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भारत में “जन्मोत्सव” से वंचित हैं सम्राट अशोक महान

सवाल “सम्राट अशोक” की जन्म-जयंती हमारे देश में क्यों नहीं मनाई जाती?

जिस सम्राट के नाम के साथ संसारभर के इतिहासकार महान शब्द लगाते हैं। जिस “सम्राट” का राज चिन्ह अशोक चक्र भारतीय अपने ध्वज में लगाते है। सम्राट का राजचिन्ह “चारमुखी शेर” को भारत का “राष्ट्रीय प्रतीक” माना जाता है और “सत्यमेव जयते” को भारतीय उद्घोष मान कर अपनाया गया है।

जिस देश में सेना का सबसे बड़ा युद्ध सम्मान, सम्राट अशोक के नाम पर, “अशोक चक्र” दिया जाता है। जिस सम्राट से पहले या बाद में कभी कोई ऐसा राजा या सम्राट नहीं हुआ”…जिसने “अखंड भारत” (आज का नेपाल, बांग्लादेश, पूरा भारत, पाकिस्तान, और अफगानिस्तान) जितने बड़े भूभाग पर एक-छत्र राज किया हो। सम्राट अशोक के ही, समय में “23 विश्वविद्यालयों” की स्थापना की गई। जिसमें तक्षशिला, नालन्दा, विक्रमशिला, कंधार, आदि विश्वविद्यालय प्रमुख थे। इन्हीं विश्वविद्यालयों में विदेशों से छात्र उच्च शिक्षा प्राप्त करने भारत आया करते थे। जिस “सम्राट” के शासन काल को विश्व के बुद्धिजीवी और इतिहासकार, भारतीय इतिहास का सबसे “स्वर्णिम काल” मानते हैं। जिस “सम्राट” के शासन काल में भारत “विश्व गुरू” था। “सोने की चिड़िया” था। जनता खुशहाल और भेदभाव-रहित थी। जिस सम्राट के शासन काल में, सबसे प्रख्यात महामार्ग “ग्रांड ट्रंक रोड” (जीटी रोड) जैसे कई हाईवे बने। 2000 किलोमीटर लंबी पूरी “सडक” पर दोनों ओर क्षायादार और फलदार पेड़ लगाये गए। पथिकों के लिए “सरायें” बनायीं गईं। मानव तो मानव..,पशुओं के लिए भी, प्रथम बार “चिकित्सा घर” (हॉस्पिटल) खोले गए। पशुओं का वध करना (मारना) पूरी तरह बंद करा दिया गया।

भारत में "जन्मोत्सव" से वंचित हैं सम्राट अशोक महान

ऐसे “महान सम्राट अशोक” जिनकी जयंती उनके अपने ही देश भारत में क्यों नहीं मनायी जाती ? न ही कोई छुट्टी घोषित की गई है? ये विडंबना ही है कि, जिन नागरिकों को ये जयंती मनानी चाहिए…वे अपने इतिहास को ही भुला बैठे हैं, और जो जानते भी हैं, वे ना जाने क्यों मनाना नहीं चाहते? सवाल उठता है कि “जो जीता वही सिकन्दर” कैसे हो गया? “जो जीता वही चंद्रगुप्त” क्यों नहीं, जबकि ये बात सभी जानते हैं, कि सिकन्दर की सेना ने चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रभाव को देखते हुए ही युद्ध करने से मना कर दिया था। बहुत ही बुरी तरह से उसका मनोबल टूट गया था और सिकंदर को “वापस लौटना” पड़ा था। आइए हम सब मिलकर इस “ऐतिहासिक भूल” को सुधार करने की शपथ लें, और ऐसे महान सम्राट की याद में कुछ ना कुछ अवश्य करें।

