लखनऊ। भारत जैसे विशाल देश में औसतन हर छह महीने में कहीं न कहीं चुनाव होते रहते हैं। लोकसभा चुनाव में डेढ़ से दो लाख करोड़ रुपये तक खर्च होने का अनुमान है। पंचायत, नगर निगम और विधानसभा से लेकर लोकसभा चुनाव तक में हर साल औसतन 70 हजार करोड़ रुपये खर्च होते हैं।
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चुनाव प्रबंधन से जुड़े नौ एक्सपर्ट के मुताबिक कंपनियों के बिजनेस के लिहाज से चुनाव का सालाना बाजार कम से कम 45 हजार करोड़ रुपये का है। यानी 70 हजार करोड़ की इस राशि में सबसे बड़ा हिस्सा चुनाव प्रचार का है।
एआई ने आसान कर दिया कनेक्शन
इस चुनाव में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल पहली बार हो रहा है। सामान्य सेवाओं के एवज में एआई की सेवाएं पांच गुना महंगी हैं, लेकिन इनकी पहुंच और मतदाता से कनेक्शन ज्यादा प्रभावी है। हर मतदाता के साथ व्यक्तिगत रूप से जुड़ने का सबसे सशक्त माध्यम एआई हो गया है। इनका इस्तेमाल तीन हिस्सों में सबसे ज्यादा हो रहा है।
वॉयस क्लोनिंग : नेता की आवाज क्लोन की जाती है। फिर मतदाता या जिससे भी संपर्क करना हो, उसका नाम लेकर नेताजी बात करते हैं। इसे पर्सनलाइज कन्वेसिंग कहते हैं। कॉल सेंटर से फोन का खर्च 30 पैसे प्रति मिनट आता है। एआई सेंटर से यह खर्च डेढ़ रुपये प्रति मिनट तक है।
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वीडियो क्लोनिंग : दक्षिण भारत में हाल ही में विधानसभा चुनावों में तीन भाषण इसी तकनीक से दिए गए। फिर इसे अन्य राज्य के नेताओं ने भी आजमाया। इसके लिए नेता के वीडियो और ऑडियो की क्लिपिंग लेकर एआई हावभाव का अध्ययन करता है। फिर नेता की एआई इमेज तैयार की जाती है। इस इमेज के जरिये मनचाहा भाषण दिया जा सकेगा। ये तकनीक सोशल मीडिया से प्रचार के लिए बेहद कारगर है। एक एआई इमेज का खर्च 5 लाख से एक करोड़ रुपये तक है।
कार्यकर्ताओं के लिए : अपने नेता के साथ अपनी फोटो लगाकर वायरल करने का कार्यकर्ताओं में क्रेज होता है। इससे वे पार्टी के साथ जुड़ाव महसूस करते हैं। नेता के साथ सेल्फी लेने से चुनावी प्रचार में ऊर्जा मिलती है। इसका रास्ता भी एआई ने निकाल दिया है। क्रिएटिव टूल के जरिये एक क्लिक पर दस से ज्यादा बैकग्राउंड तैयार हो जाते हैं। कार्यकर्ताओं में यह सबसे ज्यादा लोकप्रिय है और खर्च भी एक हजार रुपये महीना ही है।