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सार्वजनिक जीवन में उत्कृष्ट जीवन मूल्यों, सदाचरण, भ्रष्टासभा विरोध के लिए विख्यात धर्मेश दुबे अमर रहेंगें : गणेश ज्ञानार्थी

श्रृद्धांजलि सभा 15 जून बुधवार को उमेश वाटिका में

इटावा-औरैया के सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी, सदाचरण, सादगी, भ्रष्टाचार विरोध और क्रान्तिकारियों के सपनों का भारत बनाने की जिजीविषा जगाकर लगातार उत्प्रेरित करने वाले औरैया के पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष धर्मेश दुबे एडवोकेट की स्मृति में कृतज्ञ समाज की ओर से श्रृद्धांजलि सभा का आयोजन बुधवार (आज) 15 जून को दिबियापुर से फफूंद रोड पर उमेश वाटिका में दोपहर एक बजे से सायंकाल तक आयोजित होगा।

एक विज्ञप्ति के माध्यम से स्तम्भकार/स्वतंत्र पत्रकार गणेश ज्ञानार्थी ने यह जानकारी देते हुए बताया कि तेरहवीं के अवसर पर आयोजित उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर भावपूर्ण स्मरणांजलि प्रस्तुत करने के लिए इटावा-औरैया जनपदों के उनके सभी अनन्य सहयोगियों को सादर आमंत्रित कर बिना संकोच उपस्थित होने की अपील की गई है।

विज्ञप्ति के अनुसार विगत 03 जून को जिला मुख्यालय ककोर के गेट के पास मार्ग दुर्घटना में असामयिक रूप से काल-कलवित 75 वर्षीय धर्मेश जी की अन्तिम यात्रा सचमुच ऐतिहासिक थी। भीषण गर्मी में 6 किमी तक अन्तिम यात्रा में सैकड़ों गाड़ियाँ खाली चल रही थी और एसी से कभी बाहर न निकलने वाले सैकड़ों लोग स्वर्गीय के हजारों प्रियजनों के साथ पहली बार पैदल यमुना तट पर पहुंच रहे थे। कैसी अनौखी यात्रा थी?

ज्ञातव्य है कि स्व. धर्मेश दुबे के बाबा पं. छक्की लाल दुबे प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे जो औरैया नगर पालिका के संस्थापक अध्यक्ष थे। ग्राम भड़ारीपुर निवासी उनके पिता स्व. राम स्वरूप दुबे ने धर्मेश की जीत पर आयोजित फूलगंज मैदान की सभा में धर्मेश को सार्वजनिक जीवन की हिदायतें देकर जनता से कहा था कि अगर धर्मेश कुछ भी गलत करे तो बताना मैं उसे घर से निकाल दूँगा।

ज्ञानार्थी ने बताया कि उनकी चुनावी जनसभा में चन्द्रशेखर जी आये थे और उनका चुनाव बिना तामझाम के अंगौछा बिछाकर एकत्र हुये 1, 2, 5, 10, रुपए से लड़ा गया था। जिस किराये के घर में रहकर वे जीते थे। 34 वर्ष बाद भी उसी घर से उनकी अन्तिम यात्रा प्रारम्भ हुई। वे चाहते तो सुख और वैभव की जिन्दगी जी सकते थे। मगर उन्होंने परमार्थ के पथ पर अभावों में जीकर समाज/राष्ट्र सेवा की। भ्रष्टाचार मुक्त भारत उनका सपना था। यदि अन्याय आतंक और भ्रष्टाचार के सामने उन्होंने हार मान ली होती तो खफा मुलायम सिंह ने उन्हें जबरन पद से अपदस्थ न कराया होता। नियम विरुद्ध ढंग से हटाने वाले तत्कालीन डीएम एन.एन. प्रसाद ने जब हाथ जोड़कर अपनी लाचारी प्रकट की तो धर्मेश जी ने हाईकोर्ट में विचाराधीन प्रकरण की पैरवी में जाना भी बन्द कर दिया और जीवन भर कोई चुनाव दुबारा नहीं लड़ा।