अशोक: अखंड भारत के प्रथम चक्रवर्ती सम्राट

अब समझते हैं कि सम्राट अशोक महान कैसे हुए। इतिहास में दर्ज है कि सम्राट अशोक (ईसा पूर्व 304 से ईसा पूर्व 232) विश्वप्रसिद्ध एवं शक्तिशाली भारतीय मौर्य राजवंश के महान सम्राट थे। अशोक, बौद्ध धर्म को मानने वाले सबसे प्रतापी राजा थे। सम्राट अशोक का पूरा नाम देवानांमप्रिय अशोक (राजा प्रियदर्शी देवताओं का प्रिय) था। उनका शासनकाल ईसा पूर्व 269 से, 232 प्राचीन भारत में था। मौर्य राजवंश के चक्रवर्ती सम्राट अशोक का मौर्य साम्राज्य उत्तर में हिन्दुकुश, तक्षशिला की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी, सुवर्णगिरी पहाड़ी के दक्षिण तथा मैसूर तक तथा पूर्व में बांग्लादेश, पाटलीपुत्र से पश्चिम में अफ़गानिस्तान, ईरान, बलूचिस्तान तक पहुँच गया था। सम्राट अशोक का साम्राज्य आज का सम्पूर्ण भारत, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, म्यान्मार के अधिकांश भूभाग पर था। यह विशाल साम्राज्य उस समय तक से आज तक का सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य रहा है।

भारत में "जन्मोत्सव" से वंचित हैं सम्राट अशोक महान

चक्रवर्ती सम्राट अशोक विश्व के सभी महान एवं शक्तिशाली सम्राटों एवं राजाओं की पंक्तियों में हमेशा शीर्ष स्थान पर ही रहे हैं। सम्राट अशोक ही भारत के सबसे शक्तिशाली एवं महान सम्राट हैं। सम्राट अशोक को ‘चक्रवर्ती सम्राट अशोक’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है – ‘सम्राटों के सम्राट’, और यह स्थान भारत में केवल सम्राट अशोक को ही मिला है। सम्राट अशोक को अपने विस्तृत साम्राज्य से बेहतर कुशल प्रशासन तथा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भी जाना जाता है। सम्राट अशोक को महानधर्माराजिका चक्रवात, सम्राट, राज्ञश्रेष्ठ, मगधराज, भूपतिं, मौर्यराजा, अशोक, धर्माशोक, अशोक्वाध्हन, अशोकवर्धन, प्रजापिता, धर्मनायक भी कहा जाता है।

चन्द्र कैलेंडर के अनुसार वैशाख माह की शुक्लाष्टमी ही सम्भवतः सम्राट अशोक का जन्मदिन है।

जानकारों का मानना है कि इतिहास की कोई भी पुस्तक, सम्राट अशोक के बिल्कुल सही जन्मतिथि के बारे में नहीं बताती। बहुत सारी किताबों में जिक्र है कि इनका जन्म 304 ईशा पूर्व और मृत्यु 232 ईशा पूर्व हुआ। अशोक ने 273 ईशा पूर्व से लेकर 232 ईशा पूर्व तक शासन किया। उन्हें अष्टमी के दिन से विशेष लगाव था। ऐसा इतिहास में संकेत मिलता है। उन्होने प्रत्येक पक्ष के अष्टमी को सभी तरह के जीवों का वध नहीं करने का आदेश जारी किया था। कई इतिहासकारों ने फाह्यान द्वारा उद्धृत वार्षिकोत्सव की तिथि को समझने में भूल की है। इसलिए आज के चन्द्र कैलेंडर की माह गणना प्रणाली के मद्देनजर वैशाख मान लिया गया है।

क्योंकि आज की तारीख में वैशाख ही हिन्दी कैलेंडर का दूसरा महीना है, मगर फाह्यान आज से 1600 साल पहले गुप्त काल में भारत आया था। इसलिए उन्होंने अपने यात्रा वृतांत में जिस यात्रा विवरण का जिक्र किया है वह चैत्र शुक्ल अष्टमी को मनाया जाने वाला अशोकाष्टमी है। इस तरह कहा जा सकता है कि शुक्लाष्टमी को मनाया जाने वाला वार्षिकोत्सव अशोकाष्टमी मूलत: अशोक सम्राट का जन्मदिन है। जिसमें पुराणकारों ने सावधानी पूर्वक सम्राट अशोक को हटाकर अशोक वृक्ष को जोड़ दिया है।

