लखनऊ। लखनऊ विश्वविद्यालय (Lucknow University) के दर्शनशास्त्र विभाग (Department of Philosophy) में चार दिवसीय विशेष व्याख्यान का आयोजन विभागाध्यक्षा डॉ रजनी श्रीवास्तव (Dr. Rajni Shrivastava) के संयोजकत्व में किया जा रहा है। विशेष व्याख्यान के अंतिम दिन दस फरवरी को दर्शनशास्त्र विभाग के प्रोफेसर ऑफ एमिनेंस प्रो राकेश चंद्रा (Prof. Rakesh Chandra) ने “Austin on Speech Acts” विषय पर चर्चा करते हुए कहा कि उन्होंने कहा कि भाषा में दिए गए कथनों का अर्थ परफोर्मेंस पर निर्भर करता है, लेकिन वे सत्य असत्य नहीं होते हैं।
प्रो राकेश चंद्रा ने यह भी स्पष्ट किया कि भाषा दर्शन में किस प्रकार से विश्लेषणात्मक विधि को लागू कर सकते हैं। वह ऑस्टिन के के द्वारा मनुष्य के व्यवहार के दो रूपों की भी चर्चा करते हैं, जिसमें प्रथम रूप भाषात्मक है और दूसरा नैतिक है। वह भाषा के तीन कार्यों की भी चर्चा करते हैं, जिसमें प्रथम उसका स्वरूप, द्वितीय उसका अर्थ एवं तीसरा उसके प्रयोग है। कथनों के अर्थ तीन चीजों से संबंधित है, फैटिक, फोटिंक, राहतिक। वो उदाहरण देते हैं रोको मत, जाने दो। और रोको, मत जाने दो, दोनों के अलग अलग जगह स्ट्रेस देने से उसके अर्थ बदल जाते हैं।
प्रो राकेश चंद्रा ने ऑस्टिन को उद्धृत करते हुए कहा कि ऑस्टिन कहते हैं कि लुकस्टनरी और उन लुक्टिनरी में दोनों में कार्य कर रहे है । इसके आधार दोनों फर्क जनरल और स्पेसिफिक का ही फर्क होगा। वे कथनों को विहारविटिव, एक्सरटिव, कमिटमेंटिव, बिहेवियरेटिव आदि में विभाजित करते है।
अंत में विभागाध्यक्षा डॉ रजनी श्रीवास्तव ने प्रो चंद्रा को धन्यवाद ज्ञापित किया। इस व्याख्यान में विभाग के प्रोफेसर डॉ प्रशांत शुक्ला, स्नातक, परास्नातक, शोध छात्र आदि उपस्थित रहे। अनुज मिश्रा (शोध छात्र) ने कार्यक्रम की रिपोर्ट तैयार की।