अपने संक्षिप्त अधूरे कार्यकाल में औरैया प्रदर्शनी में स्वतंत्रता सेनानी सम्मेलन, कवि सम्मेलन, मुशायरा, पत्रकार सम्मेलन आदि आयोजनों का स्तर बढ़ाकर उनकी लोकप्रियता को शीर्ष पर पहुंचाने में सफल रहे धर्मेश जी पद से हटाये जाने के बाद भी प्रदर्शनी समेत तमाम आयोजनों में मुख्य अतिथि/अध्यक्षता करने के लिए आयोजकों की पहली पसंद बने रहे। बाद के अध्यक्षों ने उन्हें भरपूर सम्मान दिया और मार्गदर्शन भी प्राप्त किया। वे बार एसोसियेशन के अध्यक्ष, जनता पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष, जनता दल के राष्ट्रीय संयुक्त सचिव, औरैया जिला बचाओ आन्दोलन व सुभाष विचार मंच समेत तमाम संगठनों के संरक्षक रहे और तमाम जेल यात्रायें भी की।

कमांण्डर अर्जुन सिंह भदौरिया, सरला भदौरिया, बद्रीप्रसाद पालीवाल, सहदेव सिंह यादव, भारत सिंह चौहान, गोरेलाल शाक्य, बलराम सिंह यादव, गौरीशंकर, विशम्भर सिंह यादव, श्री शंकर तिवारी, लाल सिंह वर्मा, छक्कीलाल शंखवार, औसान सिंह यादव, जैसे पूर्व सांसदो/विधायकों से अत्यन्त निकटता के बावजूद उन पर सर्वाधिक प्रभाव मंत्री जी गजेन्द्र सिंह सेंगर पूर्व विधायक बिधूना का ही रहा। मुलायम सिंह यादव के निवास पर लखनऊ में अक्सर रह कर एल.एल.बी. करने के दौरान उनके विधान सभा में प्रश्न तैयार करने व पत्रों का जवाब देने में व्यस्त रहे, मगर मुलायम के सत्ता में आते ही अनैतिक लाभ अर्जित करने से दूर रहकर वे त्याग पथ पर चले। इसलिए अनीति अन्याय और अनाचार का समर्थन नहीं किया, पद से हटना स्वीकार कर लिया।

राष्ट्रीय राजनीति में डॉ. लोहिया, चौधरी चरण सिंह, चन्द्रशेखर, अटल जी, कल्याण सिंह, जार्ज फर्नाण्डीज, रामविलास पासवान, शरद यादव, रामप्रकाश गुप्ता, चमनलाल गुप्ता (जम्मू), वी0पी0 सिंह, वीर बहादुर सिंह जैसे दर्जनों राजनेता रहे जो धर्मेश जी को नाम, काम, सदाचरण और भ्रष्टाचार विरोधी राष्ट्र भक्ति के कारण जानते पहचानते थे और यथोचित आदर स्नेह देते थे। वे किसी पद पर नहीं थे, न आय का जरिया ही था। दलाली कभी की नहीं, रिश्वत कभी दी नहीं, मगर ता उम्र घर आने वाले के साथ जाकर उनका काम कराते रहे। लखनऊ दिल्ली में भी जाकर मदद करते रहे। अन्तिम दिन भी कलक्टर से किसी का काम कराकर लौटे थे जो जिन्दा घर नहीं लौट सके। पता नहीं कौन सा ईश्वर उनकी मदद करता था।
इन पंक्तियों के लेखक ने जे.पी. के सम्पूर्ण क्रांति आन्दोलन 1974 से पटना में धर्मेश जी का सानिध्य प्राप्त किया। साथ में सैकड़ों यात्रायें की। पचासों मंच साझा किये तो लगातार पाया कि गांधी लोहिया जयप्रकाश का नारा लगाते-लगाते वे स्वतंत्रता सेनानी कृष्णलाल जैन समेत तमाम सैनानियों साहित्यकारों, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, हर वर्ग के राजनैतिक कार्यकर्ताओं को पहली पसन्द थे और उनके हमदर्द मार्गदर्शक भी रहे। उन जैसी जिजीविषा वाला व्यक्तित्व जो मरते दम तक निःस्वार्थ भाव से लोगों के काम आये, शायद ही पुनः नजर आये। सार्वजनिक जीवन के अद्वितीय महारथी को महाप्रणाम। स्व. की उत्कृष्ट साधिका पत्नी श्रीमती सरोजनी दुबे, पुत्र ज्ञानेन्द्र, सोमेन्द्र व हेमेन्द्र एवं सौरभ पाठक एडवोकेट, सुरेश मिश्रा एडवोकेट व पावेन्द्र शर्मा (शुभम आईसक्रीम इटावा) आदि ने सभी से पधारने का आग्रह किया है।

रिपोर्ट-शिव प्रताप सिंह सेंगर

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