सम्राट अशोक: शासनावधि 269 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व,
राज्याभिषेक: 272 ईसा पूर्व पूर्ववर्ती बिंदुसार उत्तरवर्ती दशरथ मौर्य,
जन्म: 304 ईसा पूर्व पाटलिपुत्र (पटना),
निधन: 232 ईसा पूर्व पाटलिपुत्र, (पटना)
समाधि: पाटलिपुत्र।
जीवनसंगिनी: देवीकारुवाकी, पद्मावती, तिष्यरक्षिता,
संतान: महेन्द्र, संघमित्रा, तीवल, कुणाल, चारुमती
घराना: मौर्य राजवंश
पिता: बिन्दुसार,
माता: सुभद्रांगी (रानी धर्मा)

ऐसा माना जाता है कि सम्राट अशोक ने संपूर्ण एशिया में तथा आज के सभी महाद्विपों में भी बौद्ध पन्थ का प्रचार किया। सम्राट अशोक के सन्दर्भ के “स्तम्भ एवं शिलालेख आदि आज भी भारत के कई स्थानों पर दिखाई देते हैं। इसलिए सम्राट अशोक की ऐतिहासिक जानकारी, अन्य किसी भी सम्राट या राजा से बहूत व्यापक रूप में मिल जाती है। सम्राट अशोक प्रेम, सहिष्णुता, सत्य, अहिंसा एवं शाकाहारी जीवनप्रणाली के सच्चे समर्थक थे। इसलिए उनका नाम इतिहास में महान परोपकारी सम्राट के रूप में भी दर्ज हो चुका है।

भारत में "जन्मोत्सव" से वंचित हैं सम्राट अशोक महान

कलिंग युद्ध के दो वर्ष पहले ही सम्राट अशोक भगवान बुद्ध से प्रभावित होकर बौद्ध अनुयायी हो गये और उन्ही की स्मृति में उन्होने कई स्तम्भ खड़े कर दिये, जो आज भी नेपाल में, उनके जन्मस्थल, लुम्बिनी में, मायादेवी मन्दिर के पास, सारनाथ, बौद्ध मन्दिर बोधगया, कुशीनगर एवं आदी श्रीलंका, थाईलैण्ड, चीन आदि देशों में आज भी अशोक स्तम्भ के रूप में देखे जा सकते हैं। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार भारत के अलावा श्रीलंका,  अफ़गानिस्तान, पश्चिम एशिया, मिस्र तथा यूनान में भी करवाया। सम्राट अशोक अपने पूरे जीवनकाल में एक भी युद्ध नहीं हारे।

सम्राट अशोक के ही समय में  23  विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई। जिसमें तक्षशिला, नालन्दा, विक्रमशिला, कन्धार आदि विश्वविद्यालय प्रमुख थे। इन्हीं विश्वविद्यालयों में विदेश से कई छात्र शिक्षा पाने भारत आया करते थे। ये विश्वविद्यालय उस समय के उत्कृट विश्वविद्यालय थे। शिलालेख प्रारम्भ करने वाला पहला शासन बाद में आरम्भ हुआ था। अशोक ने सर्वप्रथम बौद्ध पन्थ का सिद्धान्त लागू किया जो आज भी कार्यरत है। सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र एवं पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए श्रीलंका भेजा था।

आरम्भिक जीवन

चक्रवर्ती सम्राट अशोक, पिता बिन्दुसार तथा माता रानी धर्मा के पुत्र थे। लंका की परम्परा में बिन्दुसार की सोलह पटरानियों और 101 पुत्रों का उल्लेख है। पुत्रों में केवल तीन के नामोल्लेख हैं, वे हैं-सुसीम, जो सबसे बड़ा था, अशोक और तिष्य। तिष्य अशोक का सहोदर भाई और सबसे छोटा था। कहा जाता है कि एक दिन धर्मा को स्वप्न आया कि उसका बेटा एक बहुत बड़ा सम्राट बनेगा। उसके बाद उसे राजा बिन्दुसार ने अपनी रानी बना लिया। चूँकि धर्मा क्षत्रिय कुल से नहीं थी, अतः उसको कोई विशेष स्थान राजकुल में प्राप्त नहीं था।

