘अगर कश्मीर में कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन पर पाकिस्तान द्वारा दिए गए बयानों का यूएनएचआरसी सदस्यों का कोई समर्थन नहीं मिलता, तो पाकिस्तान के लिए इसपर बहस कराना बहुत मुश्किल हो जाएगा, जेनेवा में एक प्रस्ताव की बात तो बाद की है।’