फिल्टर कॉफी से टाइप-2 डायबीटिज का खतरा कम होने कि सम्भावना है. एक हालिया शोध में यह खुलासा किया गया है. शोधकर्ताओं के अनुसार जिस पेपर के माध्यम से कॉफी को छाना जाता है उनमें कुछ ऐसे अणु होते हैं जो रक्त शर्करा के स्तर को प्रभावित कर सकते हैं.
शोधकर्ताओं ने फिल्टर कॉफी व उबली हुई कॉफी के बीच तुलना की. उबली हुई कॉफी में कॉफी के बींस को सीधे पानी में डालकर उबाल दिया जाता है. शोध में इंस्टेंट कॉफी पर अध्ययन नहीं किया गया. शोध कई प्रतिभागियों की सात वर्षों तक निगरानी की गई.
रक्त शर्करा बढ़ने का जोखिम कम होता है : शोध में पाया गया कि जिन प्रतिभागियों ने दिन में तीन बार फिल्टर कॉफी का सेवन किया उनमें उबली हुई कॉफी पीने वालों की तुलना में टाइप-2 डायबीटिज होने की संभावना 60 प्रतिशत तक कम थी. शोधकर्ता रिकार्ड लैंडबर्ग ने कहा, फिल्टर कॉफी के सेवन से मधुमेह होने का जोखिम कम होता है. लेकिन, प्रोफेसर लैंडबर्ग ने बोला कि उबली हुई कॉफी से ऐसा असर नहीं होता व न ही एक्सप्रेसो कॉफी से ऐसा देखने को मिला है.
कैसे बनाइ जाती है फिल्टर कॉफी : फिल्टर कॉफी बनाने के दौरान कॉफी बींस को एक फिल्टर में रखा जाता है व पानी को उसके ऊपर डाला जाता है. पानी कप में गिरता है. वहीं, उबली हुई कॉफी में पीसी हुई कॉफी बींस को सीधे पानी में डाल दिया जाता है.
ऐसे किया गया शोध : स्वीडन की चाल्मर्स यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी व उमिया यूनिवर्सिटी ने 842 लोगों पर यह शोध किया. स्वीडन में लोग सबसे ज्यादा फिल्टर कॉफी का सेवन करते हैं. यहां सिर्फ सात प्रतिशत लोगों को ही मधुमेह है. शोध में भाग लेने वाले प्रतिभागियों में से आधे लोगों को ही मधुमेह हुआ. यह शोध जर्नल ऑफ इंटरनल मेडिसिन में प्रकाशित हुआ है.