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अशोक के कई (सौतेले) भाई -बहनें थे। बचपन में उनमें कड़ी प्रतिस्पर्धा रहती थी। अशोक के बारे में कहा जाता है कि वे बचपन से सैन्य गतिविधियों में प्रवीण थे। दो हज़ार वर्षों के पश्चात्, सम्राट अशोक का प्रभाव एशिया मुख्यतः भारतीय उपमहाद्वीप में देखा जा सकता है। अशोक काल में उकेरा गया प्रतीतात्मक चिह्न, जिसे हम ‘अशोक चिह्न’ के नाम से भी जानते हैं, आज भारत का राष्ट्रीय चिह्न है। बौद्ध पन्थ के इतिहास में गौतम बुद्ध के पश्चात् सम्राट अशोक का ही स्थान आता है।

साम्राज्य-विस्तार: कलिंग की लड़ाई

चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने अपने राज्याभिषेक के 8वें वर्ष (261 ई. पू.) में कलिंग पर आक्रमण किया था। आन्तरिक अशान्ति से निपटने के बाद 269 ईपू. में उनका विधिवत्‌ राज्याभिषेक हुआ। तेरहवें शिलालेख के अनुसार कलिंग युद्ध में 1 लाख 50 सहस्र व्यक्‍ति बन्दी बनाकर निर्वासित कर दिए गये, 1 लाख लोगों की हत्या कर दी गयी। 1.5 लाख लोग घायल हुए, सम्राट अशोक ने भारी नरसंहार को अपनी आँखों से देखा और दुखी हो गये। उन्होंने बौद्ध भिक्षुक उपगुपत से उपाय पूछा। इससे द्रवित होकर सम्राट अशोक ने शान्ति, सामाजिक प्रगति तथा धार्मिक प्रचार किया।

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ऐसा कहा जाता है कि कलिंग युद्ध ने सम्राट अशोक के हृदय में महान परिवर्तन कर दिया था। उनका हृदय मानवता के प्रति दया और करुणा से उद्वेलित हो गया। उन्होंने युद्धक्रियाओं को सदा के लिए बन्द कर देने की प्रतिज्ञा की। यहाँ से आध्यात्मिक और धम्मविजय का युग आरम्भ हुआ। उन्होंने महान बौद्ध धर्म को अपना धर्म स्वीकार किया। सिंहली अनुश्रुतियों दीपवंश एवं महावंश के अनुसार सम्राट अशोक को अपने शासन के चौदहवें वर्ष में निगोथ नामक भिक्षु द्वारा बौद्ध धर्म की दीक्षा दी गई थी। तत्पश्‍चात्‌ मोगाली पुत्र निस्स के प्रभाव से वे पूर्णतः बौद्ध हो गये थे। दिव्यादान के अनुसार सम्राट अशोक को बौद्ध धर्म में दीक्षित करने का श्रेय उपगुप्त नामक बौद्ध भिक्षु को जाता है। सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल के दसवें वर्ष में सर्वप्रथम बोधगया की यात्रा की थी। तदुपरान्त अपने राज्याभिषेक के बीसवें वर्ष में लुम्बिनी की यात्रा की थी तथा लुम्बिनी ग्राम को करमुक्‍त घोषित कर दिया था।

बौद्ध धर्म

कलिंग युद्ध में हुई क्षति तथा नरसंहार से उनका मन युद्ध से उब गया और वह अपने कृत्य को लेकर व्यथित हो उठे। इसी शोक से उबरने के लिए वह बुद्ध के उपदेशों के करीब आते गये और अंत में उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। बौद्ध धर्म स्वीकारने के बाद उन्होंने उसे अपने जीवन में उतारने का प्रयास भी किया। उन्होंने शिकार तथा पशु-हत्या करना छोड़ दिया। उन्होंने सभी सम्प्रदायों के सन्यासियों को खुलकर दान देना भी आरंभ किया। और जनकल्याण के लिए उन्होंने चिकित्सालय, पाठशाला तथा सड़कों आदि का निर्माण करवाया।

