इस साल के आखिर में होने वाले राजस्थान विधानसभा चुनाव (Rajasthan Assembly Election) में भाजपा को चुनावी रिवाज कायम रहने की उम्मीद है, जिसमें अमूमन हर पांच साल में सरकार बदल जाती है। भाजपा का मानना है कि राज्य में कांग्रेस की अंतर्कलह व सत्ता विरोधी माहौल से उसे लाभ मिलेगा। भाजपा ने राज्य में अपने संगठन के झगड़ों को ठीक करते हुए संगठनात्मक बदलाव भी किए हैं।
राजस्थान में बीते ढाई दशकों से हर पांच साल से सत्ता एक बार भाजपा व एक बार कांग्रेस के हाथ में रही है। इनमें दो ही नेता भाजपा से वसुंधरा राजे व कांग्रेस से अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बनते रहे हैं।
अभी कांग्रेस की गहलोत के नेतृत्व में सरकार है और भाजपा की कमान परोक्ष रूप से वसुंधरा राजे के हाथ में ही है। भले ही विधानसभा में नेता विपक्ष व प्रदेश अध्यक्ष पद पर अन्य नेता बैठे हों। भाजपा को यह तय करना बाकी है कि वह वसुंधरा राजे को भावी मुख्यमंत्री घोषित कर चुनाव में जाएगी या फिर सामूहिक नेतृत्व में।
राजस्थान में जिस तरह से कांग्रेस के दो बड़े नेताओं में तलवारें खिंची हैं, उससे भी कांग्रेस की दिक्कतें बढ़ी हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व सचिन पायलट के बीच बीते दो साल से ज्यादा समय से खुला टकराव चल रहा है। वहीं भाजपा चुनावी तैयारियों में जुटी है और कांग्रेस में पायलट अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं।
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दूसरी तरफ भाजपा नेतृत्व ने पार्टी में खेमेबाजी को खत्म करते हुए प्रदेश अध्यक्ष बदल दिया। बीते एक साल में भाजपा ने राजस्थान से आने वाले जगदीप धनखड़ को उप राष्ट्रपाति और वरिष्ठ नेता गुलाब चंद कटारिया को राज्यपाल बनाया। हाल में केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल को कानून मंत्री का बड़ा ओहदा दिया गया है।
बीते छह माह में हिमाचल प्रदेश व कर्नाटक के विधानसभा चुनावों में दो दशक से ज्यादा समय से हर बार सत्ता बदलाव के रिवाज को कामय रखा और भाजपा को काफी कोशिश करने के बाद भी सत्ता बरकरार रखने में सफलता नहीं मिली। अब इस साल के आखिर में जिन पांच राज्यों में चुनाव होने हैं उनमें राजस्थान ही ऐसा है जो हर बार सत्ता परिवर्तन करता है।