प्राचीन समय से ही भारत में एक से बढ़कर एक धनुर्धर हुए हैं. लेकिन हमारे देश में धनुष-बाण की शुरुआत कब और कैसे हुई? यह एक रहस्य ही है. विश्व के प्राचीनतम साहित्य संहिता और अरण्य ग्रंथों में इंद्र के वज्र और धनुष-बाण का वर्णन मिलता है. वहीँ हिन्दू धर्म के 4 उपवेदों में से चौथा उपवेद धनुर्वेद का ही है. एक अन्य साहित्य में भी कुल 12 तरह के शस्त्रों का वर्णन किया गया है जिसमें धनुष-बाण का स्थान सबसे ऊपर माना गया है. आइए जानते हैं कुछ दिव्य धनुष और बाणों के बारे में.
पिनाक धनुष: भगवान शंकर ने इसी धनुष के द्वारा ब्रह्मा से अमरत्व का वरदान पाने वाले त्रिपुरासुर राक्षस का संहार किया था. भगवान शंकर ने इसी धनुष के एक ही तीर से त्रिपुरासुर के तीनों नगरों को ध्वस्त कर दिया था. बाद में भगवान शंकर ने इस धनुष को देवराज इंद्र को सौंप दिया था. पिनाक नामक यह वही शिव धनुष था जिसे देवताओं ने राजा जनक के पूर्वजों को दिया था जो अंत में धरोहर के रूप में राजा जनक को प्राप्त हुआ था. इसी पिनाक नामक धनुष को भगवान राम ने प्रत्यंचा चढ़ाकर तोड़ दिया था.
कोदंड धनुष: कोदंड अर्थात ‘बांस’ का बना हुआ यह धनुष भगवान राम के पास था. ऐसी मान्यता है कि इस धनुष से छोड़ा गया बाण अपना लक्ष्य भेदकर ही वापस आता था.
शारंग धनुष: सींग का बना हुआ यह धनुष भगवान श्रीकृष्ण के पास था. ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण इसी धनुष के द्वारा लक्ष्मणा स्वयंवर की प्रतियोगिता जीतकर लक्ष्मणा से विवाह किया था.
गाण्डीव धनुष: यह धनुष अर्जुन के पास था. मान्यता है कि अर्जुन के गाण्डीव धनुष की टंकार से सारा युद्ध क्षेत्र गूंज जाता था. अर्जुन को यह धनुष अग्नि देवता से प्राप्त हुआ था और अग्नि देवता को यह धनुष वरुण देव से प्राप्त हुआ था.
विजय धनुष: यह धनुष कर्ण के पास था. ऐसा माना जाता है कि कर्ण को यह धनुष उनके गुरु परशुराम ने प्रदान किया था. इस धनुष की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि यह किसी भी तरह के अस्त्र-शस्त्र से खंडित नहीं हो सकता था.