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उन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए धर्मप्रचारकों को नेपाल, श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया, मिस्र तथा यूनान भी भेजा। इसी कार्य के लिए उन्होंने अपने पुत्र एवं पुत्री को भी यात्राओं पर भेजा था। अशोक के धर्म प्रचारकों में सबसे अधिक सफलता उनके पुत्र महेन्द्र को मिली। महेन्द्र ने श्रीलंका के राजा तिस्स को बौद्ध धर्म में दीक्षित किया, और तिस्स ने बौद्ध धर्म को अपना राजधर्म बना लिया और अशोक से प्रेरित होकर उसने स्वयं को ‘देवनामप्रिय’ की उपाधि दी।

अशोक के शासनकाल में ही पाटलिपुत्र में तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता मोगाली पुत्र तिष्या ने की थी। यहीं अभिधम्मपिटक की रचना भी हुई और बौद्ध भिक्षु विभिन्‍न देशों में भेजे गये जिनमें अशोक के पुत्र महेन्द्र एवं पुत्री संघमित्रा भी सम्मिलित थे, जिन्हें श्रीलंका भेजा गया। अशोक ने बौद्ध धर्म को अपना लिया और साम्राज्य के सभी साधनों को जनता के कल्याण हेतु लगा दिया। अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए जो साधन अपनाये, वे इस प्रकार हैं।

धर्मयात्राओं का प्रारम्भ।
राजकीय पदाधिकारियों की नियुक्‍ति।
धर्म महापात्रों की नियुक्‍ति।
दिव्य रूपों का प्रदर्शन।
धर्म श्रावण एवं धर्मोपदेश की व्यवस्था
लोकाचारिता के कार्य।
धर्मलिपियों का खुदवाना।
विदेशों में धर्म प्रचार को प्रचारक भेजना आदि।

अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार का प्रारम्भ धर्मयात्राओं से किया। वह राज्याभिषेक के 10 वें वर्ष बोधगया की यात्रा पर गये। कलिंग युद्ध के बाद आमोद-प्रमोद की यात्राओं पर पाबन्दी लगा दी। अपने अभिषेक के 20 वें वर्ष में लुम्बिनी ग्राम की यात्रा की। नेपाल तराई में स्थित निगलीवा में उसने कनकमुनि के स्तूप की मरम्मत करवाई। बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने साम्राज्य के उच्च पदाधिकारियों को नियुक्‍त किया। स्तम्भ लेख तीन और सात के अनुसार उसने व्युष्ट, रज्जुक, प्रादेशिक तथा युक्‍त नामक पदाधिकारियों को जनता के बीच जाकर धर्म प्रचार करने और उपदेश देने का आदेश दिया।

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अभिषेक के 13 वें वर्ष के बाद उसने बौद्ध धर्म प्रचार हेतु पदाधिकारियों का एक नया वर्ग बनाया, जिसे ‘धर्म महापात्र’ कहा गया था। इसका कार्य विभिन्‍न धार्मिक सम्प्रदायों के बीच द्वेषभाव को मिटाकर धर्म की एकता स्थापित करना था। विद्वानों ने अशोक की तुलना विश्‍व इतिहास की विभूतियाँ कांस्टेटाइन, ऐटोनियस, सेन्टपॉल, नेपोलियन सीजर के साथ की है।अशोक अहिंसा, शान्ति तथा लोक कल्याणकारी नीतियों के विश्‍वविख्यात तथा अतुलनीय सम्राट हैं। एचजी वेल्स के अनुसार अशोक का चरित्र “इतिहास के स्तम्भों को भरने वाले राजाओं, सम्राटों, धर्माधिकारियों, सन्त-महात्माओं आदि के बीच प्रकाशमान है और आकाश में प्रायः एकाकी तारा की तरह चमकता है।”

अशोक के शिलालेख

सम्राट अशोक द्वारा प्रवर्तित कुल 33 अभिलेख प्राप्त हुए हैं, जिन्हें अशोक ने स्तंभों, चट्टानों और गुफाओं की दीवारों में अपने 269 ईसापूर्व से 231 ईसापूर्व चलने वाले शासनकाल में खुदवाए।

