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ब्रिटिश हुकूमत द्वारा जन्मजात अपराधी घोषित जातियों एवं जनजातियों को जन्मजात स्वतंत्रता सेनानी घोषित करे सरकार – भारत जागृति अभियान

विविधताओं से भरे भारतीय समाज में शोषण का तरीका भी विविध एवं वीभत्स था। ब्रिटिश हुकूमत ने समाज के कई तबकों को इंडियन क्रिमिनल कॉस्ट एन्ड ट्राइव बाई बर्थ एक्ट 1871 / 1887 / 1911 / 1930 के तहत जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया था। ये जातियां एवं जनजातियां थी। आश्चर्य है कि आजादी के बाद भी सरकारों का ध्यान इस ओर नहीं गया। आजाद भारत में भी समाज का ये बड़ा तबका जन्मजात अपराधी के रूप में दर्ज़ है और आज भी उनके साथ जन्मजात अपराधियों जैसा व्यवहार हो रहा है।

उल्लेखनीय है कि भारत में आदिकाल से रहने वाले कुछ सामाजिक तबके ( जनजातियां एवं जातियाँ ) अत्यंत स्वाभिमानी और विभिन्न कलाओं में दक्ष थे। इस सामाजिक तबके के लोगों ने विदेशी आक्रांताओं की दासता को कभी भी स्वीकार नहीं किया और हमेशा उनका प्रतिरोध करते रहे। ब्रिटिश हुकूमत के दौर में इन जनजाति एवं जाति के लोगों ने उल्लेखनीय प्रतिरोध किया। इनके प्रतिरोध के जज्बे से डरी हुकूमत ने इंडियन क्रिमिनल कॉस्ट एन्ड ट्राइव बाई बर्थ एक्ट 1871 / 1887 / 1911 / 1930 के तहत इन्हे जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया। आजादी के बाद 1952 में भारत सरकार ने इसमें संशोधन किया था, लेकिन व्यवहार में इस तबके के लोगों के साथ आज भी जन्मजात अपराधियों जैसा ही वर्ताव किया जाता है और ये तबका आज भी अपने सम्मान एवं स्वाभिमान की लड़ाई लड़ रहा है।

गौर करने वाली बात है कि ब्रिटिश हुकूमत अपने खिलाफ आवाज उठाने वाले हर देशभक्त को अपराधी घोषित कर देती थी और उनके साथ वैसा ही व्यवहार करती थी। चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह भी इसी कोटि में आते हैं। इससे पहले प्रथम स्वतंत्रता संग्राम ( 1857 ) के सेनानियों को भी विदेशी हुकूमत ने अपराधी घोषित किया था। 1942 के भारत छोडो आंदोलन के दौरान भी ब्रिटिश हुकूमत का यही रवैया था। आजादी मिलने के बाद स्वतंत्र भारत की सरकार ने विदेशी दासता के खिलाफ संघर्ष करने वाले देशभक्तों को स्वतंत्रता सेनानी घोषित कर उन्हें सम्मान एवं पेंशन आदि सुविधायें प्रदान की, लेकिन विदेशी दासता के खिलाफ अनवरत संघर्ष करने वाले समाज के एक बड़े तबके, जिसमे लगभग 150 जातियां एवं जनजातियां हैं, ( जिन्हे जन्मजात अपराधी घोषित किया गया था ) उपेक्षित ही रह गयी।

हालांकि भारत सरकार ने कई अहम कानून बनाकर इनके सम्मान एवं विकास के कई उपबंध किये। लोकसभा एवं विधानसभा में इनके लिए सीटें आरक्षित की गयी। सरकारी नौकरियों में भी इन्हे विशेष अवसर प्रदान किये जा रहे हैं। लेकिन इन तमाम सुविधाओं के बावजूद जन्मजात अपराधी के दाग से इन्हें छुटकारा नहीं मिल सका है। इस तरह आजादी के सात दशक बाद भी इस तबके के करोड़ों लोग न्याय मिलने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

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क़ानूनी रूप से अभिशप्त इन जातियों एवं जनजातियों के लोग विभिन्न हस्तकलाओं में दक्ष, औषधियों के ज्ञाता एवं शारीरिक व मानशिक सोष्ठव से परिपूर्ण एवं परंपरागत युद्ध कला के खेलों के माध्यम से सतत अभ्यासी हैं। प्राचीन भारत में जिन ग्राम गणराज्यों का बखान किया जाता है, उसके करता-धरता भी यही लोग थे। आज भी वन औषधियों की पूर्ण जानकारी आदिवासी समाज के लोगों को ही है और ये लोग वन को वन देवता एवं वन देवियों के रूप में मानते व पूजते हैं। इतना सब होने के बावजूद ये लोग आज भी समाज में हांसिये पर हैं और अपने ऊपर लगे जन्मजात अपराधी का कलंक मिटने की बाट जोह रहे हैं।

वर्तमान में आवश्यक है कि इनकी जीवन पद्धति, मान्यताओं, हस्तकला, वन औषधियों की जानकारियों, ग्राम गणराज्य की अवधारणा, जन्मजात स्वतंत्रता प्रेमी से संबंधित श्वेतपत्र जारी हो, जिसे आम समाज इसके योगदान को समझ सके और इन्हें जन्मजात स्वतंत्रता सेनानी का सम्मान प्राप्त हों सके। विश्व व्यापार संगठन के शिकंजे में फंसी भारत की जनता की मुक्ति के लिए मजबूत संघर्ष का आधार बन सकती है।

देश की विभिन्न जेलें में विचाराधीन कैदी के रूप में इन्हीं जनजातियों के लोग कैद हैं। आईपीसी एक्ट के अनुसार ये लोग सजा से ज्यादा दिन गुजार चुके हैं। अतएव इन्हें जेल से मुक्ति मिलना अति-आवश्यक है। सेवानिवृत्त अभियंता योगेंद्र नाथ उपाध्याय के नेतृत्व में सामाजिक संगठन भारत जागृति अभियान इन जनजातियों के स्वाभिमान की लड़ाई लड़ रहा है।

योगेंद्र नाथ उपाध्याय 

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