अपने पिता की सीट मैनपुरी में अखिलेश यादव ने अपनी पत्नी डिंपल यादव को उतार तो दिया है। इस तरह उन्होंने पिता की मुलायम की विरासत और सियासत दोनों पर एकाधिकार का संदेश दे दिया है।
भाजपा मैनपुरी को जीतने के लिए जिस शिद्दत से लगी है, उसके चलते डिंपल के लिए यह चुनाव कतई आसान नहीं दिखता है। मैनपुरी में आज तक न जीतने वाली भाजपा क्या यह रिकार्ड तोड़ पाएगी, इसका जवाब वक्त आने पर मिलेगा। पर इतना जरूर है कि #डिंपल के आने के बाद यह चुनाव रोचक जरूर हो गया है।
डिंपल #कन्नौज लोकसभा सीट तीन बार लड़ीं। एक बार निर्विरोध जीतीं। दूसरी बार 2014 के लोकसभा चुनाव में जीतीं। उस वक्त मुलायम सिंह यादव उनके पक्ष में प्रचार करने कन्नौज गए थे। अगले लोकसभा चुनाव में मुलायम कन्नौज नहीं जा पाए।
वह अपने मैनपुरी में ही व्यस्त हो गए। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा का चुनावी गठजोड़ था। कन्नौज में डिंपल को कामयाबी नहीं मिली। मुलायम व मायावती अपनी बरसों पुरानी दुश्मनी भुलाकर एक मंच पर आए थे और मुलायम मैनपुरी में भारी बहुमत से जीत गए। इस बार मैनपुरी के सियासी समीकरण बदले हुए हैं।
अखिलेश मैनपुरी में प्रचार के लिए तैयार सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने लोगों के बीच संकेत दिया है कि वह पिता की कर्मभूमि में होने वाले इस उपचुनाव में प्रचार के लिए जाएंगे। मुलायम यहां से पांच बार सांसद रहे थे। अखिलेश मैनपुरी में #मुलायम से जुड़े पुराने नेताओं से मिलेंगे, रैलियां भी करेंगे। डिंपल के प्रचार के लिए जया बच्चन भी आएंगी। पिछले दिनों अखिलेश रामपुर व आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में नहीं गए थे। भाजपा ने यह दोनों सीट जीत लीं। तब यह सवाल उठा था कि वह प्रचार के लिए क्यों नहीं गए।
शिवपाल के लिए अब मैनपुरी में कोई कदम उठाना सपा की संभावनाओं को प्रभावित कर सकता है। क्या वह अपने परिवार की बहू का समर्थन करेंगे या अखिलेश व डिंपल उनसे समर्थन मांगेगे। वहीं उन्नाव में बार कार्यकारिणी के कार्यक्रम में आए शिवपाल ने मैनपुरी उपचुनाव में डिम्पल यादव को सपा प्रत्याशी बनाए जाने पर जानकारी से इनकार किया। हालांकि फिर उन्होंने कहा कि अगले दो, चार दिनों में इस बारे में लखनऊ में कुछ बताएंगे।
मुलायम के निधन के बाद उनके समर्थकों की भावनाएं सपा के साथ तो दिखती हैं और विरासत की जंग में अखिलेश सबसे आगे भी हैं। अखिलेश ने डिंपल का उतार कर धर्मेंद्र यादव व तेज प्रताप यादव की होड़ को खत्म करने की कोशिश की है। अब यह दोनों डिंपल के प्रचार में जुटेंगे। साथ ही शिवपाल यादव के लिए भी धर्मसंकट पैदा कर दिया है कि क्या वह बहू के खिलाफ रुख अपनाएंगे।