येआधुनिक बंगलादेश, भारत, अफ़्ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और नेपाल में जगह-जगह पर मिलते हैं और बौद्ध धर्म के अस्तित्व के सबसे प्राचीन प्रमाणों में से हैं। इन शिलालेखों के अनुसार अशोक के बौद्ध धर्म फैलाने के प्रयास भूमध्य सागर के क्षेत्र तक सक्रिय थे और सम्राट मिस्र और यूनान तक की राजनैतिक परिस्थितियों से भलीभाँति परिचित थे। इनमें बौद्ध धर्म की बारीकियों पर ज़ोर कम और मनुष्यों को आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा अधिक मिलती हैं। पूर्वी क्षेत्रों में यह आदेश प्राचीन मगधी भाषा में, पाली भाषा के प्रयोग से लिखे गए थे। पश्चिमी क्षेत्रों के शिलालेखों में भाषा संस्कृत से मिलती-जुलती है और खरोष्ठी लिपि का प्रयोग किया गया। एक शिलालेख में यूनानी भाषा प्रयोग की गई है, जबकि एक अन्य में यूनानी और अरामाई भाषा में द्विभाषीय आदेश दर्ज है। इन शिलालेखों में सम्राट अपने आप को “प्रियदर्शी” (प्राकृत में “पियदस्सी”) और देवानाम्प्रिय (यानि देवों को प्रिय, प्राकृत में “देवानम्पिय”) की उपाधि से बुलाते हैं।

भारत में "जन्मोत्सव" से वंचित हैं सम्राट अशोक महान

देहावसान- अशोक ने लगभग 36 वर्षों तक शासन किया जिसके बाद लगभग 232 ईसापूर्व में उनकी मृत्यु हुई। उनके कई संतान तथा पत्नियां थीं पर उनके बारे में अधिक पता नहीं है। उसके पुत्र महेन्द्र तथा पुत्री संघमित्रा ने बौद्ध धर्म के प्रचार में योगदान दिया। अशोक की मृत्यु के बाद मौर्य राजवंश लगभग 50 वर्षों तक चला।

मगध तथा भारतीय उपमहाद्वीप में कई जगहों पर उसके अवशेष मिले हैं। पटना (पाटलिपुत्र) के पास कुम्हरार में अशोककालीन अवशेष मिले हैं। लुम्बिनी में भी अशोक स्तंभ देखा जा सकता है। कर्नाटक के कई स्थानों पर उसके धर्मोपदेशों के शिलोत्कीर्ण अभिलेख मिले हैं।

जैन, बौद्ध तथा हिन्दू ग्रन्थों में अशोक के उत्तराधिकारियों के शासन के बारे में परस्पर विरोधी विचार पाये जाते हैं। पुराणों में अशोक के बाद 9 या 10 शासकों की चर्चा है, जबकि दिव्यादान के अनुसार 6 शासकों ने अशोक के बाद शासन किया। अशोक की मृत्यु के बाद मौर्य साम्राज्य पश्‍चिमी और पूर्वी भाग में बँट गया। पश्‍चिमी भाग पर कुणाल शासन करता था, जबकि पूर्वी भाग पर सम्प्रति का शासन था। लेकिन 180 ईपू. तक पश्‍चिमी भाग पर बैक्ट्रिया यूनानी का पूर्ण अधिकार हो गया था। पूर्वी भाग पर वृहद्रथ का राज्य था। वह मौर्य वंश का अन्तिम शासक है। सम्राट अशोक अपने समय के महान सम्राट थे।

भारत में “जन्मोत्सव” से वंचित हैं सम्राट अशोक महान

महान योद्धा थे फिर भी अहिंसा का संदेश

अशोक एक महान योद्धा थे लेकिन अहिंसा के मार्ग पर चलने का संदेश दिया। उनकी उपलब्धि बेमिसाल है। उन्होंने अखंड भारत पर एकक्षत्र राज किया। भारत का राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ और सर्वोच्च वीरता पुरस्कार अशोक चक्र उनकी महानता का परिचायक है। सम्राट अशोक अखण्ड भारत की महान विभूति थे। अब समय आ गया है कि देश के विकास के लिए उनके बताये रास्ते पर चलते हुए युद्ध का रास्ता छोड़ बुद्ध के रास्ते को अपना लिया जाए।

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